यादों का बाजार और विस्मृवति का संसार / जयप्रकाश चौकसे

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यादों का बाजार और विस्मृवति का संसार

प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2009


माइकल जैक्‍सन की मृत्‍यु को नौ महीने हो चुके हैं और इसी बीच सोनी इंटरनेशनल कंपनी ने अगले सात वर्षों के लिए उनकी तमाम रचनओं के अधिकार 200 मिलियन डॉलर में खरीदे हैं। यह रकम आज की जीवित शिखर गायकों की रकम से कहीं अधिक है। इनमें वे रिकॉर्डिंग्‍स भी शामिल हैं जो उन्‍होंने अपनी सृजन प्रक्रिया के तहत रचीं, परंतु उजागर नहीं कीं। सोनी कंपनी के विशेषज्ञ इन रचनाओं को धीरे-धीरे उजागर करेंगें।

मृत्‍यु के पश्‍चात माइकल जैक्‍सन को उनके सृजन के सहारे लंबे समय तक जीवित रखा जाएगा और माइकल की यादों को होम्‍योपैथिक डोज की तरह उनके प्रशसंकों को दिया जाएगा। यह संगीत के साथ स्‍मृति का भी दोहन है।

25 जून को माइकल जैक्‍सन की पहली बरसी पर एक आदमी उस सिरिंज को नीलाम करेगा, जिसका इस्‍तेमाल जैक्‍सन करते थे। क्‍या इसी सिरिंज से घातक दवा उनको दी गई थी और यह एक एविडेंस नहीं होते हुए किसी व्‍यक्ति के पास कैसे आई। अमेरिका में यह कैसा पागलपन है कि सितारों के अंडरवियर तक नीलाम होते हैं। प्रसिद्ध हीरा व्‍यापारी और फिल्‍म पूंजी निवेशक भरतभाई शाह ने मुंबई में माइकल जैक्‍सन का कार्यक्रम कराया था और उनका तौलिया पांच लाख रूपए में खरीदा था, परंतु यह रकम एक संस्‍था को दान में दी जानी थी। वह दिन दूर नहीं जब कोई सनकी किसी शिखर सितारे का पसीना टेस्‍ट ट्यूब में एकत्रित कर उसे बाजार में बेचेगा। काश। किसी ने ‘ट्रेज़्डी क्‍वीन’ मीना कुमारी के आंसू सहेजे होते। मुस्‍कुराहटों का संचय असंभव है। बहरहाल माइकल मोनिया जारी रहेगा और शायद मृतयु के बाद उनकी रचनाएं उनके जीवनकाल में कमाई गई राशि से भी अधिक लाभ प्रदान करेंगी।

मदन मोहन की कुछ रचनाओं का उपयोग यश चोपडा ने अपनी फिल्‍म ‘वीर जारा’ में किया था। यह संभव हुआ उनके पुत्र के कारण जिसने उन्‍हें सहेजे रखा था। हमारे महान संगीतकारों ने अपने सृजन कक्ष में सतत रिकॉर्ड करने वाली मशीनें नहीं लगाई और ना ही उनकी स्‍वरलिपि को संभालकर रखा। प्राय: गीत की रिकार्डिंग के बाद सारे साजिदें और संगीतकार अपनी स्‍वरलिपि को सहेजते नहीं थे। दरअसल हमारा यही रवैया अपनी तमाम ऐतिहासिक विरासत के साथ भी रहा है। इतिहास बोध हमेशा नदारद रहा है। हमारी सांस्‍कृतिक धरोहर की देखाभाल हमेशा विदेशियों ने की है। हर्मनी के मैक्‍स मूलर संस्‍थान ने हमारे ग्रंथों को सहेजा है। हमारे फिल्‍मकारों ने अंतिक संपदान के बाद काटे हुए दृश्‍यों को कचरा समझकर फैंक दिया।

राज कपूर ने ‘संगम’ के लिए शैलेंद्र का लिखा गीत ‘कभी न कभी कहीं न कहीं से कोई तो आएगा, सोते भाग जगाएगा’ रिकॉर्ड किया, परंतु फिल्‍म निर्माण के दौरान ही इससे मिलता-जुलता मदन मोहन रचित गीत शायद देव आनंद अभीनीत ‘शराबी’ में आ गया। दोनों गीतों की धुनें अलग-अलग थीं। इसी तरह ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ‘कहे शाम से जलता दिया, बावली तूने ये क्‍या किया’ आज अनउपलब्‍ध है, जबकि यह पहले जारी डबल एलपी में था। इसी तरह नौशाद, सचिन देव बर्मन और पंचम की भी अनेक रचनाऐं गाय‍ब हैं।

सृजन के अनउजागर हाशिए में बहुत कुछ होता है। कांटे-छांटे पन्‍नों में भी अर्थ दफन हो जाता है। महान गायकों का अलसभोर में किया गया रियाज भी रेकॉर्ड नहीं किया जाता। उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खान ने अनगिनत अलसभोर में बाबा विश्‍वनाथ में मंदिर में रियाज किया और आज सभी रियाज पत्‍थर की दीवारों में समाए हैं।