यह भी सच है / प्रेमचंद सहजवाला
आज शाम होते ही यूँ हुआ कि रहेजा सा'ब दोपहर की नींद से जागते ही कमरे के आदमकद शीशे के ठीक सामने खड़े हो कर अपने ही बिम्ब में अपनी आयु का आकलन करने लगे। उन्हें पता है कि वे अब इकसठ के हो चले हैं तथा बालों को पत्नी कनक डाई लगा कर काला करती रहती है। पर उन्हें अकारण अपनी आकृति कुछ अधिक ही बुढ़ाई हुई लगी तो वे तुरंत बाथरूम में घुस गए और नहाने लगे। कनक ने तब तक शाम की चाय भी बना ली थी और खुद पूरी तरह तैयार भी हो गई थी। कनक तो थी पचपन की और सब को यही बताती थी कि वह पचास की है। यह बात केवल रहेजा सा'ब को ही मालूम है।
रहेजा सा'ब नहा कर निकले और फौरन अपना चमचमाता कुर्ता-पाजामा पहन फिर शीशे के सामने खड़े हो कर कंघी-वंघी करने लगे तो खुद को काफी बेहतर लगे। कनक आ गई और उनके ठीक साथ खड़ी हो कर मुस्कराने लगी, बोली - 'आप तो कहते थे न कि आप एकदम संजीव कुमार की तरह लगना चाहते थे। पर आप तो यूँ ही बहुत आकर्षक हो!'
रहेजा सा'ब को लगा कनक उनका मजाक कर रही है पर कंघी-वंघी कर के दोनों चाय की मेज पर बैठे तो कनक बोली - 'मैं तो आठ बजे तक लौट आऊँगी। आप अपना खयाल रखना। तब तक फेसबुक वगैरह देखते रहना। मैं मोबाइल पर आपको सूचित करती रहूँगी कि कहाँ-कहाँ पहुँची हूँ। आप की तो जिद है न, कि मैं भी बस, कोई दोस्त बनाऊँ, और किसी दोस्त के साथ किसी बहाने जाऊँ और कहीं चाय-कॉफी भी बैठ कर पियूँ। अब यह कोई उम्र हुई दोस्त बनाने की। जब दोस्त-यार थे तो सब आपने ही छुड़वा दिया।'
रहेजा सा'ब बोले - 'औरत को भी तो वही आजादी होनी चाहिए न, जो पुरुष में है। यदि तुम किसी रेस्तराँ में बैठ कर अपने किसी दोस्त के साथ चाय-कॉफी पियोगी, गप्पें मारोगी या हँसोगी-खिलखिलाओगी तो कौन-सी अपवित्र हो जाओगी!'
- 'ह्म्म्म। तभी आप जिद पर थे कि बस, मैं भी अपना एक दोस्त बनाऊँ और यदा-कदा उसके साथ चाय पीने जाऊँ। कभी तो जवानी में किसी से मेरा बात करना भी आप को अखरता था!'
रहेजा सा'ब मुस्कराए - 'मेरे लिए जब भी किसी महिला का फोन आया तो तुमने खुद फोन आ कर मुझे दिया। कभी पूछा तक नहीं कि यह मैडम है कौन। मैं तो तुम्हें बता कर जाता रहा कि आज इस मैडम के साथ जा रहा हूँ, एक ऑफिस में उसे काम है। आ कर तुम्हें बताता रहा कि काम होते ही उसके साथ मैंने फलाँ रेस्तराँ में चाय पी। मुझे इसीलिए सूझा कि मुझे कितनी खुशी होगी, अगर तुम भी ऐसे ही किसी के साथ जाओ!'
