यह जोडी रब ने नही बनाई / जयप्रकाश चौकसे

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यह जोडी रब ने नही बनाई

प्रकाशन तिथि : 09 अप्रैल 2009


फिल्‍म उद्योग और मल्‍टीप्‍लैक्‍स संगठन के बीच चल रहे युद्ध में शाहरूख खान और आमिर खान ने एक साथ खडे रहकर उद्योग की एकता को रेखांकित किया है। दरअसल तमाम अन्‍य युद्धों की तरह यह युद्ध भी अनावश्‍यक है और आसानी से टाला जा सकता है। मल्‍टीप्‍लैक्‍स को अपने अनावश्‍यक खर्चों में कमी करना चाहिए और निर्माता को उसका जायज हक देना चाहिए। दोनों को ही समझना चाहिए की मंदी का दौर किफायत, समझदारी और संमय का दौर है। दायां हाथ बांए हाथ से लडेगा तो परिणाम का अंदाज मूर्ख व्‍यक्ति भी लगा सकता है। हडताल से जन्‍मी हानि सहने की क्षमता दोनों ही पक्षों में नहीं है। यहां एक भूखा दूसरे उपवासी से लड रहा है।

बहरहाल दोनों खानों के एक मंच पर खडे होने को उनकी मित्रता मानना गलत है। यह साथ एक मजबूरी थी। यह मात्र अंहकार की लडाई नहीं है वरन उनके निजी हित टकरा रहे हैं। सच तो यह है कि आमिर खान और खाहरूख खान की जीवन शैली और विचार प्रकिया बहुत अलग है और इस कदर अंतर के बावजूद वे एक-दूसरे के प्रति सम्‍मान रखते हुए भी जुदा रह सकत हैं। दो सुपर सितारों में हमेशा ही गहरी प्रतिस्‍पर्धा रही है परंतु अवाम के सामने उन्‍होनें मर्यादा का निर्वाह किया है। केवल वर्तमान दौर में प्रतिद्वंद्वी अपनी नफरत छिपा नहीं रहे हैं। जबकि अभिनेता होने के नाते उन्‍हें मित्रता का अभिनय करना चाहिए। राजकपूर-दिलीपकुमार, धमेंन्‍द्र-मनोज कुमार, अमिताभ बच्‍चन-राजेश खन्‍ना ये सब प्रतिद्वंद्वी रहे हैं परंतु सारा खेल हमेशा मर्यादा के भीतर खेला गया।

आमिर खान का अपना सिनेमाई स्‍कूल है जिसमें सार्थक फिल्‍में व्‍यावसायिक सफलता हासिल करती रही हैं। उन्‍होने ‘लगान’ जैसी महान और सफल फिल्‍म बनाई है तो विशुद्ध व्‍यावसायिकता में भी ‘गजनी’ ने सारे रिकॉर्ड तोडे हैं। बतौर निर्माण शाहरूख ने कभी कोई सामाजिक सोद्देश्यता वाली फिल्‍म नहीं बनाई है और फरहा खान निर्देशित दो फिल्‍मों को छोडकर सारी फिल्‍में असफल भी रही हैं। एक सितारे के तौर पर शाहरूख खान को विदेशों में अकल्‍पनीय सफलता मिला है क्‍योंकि शिफॉन, स्विटजरलैंड और करवा चौथ के सिनेमा को अप्रवासी भारतीयों ने बहुत पसंद किया है।

भारतीय वितरण के क्षेत्रों में दोनों खान समान हैं और एकल सिनेमाघरों में सलमान खान इन दोनों से ज्‍यादा लोकप्रिय हैं। शाहरूख खान ने अपनी लोकप्रियता को जमकर भुनाते हुए एकल व्‍यक्ति उद्योग की स्‍थापना की है। उसने पैसे की खातिर शादियों में शिरकत की है और विशेष प्रभाव उत्‍पन्‍न करने वाले आधुनिकतम उपकरणों को आयात किया है। दोनों में एक भारी अंतर यह है कि आमिर के पास चाटुकारों का कोई दरबार नहीं है आर वह स्‍वयं ही अपने सबसे बडे सलाहकार और आलोचक भी हैं। उनकी अभिनय शैलियां भी जुदा-जुदा हैं। दोनों पर ही दिलीपकुमार का गहरा प्रभाव है परंतु उनमें से कोई भी दिलीपकुमार के समकक्ष नहीं हैं। वे एक मंच पर साथ खडे होकर कंधे से कंधा मिला सकते हैं परंतु दिलों के बीच सदियों के फासले हैं।