यह दीये और तूफान की लड़ाई है / जयप्रकाश चौकसे

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यह दीये और तूफान की लड़ाई है
प्रकाशन तिथि : 07 मार्च 2021


श्याम बेनेगल ने ब्लेज कंपनी के लिए विज्ञापन फिल्में बनाई और इसी कंपनी की सहायता से अपनी कथा फिल्म ‘अंकुर’ बनाई। जिसमें शबाना आजमी को अवसर दिया जो कालांतर में कलाकारों की ‘गॉड मदर’ सिद्ध हुईं। ज्ञातव्य है कि शबाना केंद्रित ‘गॉड मदर’ विनय शुक्ला ने बनाई थी। श्याम बेनेगल सिनेमा का मूल स्वर हमेशा शोषण की मुखालफत करना रहा है। सामंतवाद से जन्मी कुप्रथाओं को उन्होंने उजागर किया। यह कितने आश्चर्य की बात है कि सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के विकास और प्रचार में लंबा समय लगता है, परंतु कुप्रथाएं और अंधविश्वास जंगल की घास की तरह फैलते हैं। फैल जाने के मामले में कोरोना वायरस ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

श्याम बेनेगल ने बोमन ईरानी अभिनीत फिल्म ‘वेलडन अब्बा’ में भ्रष्टाचार के हर वर्ग और हर सतह तक फैल जाने को प्रस्तुत किया है। ग्रामीण क्षेत्र में जन्मा मुख्य पात्र शहर में सरकारी अफसर का ड्राइवर है। वह 15 दिन का अवकाश लेकर घर गया और तीन माह बाद लौटा तो उसे बर्खास्त करने का फैसला लिया जाता है। वह निवेदन करता है कि अफसर की पुणे तक की यात्रा में वह अपनी मुसीबतों के बारे में अफसर को बताना चाहता है। इस तरह उसे स्पष्टीकरण देने का एक और अवसर मिल जाएगा। वह बताता है कि गांव में उसका 2 एकड़ का खेत है परंतु पानी का अभाव था। एक मित्र की सलाह पर वह सहकारिता बैंक से कर्ज लेने के लिए जाता है। बैंक के चपरासी से लेकर आला अफसर तक सब रिश्वत लेते हैं। बैंक से कर्ज कुएं की खुदाई की विभिन्न सतहों पर किस्त दर किस्त मिलता है। खुदाई कार्य का रिकॉर्ड फोटोग्राफ्स द्वारा रखा जाता है। कोई भी विभाग कुछ नहीं करता परंतु हर किस्त की अदायगी पर अपना हिस्सा ले लेता है। नतीजा यह है कि कुआं कागज पर मौजूद है परंतु यथार्थ में नहीं। ग्राम पंचायत की मुखिया एक महिला है परंतु सारे आदेश उसका पति देता है। यह महिलाओं के लिए आरक्षित सीट के कारण किया जाता है। इस काल्पनिक कुएं का पानी मीठा है। यह रपट भी दर्ज की जाती है। इस मनोरंजक व्यंग फिल्म में फर्जी कुआं चोरी चला जाता है। इस प्रकरण को लेकर विधानसभा में दोनों दल एक-दूसरे पर बड़ा घपला करने का आरोप लगाते हैं। मुख्य पात्र भूख हड़ताल पर बैठ जाता है। वह अपने कुएं के पानी से ही भूख हड़ताल समाप्त करेगा। मीडिया में आ जाने के कारण रातों-रात कुआं खोदा जाता है। मुख्यमंत्री उद्घाटन के लिए पहुंच जाते हैं। फिल्म के अंतिम सीन में मंच ही टूट जाता है। संकेत स्पष्ट है कि संसार को ही भ्रष्टाचार लील जाएगा।

फिल्म में स्थिर छायांकन में ट्रिक के इस्तेमाल का यह हाल है कि मुख्यमंत्री की तस्वीर बराक ओबामा के साथ गढ़ी गई है। फिल्म में इस प्रसंग को भी प्रस्तुत किया गया है कि खाड़ी के देश का अमीर आदमी भारत की गरीब कन्या से विवाह करता है। परंतु उसे दासी की तरह रखा जाता है या मांस की मंडी में बेच दिया जाता है। फिल्म में नायक के आलसी और भ्रष्ट जुड़वा भाई का पात्र भी रखा गया है। यह प्रस्तुत किया जाता है कि भ्रष्टाचार दो मुंह वाले सांप की तरह है। अपनी किताब ‘गांधी और सिनेमा’ लिखने के पहले एक सत्य घटना की जानकारी प्राप्त हुई कि गुजरात के एक कस्बे में साधन संपन्न विधवा तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए आरक्षित धन से गांव में हरिजनों के लिए एक कुआं बनवाती है। ठाकुरों और बामन के कुआं से हरिजन पानी नहीं ले पाते थे। विधवा को कुएं के जल में गंगाजल होने का एहसास होता है। उसे लगता है कि उसकी तीर्थ यात्रा भी हो गई है। खबर है कि पंजाब में हड़ताल पर बैठे किसानों को पानी उपलब्ध कराने के लिए बोरिंग की जा रही है और कुएं का निर्माण हो रहा है। कूलर भेज दिए गए हैं। यह लड़ाई दीये और तूफान की है।