यशराज चोपड़ा और दादा फाल्के / जयप्रकाश चौकसे
यशराज चोपड़ा और दादा फाल्के
प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2011
जहां एक ओर यशराज फिल्म्स नए नायकों के साथ कम बजट की फिल्में बना रहे हैं, वहां आमिर खान के साथ 'धूम तीन' सलमान खान के साथ कबीर खान द्वारा निर्देशित फिल्म और उनके 'स्थायी' सितारा शाहरुख खान के साथ भी फिल्म की योजना बनाई जा रही है। उनके टेलीविजन कार्यक्रम असफल हो गए परंतु वे लौटेंगे जरूर क्योंकि टेलीविजन में फिल्मों से अधिक लाभ है। आदित्य चोपड़ा के लेखक होने के कारण यह संस्था अन्य समकालीन संस्थाओं से बहुत आगे है। यश चोपड़ा साहब के पचास वर्ष के अनुभव के साथ युवा आदित्य की प्रतिभा और ऊर्जा मिलकर इस संस्थान को व्यावसायिक सफलता के शिखर की ओर ले जा रहे हैं।
फिल्म इतिहास में पहली बार इस तरह दो पीढिय़ां एक-दूसरे के सहयोग से अपने समान उद्देश्य की ओर अग्रसर हैं। शशधर मुखर्जी जिन्हें फार्मूले का आदिगुरु माना जाता है, ने सबसे अधिक सफल फिल्में बनाईं और नई प्रतिभाओं को अवसर दिया परंतु वे अपने पुत्रों को लंबी पारी खेलने वाले सितारा या निर्देशक नहीं बना पाए। महबूब खान अपने पुत्रों की सीमाएं जानते थे, अत: उन्होंने अपनी फिल्मों और स्टूडियो से प्राप्त आय का अधिकारी उन्हें बनाया परंतु जायदाद बेची नहीं जा सकती, इसका पक्का कानूनी बंदोबस्त उन्होंने अपने जीवनकाल में ही कर लिया था। शांताराम के वंश में भी किसी ने महान फिल्में नहीं बनाईं। इसी तरह विमल राय और गुरुदत के पुत्रों ने भी कुछ नहीं किया। राज कपूर के पुत्र भी फिल्म निर्माण की प्रक्रिया को कायम नहीं रख पाए यद्यपि रणबीर कपूर से आशा है कि वे समय आने पर अपने दादा की संस्था में फिल्में बनाएंगे। यशराज संस्था केवल व्यावसायिक फिल्में ही बनाते हैं और सामाजिक प्रतिबद्धता वाले मनोरंजन से यह परहेज करते हैं। अभी तक इस संस्था से कोई 'मदर इंडिया', 'प्यासा', 'दो आंखें बारह हाथ', 'जागते रहो', या 'बंदिनी' के स्तर की फिल्म नहीं आई है। आज पूरे विश्व में एक नई सोच विकसित हो रही है कि बाजार की दुनिया को भी नैतिक मूल्यों से जुडऩा चाहिए। चुटकीभर नैतिकता के अभाव में शेयर बाजार समय-समय पर टूटते रहेंगे और मनुष्य के लालच द्वारा निर्मित मंदी के दौर अनगिनत आम आदमियों का स्वप्न भंग करते रहेंगे। लोग यक ब यक बेरोजगार हो जाएंगे, मकान-जायदाद बिक जाएगी, बाजार से अंधे सट्टे को खारिज करना जरूरी है। राजनीति में व्याप्त गंदगी और भ्रष्टाचार से पूंजी और बाजार को बचाना होगा। भारत में अनगिनत सहकारी बैंक अपने संचालकों की नैतिक विहीनता के कारण लाखों मासूमों की उम्र भर की पूंजी समाप्त कर चुके हैं और परिवार का कोई सदस्य मामूली-सी सजा काटकर छूट गया है।
बहरहाल चोपड़ा महोदय को स्मरण करा दें कि भारतीय फिल्मों के जनक दादा फाल्के ने कहा था कि सामाजिक सोद्देश्यता का सिनेमा से लोप होते ही वह महज तमाशा रह जाएगा।