कनक खूब हँसने लगी, इतनी कि रहेजा सा'ब को समझ ही नहीं आया। पर कनक हँसती चली गई।
कनक 'बाय' कर के चली गई तो रहेजा सा'ब फिर नितांत अकेले-से महसूस करने लगे। कुछ देर तो बैठक में ए.सी. चला कर बैठ गए पर फिर मन न लगा तो ए.सी. बंद कर के लैपटॉप वाले रूम में आ गए। पर फिर कुछ देर वहाँ भी एकाग्रता नहीं जम पाई तो पूरे फ्लैट में टहलने लगे। उन्हें कल्पना में नजर आया कि यहीं नजदीक ही मेन रोड पर कनक अपने दोस्त के इंतजार में खड़ी होगी और वह मोटर साइकिल पर आएगा और कनक पीछे बैठ उसकी कमर या कंधे पर हाथ डाल उससे बातें करती आगे की यात्रा करेगी। बल्कि उन्हें लगा कि उसका वह दोस्त उपेन्द्र पहले ही जरूर फुटपाथ पर मोटर साइकिल रोके उसके इंतजार में खड़ा होगा। कुछ दिन पहले उनमें और कनक में लगातार यही बात होती रही कि अब यह लैपटॉप जो बेटी दे कर लंदन में जा बसी है, पुराना-सा हो गया है और बहुत प्रॉब्लम कर रहा है सो नया ले लेना चाहिए। कनक ने कहा था - 'एक दिन न, मैं आई.सी.आई.सी.आई. बैंक गई थी तो वहाँ कोई उपेन्द्र मिला था। बड़ा भला-सा आदमी है। बातों-बातों में दोस्ती-सी हो गई। यह सुन कर रहेजा सा'ब ने खूब खुशी जताई और बोले - 'चलो, तुमने भी एक दोस्त तो बनाया।'
'हाँ पर वह डीसेंट है न।'
'मैंने कौन-सा कहा दुश्चरित्र होगा... हा हा हा हा...'
रहेजा सा'ब को पुराने दिन याद आ गए। शादी हुई तो लव मैरेज थी पर शुरू के दो-तीन साल बहुत तनावपूर्ण थे और इतने तनावपूर्ण थे कि दोनों मियाँ-बीवी के अलग होने की नौबत आ गई थी। तलाक तक की बातें होने लगी थीं पर बड़ी मुश्किल से वे कुछ साल बीत चले और दोनों में समझौता-सा हो गया। पहले उनका कहना था कि कनक बहुत फ्रैंक है, सब से घुलमिल कर बात करने लगती है। कनक कहती थी कि वह भी पढ़ी-लिखी है सो सब से बातचीत करने का उसे भी तो हक है। पर जब घर में कुछ शांति आई, तब कनक काफी बदल गई थी। माँ ने ही कहा था कि जिंदगी बचानी है तो पति का साया बन कर रहो, वर्ना घर गँवाओगी। उसने तो माँ से भी तर्क-वितर्क किया था कि पति का साया बनने का मतलब यह तो नहीं कि अस्तित्व को ही समाप्त कर दो। पर माँ ने डाँट पिला दी थी और कनक के पास चुप रहने के अलावा कोई विकल्प न था। बेटी जब कनक अपनी किस्मत से समझौते पर उतरी थी, तब हुई थी।
रहेजा सा'ब तो ज़िंदगी भर सरकारी दफ्तर में क्लर्की करते रहे और आखिर तक पहुँचते- पहुँचते केवल छोटे-मोटे गजटेड ऑफिसर ही बन पाए। दफ्तर की बाबू मानसिकता के होते वहाँ काम करने वाली महिलाओं के बारे में जो फब्तियाँ चलती थीं, रहेजा सा'ब एक प्रकार से स्वयं भी उसी का हिस्सा बन गए थे। कनक ने शादी के तुरंत बाद कहा था कि वह भी नौकरी करती है तो क्यों न जारी रखे, पर रहेजा सा'ब गुर्राए थे - 'न न, पता है मुझे, ऑफिस में काम करने वाली औरतों के बारे में ऑफिस वाले क्या-क्या कहते रहते हैं।'
'क्या-क्या कहते रहते हैं?'
'सब को चालू औरतें कहते हैं ऑफिस वाले। तुम भी चालू कहलवाओगी क्या?'
'मतलब सारी पढ़ाई कूडेदान में डाल कर औरत घर में आ कर किचन में टँगी रहे या फर्नीचर साफ करती रहे, यही न?'
'ह्म्म्म। और क्या। लेडीज जिस काम के लिए बनी हैं वही तो करेंगी न। कोई मिस वर्ल्ड थोड़ेई बनने चली जाएँगी!'
