यह कैसी धर्म साधना? / ओशो

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साँचा:GKCatBodhkatha एक व्यक्ति ने किसी साधु से कहा, "मेरी पत्नी धर्म-साधना में श्रद्धा नहीं रखती। यदि आप उसे थोड़ा समझा दें तो बड़ा अच्छा हो।"

साधु बोला, "ठीक है।"

अगले दिन सवेरे ही वह साधु उसके घर गया। पति वहां नहीं था। उसने उसके संबंध में पत्नी से पूछा। पत्नी ने कहा, "जहां तक मैं समझती हूं, वह इस समय चमार की दुकान पर झगड़ा कर रहे हैं।"

पति पास के पूजाघर में माला फेर रहा था। उसने पत्नी की बातसुनी। उससे यह झूठ सहा नहीं गया। बाहर आकर बोला, "यह बिल्कुल गलत है। मैं पूजाघर में था।"

साधु हैरान हो गया। पत्नी ने यह देखा तो पूछा, "सच बताओ कि क्या तुम पूजाघर में थे? क्या तुम्हारा शरीर पूजाघर में, माला हाथ में और मन और कहीं नहीं था।"

पति को होश आया। पत्नी ठीक कह रही थी। माला फेरते-फेरते वह सचमुच चमार की दुकान पर ही चला गया था। उसे जूते खरीदने थे और रात को ही उसने अपनी पत्नी से कहा था कि सवेरा होते ही खरीदने जाऊंगा। माला फेरते-फेरते वास्तव में उसका मन चमार की दुकान पर पहुंच गया था और चमार से जूते के मोल-तोल पर कुछ झगड़ा हो रहा था।

विचार को छोड़ो और निर्विचार हो जाओ तो तुम जहां हो, वहीं प्रभु का आगमन हो जाता है।