यहां हर भाषा मुसाफिर और सफर में ज़िंदगानी है / जयप्रकाश चौकसे

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यहां हर भाषा मुसाफिर और सफर में ज़िंदगानी है
प्रकाशन तिथि : 10 अगस्त 2019


भारत में फिल्म निर्माण के प्रारंभिक दौर में देश के विभिन्न भागों से आए हुए लोग इस नई विधा से जुड़े और इसीलिए फिल्म उद्योग की कामकाज की भाषा अंग्रेजी बनी। इस विधा पर लिखी किताबें भी अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध थीं। जर्मनी एकमात्र देश है, जिसमें फिल्म विधा के लिए छह वर्ष पढ़ाई करनी होती है। पहले वर्ष जर्मन भाषा सिखाई जाती है। दूसरे वर्ष कथा-पटकथा लिखना सिखाया जाता है। तीसरे वर्ष फोटोग्राफी। इसी क्रम में विधा के सारे विभागों का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमारे पुणे फिल्म संस्थान में छात्र एक ही विषय का ज्ञान प्राप्त करता है। अभिनय से ग्लैमर जुड़ा है, इसलिए अभिनय के छात्रों को महिमामंडित किया गया। यह मूलभूत आदर्श भी भुला दिया गया कि फिल्मों के सबसे महत्वपूर्ण काम टेबल पर होते हैं। एक लेखन का टेबल और दूसरा संपादन का टेबल। ज्ञातव्य है कि वर्तमान के सफलतम फिल्मकार राजकुमार हिरानी ने पुणे संस्थान से संपादन में महारत हासिल की थी। प्रारंभिक दौर में पटकथा और संवाद अंग्रेजी भाषा में लिखे होते थे और संवाद का अनुवाद करके उन्हें रोमन लिपि में लिखा जाता था। दुनिया के सभी देशों में संवाद पटकथा का अविभाज्य भाग है।

जैनेन्द्र जैन टाइम्स ग्रुप द्वारा प्रकाशित फिल्म पत्रिका 'माधुरी' में बार-बार लिखते थे कि फिल्म की नामावली हिन्दी में लिखी जाए परंतु बाद के वर्षों में उन्होंने राज कपूर की 'बॉबी' और 'प्रेमरोग' के संवाद लिखे परंतु इन फिल्मों की नामावली (टाइटल्स) अंग्रेजी भाषा में दी गई। दरअसल, फिल्में पूरे देश में देखी जाती है और विदेशों में भी दिखाई जाती है। इसलिए टाइटल अंग्रेजी भाषा में दिए जाते हैं। सच तो यह है कि फिल्म स्वयं एक भाषा है और उसके संवाद किसी भी भाषा में लिखे जाएं, बिम्ब और ध्वनि ही उसकी असल भाषा है।

हैदराबाद में आयोजित फिल्म समारोह में भाग लेने खाकसार सपत्नीक गया। हम सिकंदराबाद के 'सवेरा' होटल में ठहरे थे और प्रतिदिन रिक्शा से सिनेमाघर जाते थे। रिक्शा वाला हिन्दी नहीं समझता था, अत: उसे फिल्म समारोह की सचित्र पुस्तक दिखाते थे। एक दिन गंतव्य तक पहुंचने में कुछ अधिक समय लग रहा था और मार्ग भी नया था, अत: मैंने अपनी पत्नी से हिन्दी में कहा कि चालक किसी लंबे रास्ते से ले जा रहा है। रिक्शा चालक ने तुरंत ही हिन्दी में कहा कि मुख्य मार्ग पर ट्रैफिक जाम है। कुछ समय तक हिन्दी नहीं समझने वाला हमारी बात समझ गया। उसने स्वीकार किया कि उसे हिन्दी आती है परंतु केंद्र सरकार का हिन्दी लादना हमें स्वीकार नहीं है। सारी बात प्रेमपूर्वक निवेदन करने और हुक्म ठोक देने के मुद्दे पर जा टिकती है।

उर्दू भाषा गंगा-जमना तहज़ीब का हिस्सा है और प्रारंभ में इसे 'हिन्दवी' कहा जाता था। भाषाएं हमलावर नहीं होतीं, वे एक-दूसरे की गलबहियां करती हैं। संकीर्णता का यह हाल है कि कुछ पंजाबी भाषा बोलने वाले महान लेखक राजिंदर सिंह बेदी का उपन्यास 'एक चादर मैली सी' के उर्दू में लिखे जाने से ख़फा हैं। उनका कहना है कि सिख होते हुए भी उन्होंने अपनी मातृभाषा में क्यों नहीं लिखा। कुछ इसी तरह की संकीर्णता महान प्रेमचंद के खिलाफ भी दिखाई जाती है, क्योंकि उनकी प्रारंभिक रचनाएं उर्दू में लिखी गई थीं। शब्दों के जन्म और सफर पर कुछ किताबें लिखी गई हैं। भाषाएं यात्राएं करती हैं और तमाम मुसाफिरखानों से कुछ ग्रहण करती हैं। भाषाएं नदियों की तरह अपनी राह में आए वृक्षों की जड़ों से कुछ तत्व ग्रहण कर लेती हैं। भाषा पर बवाल चुनाव जीतने की कीमिया जानने वाले खड़ा करते हैं। बवाल खड़ा करना उनका पेशा है।

वर्तमान समय में समाचार-पत्र प्रकाशित करना आसान नहीं है। कुछ समय पूर्व सभी समाचार-पत्रों ने प्रूफ रीडिंग विभाग बंद कर दिया है। विज्ञापन संसार में भी अंग्रेजी का प्रयोग होता है, क्योंकि उन्हें अपनी बात पूरे देश में पहुंचानी होती है। सत्यजीत राय का कहना था कि बांग्ला भाषा जिस लहज़े में महानगर कोलकाता में बोली जाती है, उससे अलग अंदाज में बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में बोली जाती है। हर तीस किलोमीटर पर भाषा बदलती है। गौरतलब है कि मौन भी बहुत कुछ अभिव्यक्त करता है। खामोशी जलप्रपात के वेग से संसार में प्रवेश करती है।