कनक ने वे तनाव के वर्ष काटे थे और किसी प्रकार मन मार कर बैठ गई थी पर पिछले पाँच- छह वर्षों से वह पति के रंग-ढंग देख खूब हँसती रहती है। पति महोदय कहने लगे हैं - 'हमने यूँ ही इतने साल गँवा दिए। मैं तुम पर कितनी सख्ती करता रहा। औरतें देखो कहाँ की कहाँ पहुँच गई हैं। तुम वही घर की मेहतरानी या कुक बनी रही।'
कनक हँसती उन पर - 'जिंदगी भर तो गला घोंट कर रखा। अब सपने आ रहे हैं कि मैं भी कुछ करती तो...'
रिटायर होते ही रहेजा सा'ब ने पोस्ट ऑफिस जा कर और कुछ निजी कंपनियों में हाथ आजमा कर उनकी एजेंसियाँ ले लीं कि लोग कोई एफ.डी. कराएँ और उन्हें समुचित कमीशन मिलती रहे। उन्हें जोश आया तो कनक को भी एक-दो प्रूडेंशल कंपनियों की एजेंसी ले कर दी। बेटी की शादी उनके रिटायर होने से दो साल पहले ही हो गई थी और वह शादी के बाद लंदन चली गई थी। पति गौरव उसकी फर्म में नोयडा में ही उसे मिला था जिससे प्रेम विवाह किया उसने। फिर गौरव उसी फर्म की तरफ से लंदन में पोस्ट हो गया। रहेजा सा'ब बढ़-चढ़ कर कनक को बताते रहे कि जैसे उन दोनों ने किया, वैसे हर लड़की को पूरा अधिकार है अपना जीवन साथी खुद चुनने का। कनक के पास पति की हर बात और हर परिवर्तन पर हँसने के अलावा कुछ था ही नहीं।
कनक उपेन्द्र की मोटर साइकिल पर पीछे बैठी उससे गप्पें मारती जा रही थी और रहेजा सा'ब यह सब कल्पना में देख प्रसन्न हो रहे थे। तभी उन्हें कनक का फोन मिला - 'खान मार्केट पहुँच गए हैं उपेन्द्र और मैं। लैपटॉप की दुकान का मालिक दिखाएगा अभी कुछ नमूने। कोई पसंद आया तो बताऊँगी आप को हँ, ठीक है न...'
रहेजा सा'ब की आवाज उड़ती-सी जा रही थी - 'हाँ हाँ घबराना मत। चाय-कॉफी पीनी हो तो खुशी से चली जाना।'
कनक बोली - 'कह रहा है उपेन्द्र हैबीटैट सेंटर में एक बड़ा रेस्तराँ है ईटोपिया, उसी में चलेंगे।'
'ओके। जरूर जाना। घबराना मत।'
कनक खफा-सी हो गई - 'आजादी जरा-सी भी मिले तो उसका भी पति महाराज के सुपरविजन में ही मजा लो। हं।...' पर पति से वह बोली - 'घबराना क्या पर पहले जिस काम से आई हूँ वह तो हो जाए न। लैपटॉप कोई आज ही थोड़ेई ले आऊँगी। यह तो उपेन्द्र का दोस्त है, कह रहा है उसका तो घर वहीं अपने नरायना में ही है, वह कुछ नमूने घर भी ले आएगा और डेमो कर के दिखाएगा...'
