यह प्रजातंत्र है / पद्मजा शर्मा
एक पार्टी ने कमजोर प्रत्याशी को मैदान में उतारा। कोई नाम तक नहीं जानता। जबकि विपक्षी पार्टी ने दमदार प्रत्याशी खड़ा किया।
'पक्ष की हार निश्चित है' किसी ने कहा।
किसी ने समझाया कि यह कूटनीति है। पक्ष ने हारने वाले प्रत्याशी को जान बूझकर टिकट दी है। '
'क्या मतलब?'
'देखो, सीधा-सा गणित है। पिछली बार पक्ष जीता था तो अब के हारेगा। जनता हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन करती है। किसी को स्थायी नहीं रहने देती। यह प्रजातंत्र है और प्रजातंत्र में हार जीत चलती रहनी चाहिए. कई बार जीतना नहीं बल्कि चुनाव में खड़े होना अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है और हारना जीतने से भी बड़ा बन जाता है और जब हारना ही है तो कमजोर और किसी नए को मैदान में उतारो। पोठा गिरता है तो धूल तो लेकर ही उठता है। लोग नाम जानने लग जायेंगे। आजकल नाम ऐसे ही कमाए जाते हैं। काम और समाज सेवा कौन करता है। ये सब पुरानी बातें हैं। पुरानों के साथ चली गईं। आज की असल राजनीति यही है और इसकी चाल को पकड़ ले वह है असल राजनीतिज्ञ।'