यह रैप वैप क्या है? / जयप्रकाश चौकसे

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यह रैप वैप क्या है?
प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2019


जोया अख्तर की फिल्म 'गली बॉय' सफल रही। झोपड़पट्‌टी में रहने वाला बेरोजगार युवा रैप गायन द्वारा धन अर्जित करता है। रैप गद्य और पद्य के बीच की विधा है, जिसका कोई ग्रामर नहीं है। दशकों पूर्व ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आशीर्वाद' में अशोक कुमार ने रैप गाया था, ' रेल गाड़ी, रेल गाड़ी/ छुक छुक छुक छुक.../ बीच वाले स्टेशन बोले रूक रूक रूक रूक../तड़क-भड़क, लोहे की सड़क/ धड़क-धड़क, लोहे की सड़क/ यहां से वहां, वहां से यहां..। इसे लिखा था हरेन्द्रनाथ चट्‌टोपाध्याय ने जिन्हें हम गुरुदत्त की 'साहब बीबी गुलाम' में सनकी घड़ी बाबू के पात्र में देख चुके थे। विजय आनंद की फिल्म 'तेरे घर के सामने' में भी उन्होंने महत्वपूर्ण पात्र अभिनीत किया था। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कविताएं लिखी हैं। वे अखबार में प्रकाशित होती रहीं। सरोज कुमार का 'स्वत: दुखाय' सामाजिक व राजनीतिक हालात पर व्यक्त किए गए उनके विचार थे। स्वत: दुखाय कमोबेश आरके लक्ष्मण के कार्टून वाला काम ही करता है।

हम विष्णु खरे की कविताओं को भी रैप कह सकते हैं। आज विष्णु खरे की कमी अखरती है। दक्षिणपंथी प्रचार का सामना वे बखूबी कर सकते थे। एक राजनीतिक दल भी रैप की तरह बड़बड़ा रहा है और उसकी ज़िद है कि उसकी बयानबाजी को पवित्र रामायण की तरह माना जाए, जबकि उन्होंने आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में महाभारत रच दी है। सारा देश शहीदों को आदरांजलि दे रहा है। यह हमारी गुप्तचर सेवा की खामी है कि इतनी बड़ी त्रासदी घटी। पूर्व सूचना को कैसे अनदेखा किया गया? रैप में गति होती है, गीत में ठहराव होता है। गीत कोरी लफ्फाजी नहीं होती। शब्द का चयन कोई इत्तेफाक नहीं होता। कभी-कभी शब्द के उच्चारण से भी अर्थ ध्वनित होता है। सारे महान आख्यान काव्य में रचे गए हैं। पद्य रचना की काबिलियत खोने पर हम गद्य रचने लगे और इसी यात्रा का आखिरी पड़ाव ग्रामर हो गया। बहरहाल, गद्य एवं पद्य अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। मनुष्य के पास अभिव्यक्ति का इतना माद्‌दा है कि उसे रोकने के प्रयास के साथ ही वह सशक्त होती जाती है और अपने लिए अभिनव जतन करने लगती है। पत्थरों के बीच थोड़ी-सी खाली जगह में भी कोंपल उग आती है। राहगीर के जूतों से कुचले जाने का उसे कोई खौफ नहीं होता।

रैप की तरह का काम पहले भी होता था परंतु तब उसे रैप नहीं कहा जाता था। 'श्री 420' का 'दिल का हाल सुने दिलवाला' भी इसी तरह की रचना है। 'मेरा नाम जोकर' की शूटिंग शुरू ही हुई थी कि शैलेन्द्र का निधन हो गया परंतु 'जीना यहां, मरना यहां' वे लिख चुके थे। उनका एक गीत 'दिया कहे रात से, यह क्या किया तूने बावली' उस समय काट दिया गया जब फिल्म प्रदर्शन के पंद्रह वर्ष पश्चात पुन: संपादित करके तीन घंटे की बनाई गई। प्रदर्शन के समय वह चार घंटे की फिल्म थी।

बहरहाल, शैलेन्द्र के निधन के पश्चात नीरज को निमंत्रित किया गया। उनकी एक रचना 'यह राजपथ है मेरे भाई' को ही थोड़े परिवर्तन के साथ सर्कस में गाया जाने वाला गीत 'ए भाई जरा देखकर चलो' बनाया गया। राज कपूर ने नीरज से कहा कि बड़े अक्षरों में लिखकर शंकर के पास जाएं, क्योंकि उन्हें पढ़ने में परेशानी होती है। नीरज बड़े अक्षरों में लिखकर संगीतकार शंकर से मिले तो शंकर की प्रतिक्रिया यह थी कि क्या कोई महाभारत बनाई जा रही है? बहरहाल, नीरज कवि सम्मेलन में जिस ढंग से कविता पाठ करते थे, उसी तर्ज पर गीत की धुन बनाई गई। इसे भी रैप ही माना जा सकता है।

शेक्सपीयर के पद्य में लिखे नाटकों से प्रेरित कुछ फिल्मों के संवाद पद्य में ही रचे गए। किशोर साहू ने 'हेमलेट' इसी तरह बनाई थी। इसके वर्षों बाद चेतन आनंद ने 'हीर रांझा' पद्य में रची। कैफी आजमी साहब ने चेतन आनंद की 'हीर रांझा' लिखी थी। कुछ समय पूर्व अनुराग बसु की रणबीर कपूर एवं कैटरीना कैफ अभिनीत 'जग्गा जासूस' के कुछ संवाद रैपनुमा ही थे।

इससे जुड़ी एक विधा को 'बीट बॉक्सिंग' कहते हैं, जिसमें गायक वाद्य यंत्रों की सी ध्वनि भी अपने गले से निकालता है। बीट बॉक्सिंग से प्रेरित पटकथा 'रोशन' युवा अंशुल विजयवर्गीय ने लिखी है और यह फिल्म जब भी बनेगी, अत्यंत सफल सिद्ध होगी। इसका चरित्र-चित्रण और घटनाक्रम विलक्षण है। बर्नार्ड शॉ के नाटक 'पिगमेलियन' से प्रेरित फिल्म 'माय फेयर लेडी' भी पद्य में रची फिल्म थी। इसी फिल्म को अमित खन्ना ने टीना अंबानी (तब टीना मुनीम) और देव आनंद के साथ 'मनपसंद' नाम से बनाया था, जिसमें अमित खत्न्ना ने विशुद्ध हिंदी में गीत लिखे थे जैसे 'सुमन सुधा रजनीगंधा आज अधिक क्यों भाए।'