'ओ.के.' रहेजा सा'ब को अब कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि आगे वे कहें क्या, क्योंकि वे तो मानो पिछले तीन-चार वर्षों से खुद को ठीक करने में लगे हुए हैं कि कनक भी तो इंसान है और उसे भी अपने तरीके से जिंदगी जीने का पूरा हक है। पर इधर कनक थी कि उसे लग रहा था कि पति का यह टैग यानी मिसेज रहेजा उसकी शख्सियत से हटेगा ही नहीं कभी और वह यहाँ उपेन्द्र के साथ एक कहकहा भी लगाएगी तो वह भी पति महोदय कल्पना में देख ही रहे होंगे और बेकार में खुश होते रहेंगे, फिर बार-बार उसे भी बताएँगे कि अब तो उनके विचार बहुत बदल चुके हैं ना, मानती हो ना... फिर कनक कल्पना करने लगी कि लैपटॉप पर बैठने का शौक इनको ही ज्यादा है और इन्होंने ही खोज निकाला था कि चैट कैसे करते हैं और कि फेसबुक क्या होता है। देखते-देखते वे शाहरुख खान या सलमान खान बन कर लड़कियों से चैट भी करने लगे। फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा महिलाएँ ही इन्होंने मित्र बनाईं। कनक खुद भी फेसबुक पर आ गई, पर प्रायः हल्के-फुल्के मन ही बैठती। उसकी किसी सहेली ने उसे कुछ मित्र सजेस्ट किए जो उसने फेसबुक पर बना लिए और यदा-कदा सर्फिंग कर लेती थी। एकाध कनाडा लंदन से भी बन गए।
रहेजा सा'ब सोचने लगे कि जब से उन्होंने वह बाबूगीरी वाला दफ्तर छोड़ा है तब से न जाने क्यों मॉडर्न से हो गए हैं। पोस्ट ऑफिस में ही पहचान बना कर उन्होंने एक-दो महिलाओं से कहा कि जिस कंपनी में मैं आप की एफ.डी. कराना चाहता हूँ, वह कनॉट प्लेस में है और कभी वहाँ मेरे साथ चलिए न।' महिला चल पड़ी तो रहेजा सा'ब ने मेट्रो-वेट्रो का झंझट छोड़ टैक्सी में जाना चाहा। पर महिला ने उन्हें चौंका दिया कि अरे, ऐसी बात है तो मैं अपनी कार निकाल लाती हूँ। पहले खयाल ही नहीं आया मुझे, सोचा था शायद आपके पास कोई स्कूटर-वूस्कूटर तो होगा ही। इतने आत्मविश्वास वाली महिला के साथ उसकी ही कार में जाते-जाते रहेजा सा'ब का मन जैसे आसमान में उड़ रहा था और मानो उनमें भी एक आत्मविश्वास-सा आ रहा था। कंपनी में जा कर अंदर दो-चार लोगों से मिलवाया और महिला ने साठ-साठ हजार की दो एफ.डी. करा भी दी, चेक बुक वह ले कर ही चली थी। बाहर निकलते ही रहेजा सा'ब बोले थे - 'चलिए न, यहाँ मैकडोनॉल्ड में चल कर कहीं कॉफी-वॉफी पीते हैं।' पर महिला बोली - 'मैकडोनॉल्ड में बहुत क्राउड होता है। मैं कैफे कॉफी डे में जाना पसंद करती हूँ। वहाँ रेट भले ही हाई होते हैं, पर शांति सी होती है।' रहेजा सा'ब खुश। मन ही मन हैरानी भी हो रही थी कि ऐसे, यह विवाहित महिला, जिसकी दो बेटियाँ भी हैं, कैसे मेरे साथ आ कर बैठ गई है। कैफे कॉफी डे में बैठे-बैठे उस महिला का मोबाइल भी बजा तो उन्हें पता चल गया कि उसकी बेटी का ही है। बेटी ने शायद पूछा हो - 'मम्मी, आप कहाँ हो?' महिला बोली थी - 'बस यहीं उसी कंपनी के ऑफिस में हूँ अभी। वापस पहुँचने वाली हूँ।' पर उनका आत्मविश्वास तब और भी बढ़ा जब ऐसा ही एक-दो तुक्का एक-दो और महिलाओं से लग गया उनका। एक महिला के साथ इसी कैफे कॉफी डे से बाहर निकलते-निकलते वे पूछ बैठे - 'कभी एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशनशिप का मौका आया आप की जिंदगी में!'
महिला सख्त-सी हो कर अपनी कार में बैठते-बैठते बोली - 'मुझे ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं। मैं जिसके साथ जाती हूँ जाती हूँ बस, मेरे कई दोस्त हैं। पर मुझे ऐसे बेकार के पचड़ों में नहीं पड़ना आता जो आप कह रहे हैं। दोस्ती ठीक है बस। क्या औरत-मर्द में एक्स्ट्रा-मैरिटल के सिवा और कुछ है ही नहीं?'
