यात्राएं, तीर्थ यात्राएं और स्वयं की भीतरी यात्रा / जयप्रकाश चौकसे

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वो जब याद आए, बहुत याद आए
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2018


आदिम काल से ही मनुष्य यात्राएं कर रहा है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और मनुष्य रोजी-रोटी तथा बेहतर अवसर की तलाश में यात्राएं करता है। गति के भीतर एक गति और है और वह है मनुष्य मष्तिष्क में विचारों का आना और जाना। मानव इतिहास में सबसे त्रासद पलायन तब हुआ जब भारत का विभाजन हुआ। इतिहास से अधिक मार्मिक वर्णन उस विभाजन का सआदत हसन मंटो ने किया है जिनका बायोपिक एक अंतरराष्ट्रीय समारोह में दिखाया गया।

नंदिता दास विलक्षण फिल्मकार हैं और उन्होंने 'फायर' नामक फिल्म में लाजवाब अभिनय भी किया है। विभाजन पर सथ्यू की फिल्म 'गर्म हवा' को कालजयी फिल्म माना जाता है। विभाजन की पृष्ठभूमि पर गोविंद निहलानी की 'तमस' भी एक मानवीय दस्तावेज की तरह गढ़ी गई फिल्म है। इसी विषय पर खुशवंत सिंह के उपन्यास 'द ट्रेन टू पाकिस्तान' पर भी फिल्म बनाई जा चुकी है। विगत वर्ष ही महेश भट्ट की फिल्म 'बेगम जान' को बहुत सराहा गया।

एक दौर में अश्वेत अमेरिकन भी दक्षिण से खदेड़े गए थे और उस त्रासदी पर इसाबेल विल्करसन का उपन्यास 'द वार्म्थ ऑफ अदर सन्स (सूरज)' को साहित्य पुरस्कारों से नवाजा गया है। डायना एल. ईक की भारत पर लिखी किताब में उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि अनंत भारत की सरहदें बनाने में धर्म स्थान की यात्राओं का बड़ा योगदान रहा है। वेद में वर्णित है कि हवन कुंड भी एक महान यात्रा का प्रतीक है, जो इस संसार से अन्य संसार की ओर ले जाती है। आत्मा किसी सरहद में नहीं बंधती, यहां तक कि वह मानव शरीर के पिंजरे से भी मुक्त हो जाती है। दरअसल, आत्मा को लेकर एक धुंध रची गई है। सरल सपाट तथ्य यह है कि मनुष्य की विचार प्रक्रिया को ही 'आत्मा' कहा गया है। तीर्थ यात्राओं पर साहित्य भी रचा गया है। अंग्रेजी कवि चॉसर की 'कैंटरबरी टेल्स' भी तीर्थ-यात्रा केन्द्रित काव्य रचना है।

अनेक बार प्लेग नामक बीमारी फैलने पर भी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते हैं। कभी-कभी प्लेग की अफवाह से भी भगदड़ मच जाती है। पृथ्वी थियेटर्स कलकत्ता में नाटक मंचित कर रहा था। उस समय प्लेग की अफवाह फैली। पृथ्वी थियेटर्स में परदा उठाने और गिराने का काम करने वाले व्यक्ति को तीव्र ज्वर उठ आया। सब उससे दूर भागने लगे तो पृथ्वीराज कपूर ने उसे अपने कंधे पर उठाया परंतु कोई हाथ रिक्शा वाला या टमटम वाला प्लेग की अफवाह के कारण उन्हें अस्पताल तक नहीं ले जाना चाहता था। पृथ्वीराज कपूर ने उसे अपने कंधे पर डालकर दौड़ लगाई और अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि उसे प्लेग नहीं है। मलेरिया के कारण बुखार आया है। जॉन स्टीनबैक की 1939 में प्रकाशित रचना 'ग्रेप्स ऑफ रेथ' उन किसानों की व्यथा-कथा प्रस्तुत करती है, जिनकी जमीन कारखाने लगाने के लिए जबरन छीन ली गई। बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' भी ऐसे ही एक किसान की कथा है जो महानगर में रिक्शा चलाकर कुछ पैसे कमाना चाहता है ताकि अपना गिरवी रखा खेत महाजन से मुक्त करा सके।

तीर्थ यात्राएं कष्टकारक होती हैं। हज यात्रा भी आसान नहीं है। केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्राएं भी आसान नहीं हैं। पंढरपुर की यात्रा पर कुछ कहानियां लिखी गई हैं। पहले मानसरोवर पहुंचने के लए बहुत लंबी यात्रा करनी पड़ती थी। अब अपेक्षाकृत कम कष्टप्रद है परंतु कुछ हिस्से चीन के कब्जे में हैं और दोनों देशों की सरकारों से आज्ञा प्राप्त करके ही यह यात्रा की जा सकती है। मानसरोवर के तीन ओर ऊंचे पहाड़ हैं। सुबह सूर्य की रोशनी झील पर पड़ती है और पानी स्वर्ण समान नजर आता है। दोपहर में रोशनी का कोण बदल जाता है तो पानी का रंग कुछ और नजर आता है। शाम ढलते ही नज़ारा बदल जाता है। ठीक इसी तरह मनुष्य का मन एवं विचार प्रक्रिया में भी अंतर आता है। पल-पल परिवर्तन शाश्वत नियम है। हमें कभी-कभी मित्रों में शत्रु दिखाई देने लगते हैं, शत्रु मित्र से अलग लगने लगते हैं। प्रेम और नफरत भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अब 'शोले' में प्रयुक्त सिक्का कहां से लाएं जिसके दोनों पहलू पर एक ही छवि अंकित है। कठिनतम यात्रा स्वयं को जानने की यात्रा है। फिल्म 'हरजाई' के लिए लिखे निदा फाज़ली के गीत की पंक्ति है- 'यहां हर शै मुसाफिर है, सफर में जिं़दगानी है'। गुलज़ार की पंक्ति है- 'राहों के दिए आंखों में लिए राही तू बढ़ता चल'। शैलेन्द्र आस जगाते हैं- चलते चलते थक गया मैं और सांझ भी ढलने लगी, तब राह खुद मुझे अपनी बांहों में लेकर चलने लगी।

सियासत करने वाले उन लोगों से प्रमाण-पत्र मांग रहे हैं जिनके दादा, परदादा उसी स्थान पर पैदा हुए थे। इंसान बार-बार खदेड़े जाते हैं। कभी-कभी ये घटनाएं युद्ध को भी जन्म देती हैं।