यशराज फिल्म्स की स्वर्ण जयंती / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 मार्च 2020
जब ग्राहक नहीं आते तब दुकानदार अपने तराजू को ही उलट-पलट करता है। यह उसकी आदत बन जाती है। कोरोना प्रकोप के कारण सभी उद्योग ठप पड़े हैं। फिल्म उद्योग कोई अपवाद नहीं है, इसलिए खाकसार अपनी स्मृति की तराजू के पल्ले उलट-पुलटकर कॉलम के लिए विचार खोजता है। ताजा खबर यह है कि आदित्य चोपड़ा यशराज फिल्म्स की स्वर्ण जयंती मनाने जा रहे हैं। वे अक्षय कुमार अभिनीत ‘पृथ्वीराज’, रणवीर सिंह अभिनीत ‘जयेश भाई’, ‘बंटी और बबली-2’ का प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही दो अल्प बजट की फिल्में भी प्रदर्शित की जा सकती हैं। इसके साथ ही ‘धूम’ और ‘टाइगर’ की अगली कड़ियों का निर्माण प्रारंभ होगा।
ज्ञातव्य है कि लाहौर में फिल्म पत्रकार रहे बलदेव राज चोपड़ा विभाजन के पूर्व ही मुंबई आ गए थे। यशराज अपने बड़े भाई के प्रमुख सहायक रहे और बाद में उन्होंने कुछ सफल फिल्म का निर्देशन भी किया। जैसे राजेश खन्ना और नंदा अभिनीत ‘इत्तफाक’ बहुसितारा ‘वक्त’, ‘आदमी और इंसान’ तथा ‘धर्मपुत्र’। बलदेव राज चोपड़ा के विशाल बंगले की बरसाती में यशराज रहते थे। प्रेम चोपड़ा के विवाह के बाद भी वे उस तंग बरसाती में रहे। संभव है कि बड़े भाई से अलग होकर अपनी स्वयं की निर्माण कंपनी के विचार का जन्म बरसाती में रहने के कारण हुआ हो। परिवार के रिश्ते में छोटी सी चूक भी बड़ा परिवर्तन लाती है। एक निगाह ही समीकरण बदल सकती है।
यशराज फिल्म्स की स्थापना 1970 में हुई, परंतु उनकी पहली स्वतंत्र फिल्म राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और राखी अभिनीत ‘दाग’ 1973 में प्रदर्शित हुई। लेखक गुलशन नंदा ने थॉमस हार्डी के उपन्यास ‘मेयर ऑफ केस्टरब्रिज’ से प्रेरित होकर उसका चरबा ‘दाग’ के नाम से लिखा था। यशराज की स्थापना में पूंजी निवेशक गुलशन राय का भी सहयोग रहा। उन्होंने यशराज चोपड़ा से समझौता किया कि वे उनकी फिल्मों में पूंजी लगाएंगे, परंतु उन्हें गुलशन राय के लिए भी फिल्म निर्देशित करनी होगी। सलीम जावेद लिखित ‘दीवार’ और त्रिशूल’ इसी समझौते के तहत यशराज चोपड़ा ने निर्देशित की थी। ज्ञातव्य है कि यशराज के दो पुत्र हैं- आदित्य और उदय चोपड़ा। उन दोनों की आपसी समझदारी और प्रेम इतना गहरा है कि विभाजन की कोई संभावना ही नहीं है। उदय चोपड़ा कुछ फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं और वे अपनी सीमा को समझ चुके हैं।
यशराज चोपड़ा ने अपनी सभी फिल्मों की शूटिंग स्विट्जरलैंड में अवश्य की है। यशराज की कुशाग्र व्यवसाय बुद्धि ने यह भांप लिया कि यूरोप में दिन लंबे, रातें छोटी होती हैं। अतः यूरोप में एक दिन में जितनी शूटिंग होती है, उससे बहुत कम श्रीनगर या उटकमंड में की जा सकती है। वे यूरोप में एक बंगला किराए पर लेते हैं, जिसमें यूनिट के सभी सदस्य रहते थे और भारतीय रसोइया उनका भोजन बनाता था। स्विट्जरलैंड की सरकार ने यशराज के सम्मान में एक स्मारक भी बनाया है। यशराज चोपड़ा अपने बड़े भाई बलदेव राज की तरह कलाकारों को कम मेहनताना देने में यकीन करते थे। आदित्य चोपड़ा ने इस व्यवस्था को बदल दिया। उन्होंने सितारों को मुंहमांगा धन दिया। ‘एक था टाइगर’ की सफलता के बाद अनुबंध की राशि से अधिक धन सलमान खान को दिया गया। एक तरफ उन्होंने सितारों के साथ फिल्में बनाईं तो दूसरी तरफ नए कलाकारों को भी अवसर दिया। रणवीर सिंह और अनुष्का के साथ ‘बैंड बाजा बारात’ का निर्माण किया। उन्होंने ‘दम लगाकर हईशा’में भूमि पेडनेकर को प्रस्तुत किया। भूमि ने उस भूमिका के लिए अपना वजन बढ़ाया और शूटिंग के बाद वजन घटाने का कठिन काम भी किया। भूमि पेडनेकर ने ‘टॉयलेट-एक प्रेम कथा’ और तापसी पन्नू के साथ ‘सांड की आंख’ में दर्शकों का मन मोह लिया।
यश राज चोपड़ा ने कभी शराबनोशी नहीं कि, परंतु उन्हें भोजन का बहुत शौक रहा। आदित्य में इसी तरह का जुनून फिल्म बनाने का है। करण जौहर आदित्य के सहायक रहे। उनको स्वतंत्र फिल्मकार बनने की प्रेरणा भी आदित्य और काजोल ने दी थी। आदित्य चोपड़ा का घराना करण जौहर से अधिक ठोस है। बलदेव राज चोपड़ा की फिल्में उपदेशात्मक और डेडिकेटेड रहीं, परंतु यश चोपड़ा रोमांटिक कहानियां चुनते रहे। उन्हें उपदेश देने में कोई रुचि नहीं रही। इस मायने में यशराज चोपड़ा, राज कपूर के स्कूल के माने जा सकते हैं, परंतु आदित्य की सिनेमाई शैली किसी खांचे में नहीं रखी जा सकती है। उनके सिनेमा में लचीलापन है।