यादों की बारिश / सत्या शर्मा 'कीर्ति'

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घनघोर काली घटाएँ, तेज़ मूसलाधार बारिश और मेघों की भयंकर गर्जना, जैसे किसी अनहोनी की ओर इशारा कर रहे थे। टीवी पर बार-बार दिखाया और सचेत किया जा रहा था कि तेज बारिश के कारण बाढ़ विकराल रूप लेती जा रही है सभी आसपास के गाँव धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहें हैं।

मन में रह-रहकर ख्याल आ रहा है-कहीं मेरा भी गाँव तो नहीं डूब जाएगा? आँखें बस स्क्रीन पर ही गड़ी हैं।

क्या मेरा गाँव ...? या माँ की कर्मभूमि!

छोटी उम्र में ही पढ़ने के लिए शहर आ गया था फिर नौकरी के कारण बड़े-बड़े शहरों में ही पोस्टिंग होती रही।

ऐसे में माँ अकसर बुलाती थी-"कभी तो आजा बेटा!" पर मुझे मिट्टी की गीली गलियाँ, कच्चे-पक्के घरों के चूल्हे से निकलता सफेद–पीला धुआँ, बरसात में चारों ओर की काई, गोबर की गंध जाने क्यों अच्छी नहीं लगती थी। कितने बहाने बनाता था मैं! कभी मीटिंग है, कभी बच्चों की पढ़ाई, कभी कुछ। नहीं जाने के सैकड़ों बहाने थे मेरे पास।

माँ को भी स्वयं कभी शहर रास नहीं आया। उनकी भी अपनी दुनिया थी जिसमे कुछ गाएँ, तरह-तरह की सब्जियों और फूलों के पौधे तथा पड़ोसियों के सुख-दुःख उनका साथ नहीं छोड़ते थे।

माँ कभी फोन से, तो कभी चिट्ठी लिखकर बुलाती थी मुझे।

तब मैं उन चिठ्ठियों की कीमत बिल्कुल समझ न पाता और सोचता-माँ भी ना जब मोबाइल पर बातें हो जाती है, फिर भी चिट्ठियाँ क्यों भेजती रहती है ...

फिर एक दिन गोबर-मिट्टी की गंध लिये चली गयी माँ किसी और ग्रह पर अपनी दुनिया बसाने।

पूरे दो महीने हो गए हैं, पर पता नहीं क्यों आज बहुत याद आ रही है माँ। दराज से सारी चिट्ठियाँ निकाल लाया, तब एहसास हुआ-जैसे ये शब्द नहीं, बल्कि माँ ही सामने बैठ मेरे सुख–दु: ख पूछ रही हो।

तेज बिजली की गड़गड़ाहट ने मेरी तन्द्रा तोड़ दी और फिर मन गहरी आशंका से डूब गया। सामने टीवी पर मेरे ही गाँव के चित्र आ रहे थे, जिसे बाढ़ अपने साथ बहाकर ले जा रही थी, जिसमें शायद माँ का वह घर, वह पीछे का कुँआ वह अमरूद का पेड़, खूँटे से बँधे गाय और बैल, आँगन की तुलसी, चिड़ियों के लिए बिखरे दाने, सभी धीरे-धीरे तेज बहाव में विलीन हो गए होंगे और लगा मैं सच में अनाथ हो गया। माँ के जाने के बाद भी यह पीड़ा नहीं हुई थी, जो आज महसूस हुई। आज लगा जैसे मेरा बचपन, मेरा अस्तित्व, माँ के स्पर्श से भरा घर का हर कोना सब बाढ़ के साथ बह गए।

मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। लगा जैसे दो महीने पहले नहीं, बल्कि मेरी माँ आज ही मरी हो।