कनक का फोन फिर बजा। बोली - 'उपेन्द्र के दोस्त ने न तीन अच्छे नमूने दिखाए हैं। सभी में लैपटॉप के सामने खड़े हो कर ही फोटो या वीडियो भी बन जाता है। बाईस से तीस तक की रेंज के हैं। कोई भी लो तो तीन हजार छोड़ेगा।'
इधर रहेजा सा'ब ओके बोले तो कनक आगे बोली - 'कह रहा है आप कहो तो संडे को ही घर में भी ले आएगा तीनों नमूने। आप यहाँ आ कर देखना चाहोगे कभी?'
'नहीं नहीं, क्या जरूरत है। अभी तो तुम उपेन्द्र के साथ ईटोपिया जाओ ना...।'
पर कनक ने उन्हें निराश-सा कर दिया, बोली - 'कह तो रहा है पर अब क्या जरूरत है। घर आ जाती हूँ, आप अकेले हैं ना...'
रहेजा सा'ब उत्तेजित-से बोले - 'नहीं नहीं, जरूर जाओ तुम, वो बुरा ना मान जाए ना...'
कनक के पास भी ओके कहने के अलावा कोई चारा नहीं था। रहेजा सा'ब फिर कल्पना करने लगे कि मोटर साइकिल पर कनक उपेन्द्र के पीछे बैठी है और वहीं खान मार्केट के सामने ही मैक्समूलर मार्ग के अंत में ही तो है हैबीटेट सेंटर। पर अगर वह साथ ही के ऐम्बेसडर में चली जाए तो कितना मजा आए। फिर वे सोचने लगे, नहीं नहीं, कनक तो जमीन में गड़ जाएगी ऐसी अंतरंग जगह पर बैठने में किसी के साथ। वैसे अगर जाए तो क्या हर्ज है। पर ईटोपिया भी ठीक ही है। बहुत बड़ा हॉल है जैसे सिनेमा हॉल हो। भीड़-सी रहती है। भीड़ में कोई पहचान भी ले तो क्या है, किसी के बाप का कुछ ले रहे हैं क्या हम कि कहीं जा भी ना सके मेरी बीवी... सोचते-सोचते रहेजा सा'ब ने लैपटॉप ऑन किया और एक चैट रूम में आमिर खान नाम से चैट करने लगे। अक्सर वे पॉर्न साइट में भी चले जाते हैं, उनके लिए यह ताजिरबा भी विचित्र था कि कई लड़कियाँ चैट पर ही सम्भोग तक कर लेती हैं और चैट में ही कपड़े उतार कर अंग-अंग का वर्णन करती बातें करती हैं और सम्भोग के दौरान की तरह-तरह की कराहें भी लैपटॉप पर टाइप कर के खूब हँसती हैं, कहकहे लगाती हैं। वे एक बार अपने असली नाम से एक चैट साइट के लाउंज में चले गए थे। वहाँ एक पचपन वर्षीय विवाहित महिला से गप्पें मारने लगे। उससे बोले रहेजा सा'ब कि अदम को तो हव्वा ने एक ही ऐपिल दिया था। पर अब जो हव्वा पृथ्वी पर घूमती है तो उसके पास दो-दो ऐपिल हैं। महिला हा हा कर के हँस पड़ी। रहेजा सा'ब ने कहा - 'आर यू इंट्रेस्टिड इन सेक्स चैट?' महिला बोली - 'वाई नॉट' और रहेजा सा'ब कहने लगे - 'बट यू आर मैरीड!।' पर वह महिला बोली - 'लीव इट देन, इफ यू आर अफ्रेड। गेट लॉस्ट।' रहेजा सा'ब अपना-सा मुँह ले कर रह गए। अब वे कल्पना करने लगे कि उपेन्द्र भी जरूर कनक से थोड़ी-सी तो आजादी माँग ही लेगा। कितना मजा आए तब! कुछ ही दिन पहले उन्होंने ऐसी बातों से कनक को खफा भी कर दिया था। रात को सो रहे थे दोनों कि रहेजा सा'ब ने कनक की ठुड्डी को अपने हाथ में पकड़ उसका चेहरा अपनी तरफ कर के कहा - 'आजकल ना सब चलता है। ज्यादा घबराया मत करो। कोई मिले तो हगिंग-वगिंग सब चलती है। तबीयत से लिपट लेना आजकल मामूली बात है। इक्कीसवीं सदी जो है।' फिर सहसा कनक की आँखों में आखें डाल मुस्करा पड़े और बोले - 'कोई कोई ना, ए पेक ऑन द चीक भी माँग लेता है... यानी गाल पर जरा होंठों से पुच करने की इजाजत... ही ही...' कनक को आया गुस्सा, वह उनका हाथ झटक करवट बदल कर सो गई। बोली - 'लाइट ऑफ कर दीजिए प्लीज। मुझे सुबह जल्दी उठना है। आप की मेडिसिन लेने तो डिस्पेंसरी जाऊँगी ना...'
