यह दौर है फ्री स्टाइल कुश्ती का / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 24 अक्टूबर 2018
चंद्रमोहन और मोतीलाल गहरे मित्र थे परंतु चंद्रमोहन की फिल्में पिटने लगीं और मोतीलाल के पास इतनी फिल्में थीं कि उन्हें मित्र से मिलने का समय ही नहीं मिलता था। पेशावर के 'किस्सा गो' गली में जन्मे दिलीप कुमार और राज कपूर एक दूसरे के गहरे मित्र रहे परंतु उनके प्रशंसक दो गुटों में बंट गए। राज कपूर ने नरगिस और वैजयंती माला को दिलीप के दायरे से निकालकर अपनी अंतरंगता स्थापित की। चेतन आनंद और देव आनंद दोनों ही कल्पना कार्तिक पर फिदा थे परंतु फिल्म के सेट पर ही देव आनंद और कल्पना कार्तिक ने शादी कर ली और फिल्म में पंडित की भूमिका करने वाले व्यक्ति ने ही विवाह कराया। इंदौर में जन्मे सलीम खान साहेब अभिनेता बनने के लिए मुंबई आए। ग्वालियर में जन्मे और भोपाल में शिक्षित हुए जावेद अख्तर निर्देशक बनने के लिए मुंबई आए। दोनों की बीच दोस्ताना हुआ और सतरह सफल फिल्में लिखने के बाद दोनों अलग हो गए।
मनोरंजन जगत में साथ छूट जाना राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध नहीं होता परंतु सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन में दो आला अफसरों के बीच टकराव और रिश्वत का आरोप-प्रत्यारोप देश में भीतरी बिखराव को पुष्ट करता है। अपनी पसंद के लोग सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिए गए हैं और विभागीय वरीयता को ताक पर रख दिया गया है। कुछ इसी तरह का काम फौज के उच्च पदों के मामले में भी किया गया है। केवल यह देखा जाता है कि कौन-सा व्यक्ति वफादार रहेगा। इस वफादारी की खातिर राष्ट्र के हित को भी नज़रअंदाज कर देगा। अंग्रेजों के खिलाफ कभी लड़े नहीं और 'बांट कर राज करने' की अंग्रेजों की नीति का पालन कर रहे हैं। सीबीआई के दो अफसरों में एक-दूसरे पर 3 और 5 करोड़ रिश्वत खाने का आरोप लगाया है। अनगिनत खोखले वादों में एक दहाड़ यह भी थी कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा'। अब सामूहिक पंगत में उनके सब लोग खा रहे हैं। यहां तक कि पत्तल तक चाट जाने को लेकर द्वंद्व हो रहा है।
विश्व प्रसिद्ध पूंजी निवेशक वारेन बफे ने कहा था कि लहर के चले जाने के बाद उस लहर में अठखेलियां करने वालों को ज्ञात होता है कि वह तो निर्वस्त्र जल क्रीड़ा कर रहे थे। आज हुक्मरान की यही दशा है। अब वह उस किस्से को दोहरा सकता है, जब एक महीन कपड़े का व्यापारी कपड़े की महीनता सिद्ध करने के लिए निर्वस्त्र व्यक्ति को प्रस्तुत करके कहता है कि उसने उसके द्वारा बनाया महीन वस्त्र पहना है। सभी दरबारियों में महीनता सिद्ध करने की होड़ लगती है और सभी गर्व से निर्वस्त्र हो जाते हैं। हमारे यहां कई बार दावे किए जाते हैं कि प्रकरण की जांच सीबीआई से करा लें परंतु अब किसके द्वारा जांच की नारेबाजी की जा सकती है। सिंहासनरूढ़ होते ही जीडीपी के मानदंड में परिवर्तन किया गया, क्याेंकि पता था कि जीडीपी में इजाफा नहीं हो पाएगा। आज उसके द्वारा बनाया गया नया, सुविधाजनक मानदंड भी कोई विकास सिद्ध नहीं कर पा रहा है। परंतु धर्म के आधार बांटा गया आवाम अभी भी विजय दिला सकता है। इसी भ्रम में आम आदमी की दूध को दूध और पानी को पानी सिद्ध करने की क्षमता भूला दी गई है। 'शाइनिंग इंडिया' से बदतर है आर्थिक हालात।
भारतीय आर्थिक दशा को एक शेर की तरह माना जाता है कि उसमें गुप्त शक्ति है। दरअसल, भारत के मध्यम वर्ग की किफायत से जीने के कारण ही विश्व मंदी का व्यापक असर भारत पर नहीं होता था परंतु गुजश्ता कुछ समय में मध्यम वर्ग किफायत भूल गया है। बाजार में अनावश्यक वस्तुएं खरीदी जा रही हैं। यह आर्थिक शेर फिजूलखर्ची से घायल हो गया है और उसके रिसते जख्म से बहता हुआ खून ही शिकारी को उसका पता बता देता है।
आला विभाग के आला अफसरों का इस तरह से भिड़ना और रिश्वत के आरोप-प्रत्यारोप बहुत गहरे संकेत हैं। याद आता है शंकर जयकिशन का गीत 'अब किसी को किसी पर भरोसा ना रहा, नफरत है हवाओं में, दहशत है फिजाओं में, एक ऐसा जहर फैला दुनिया की हवाओं में'।