चैट करते-करते रहेजा सा'ब थक गए तो सोचा अब फेसबुक में जाता हूँ। वैसे फेसबुक में चैट वे कम ही करते हैं क्योंकि वहाँ जो भी दोस्त हैं वे उनका असली नाम जानते हैं। पर इधर उन्होंने फेसबुक खोला और उधर फ्लैट में बाहर नीचे सीढ़ियों का ताला खोलने की आवाज-सी आई। उन्हें पता चल गया कि कनक आ गई है, और वह अपनी चाबी से नीचे सीढ़ियों वाले दरवाजे का लॉक खोल ऊपर आ जाएगी, फिर फ्लैट की चाबी भी उसके पास है। यह कमरा दूर है। इसी समय उन्हें यह भी लगा कि अरे, यह तो कनक का फेसबुक अकाऊंट है, शायद खुला ही रह गया। और कनक की एक चैट पढ़ते-पढ़ते वे हैरान-से भी हो रहे थे। दिल धक्-धक्-सा भी कर रहा था। सेक्स चैट! कनक!! क्या-क्या कह रहे हैं दोनों। उधर से कोई कनाडा में बैठा अजनबी- सा दोस्त वीरेन है कनक के फेसबुक का। और कनक कह रही है - 'यस, वाई नॉट। किस मी!'
और उधर वाले ने टाइप कर दिया है - 'पुच!'
कनक ने भी टाइप कर रखा है - 'पुच!'
'पुच!'
'पुच!'
आगे की पढ़ कर रहेजा सा'ब के दिल की धक्-धक् जैसे बढ़-सी गई। आगे सब कुछ है। कनक ने टाइप करते-करते कपड़े तक उतार रखे हैं, वह निपट निर्वस्त्र है। उस तरफ कनाडा में बैठे अजनबी महाशय भी निपट निर्वस्त्र हैं, और आगे हैं आवाजें ही आवाजें! कराहें... आह... क्या कर रहे हो... प्लीज बस...' रहेजा सा'ब को काटो तो खून नहीं। उन्हें तो यह होश भी भूल चुका था कि कनक उनके ठीक पीछे आ कर खड़ी भी हो गई है और शायद उसे इस बात का एहसास भी हो चला है कि रहेजा सा'ब तो उसी की लापरवाही से खुली छूट चुकी चैट पढ़ रहे हैं। पर कनक ने क्या किया कि उनकी गर्दन के गिर्द बाँहों का हार-सा बना कर पीछे से ही फेसबुक पर अपने चैट विंडो पर 'क्लीयर विंडो' क्लिक किया और चैट ऐसे गायब हो गई जैसे अचानक तेज रौशनी से आँखें फटने-सी लगती हैं। फिर कनक ने चुपचाप अपना फेसबुक अकाऊंट ही लॉग आउट कर दिया और मुस्करा दी जैसे उन्हें बता रही हो, कि यह सब तो झूठ है डार्लिंग, सच तो यह है जो मैं कर रही हूँ। और वह बाँहों का हार उनके गले में अटकाए ही पीछे से अपना चेहरा उनके चेहरे के साथ सटा कर मुस्कराती हुई प्यार-सा करने लगी। पर रहेजा सा'ब को लगा जैसे कनक के कपोलों के स्पर्श में एक निर्जीवता-सी है, जाने क्यों। वे कई क्षण उस स्पर्श में कोई स्पर्श खोजते स्वयं भी लगभग निर्जीव-से बैठे रहे, जाने कितनी देर! और कनक थी कि अपना कपोल उनके कपोल से घिसती ही जा रही थी, सिर्फ एक स्पर्श का सृजन करने की नाकाम कोशिश में!