यादों के चेरी ब्ळॉसम / पुष्पा सक्सेना

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अपने अति गौर वर्ण, तीखे नाक-नक्श के साथ असाधारण मेधा की स्वामिनी, चेरी सबके आकर्षण का केंद्र बन जाती। क्लास में साथ की लड़कियां उसे छेड़तीं—

‘एक बात बता चेरी, तुझे ये चेरी नाम किसने दिया है? बड़ा सार्थक नाम है। एकदम गुलाबी चेरी जैसी दिखती है।‘

‘अपनी बुद्धि और सुंदरता का ज़रा सा अंश हमे भी दे- दे, चेरी।‘

चेरी सोच में पड़ जाती, किसने दिया उसे यह नाम? पता नहीं क्यों उसे लगता, यह नाम पापा का दिया नहीं हो सकता। क्या उसे यह नाम, उसकी उस माँ ने दिया था?

लड़के उसे देख आंहें भरते – ‘काश् यह मीठी चेरी हमे मिल जाए।‘

सबके कमेंट्स पर चेरी मौन ही रहती। बेहद मित-भाषी और मृदु स्वभाव वाली चेरी अपनी अध्यापिकाओं की भी प्रिय छात्रा थी। यह तो बाद में पता लगा कि उसकी माँ अमरीकी थीं। ना जाने क्यों पापा और उसकी दूसरी माँ उसके साथ मेहमानों जैसा व्यवहार करते। उनके बीच एक अव्यक्त सी दूरी बनी रहती। उसके पापा इस बात का ख़ास ख्याल रखते कि चेरी किसी के साथ ज़्यादा घुले- मिले नहीं। हर महीने पापा उससे कुछ कागज़ातों पर साइन कराते वक्त कहते-

‘तेरी पढाई के लिए इंश्योरेंस कराया है, ताकि तू खूब आगे तक पढ सके।‘

जब कभी चेरी अपनी सहेली मीना के घर जाती तो उन माँ -बेटी के बीच माँ-बेटी के सहज-स्वाभाविक स्नेह को देख कर सोचती, शायद अगर उसकी अपनी माँ होती तो वह भी उसे वैसे ही प्यार करती। घर में पापा और मम्मी से वह कभी खुल कर बात नहीं कर पाती। रिश्तेदारों के नाम पर पापा की बस एक बड़ी बहिन कालिंदी बुआ भर हैं। अमरीका में पढाई पूरी कर, अब वह पति के साथ कीनिया में बस गई हैं। चेरी की ग्यारहवीं वर्षगांठ पर कालिंदी बुआ आई थीं। चेरी को उन्होंने खूब प्यार किया था। चेरी के मानस में अपनी माँ की कोई स्मृति नही थी। जब कभी पापा से माँ के बारे में कुछ जानना चाहा, पापा ने घृणा-पूर्ण शब्दों में बताया था—

‘वह औरत के नाम पर कलंक थी। तुझ नन्हीं बच्ची को मेरे पास छोड़ एक ग़ैर मर्द के साथ भाग गई।‘

‘पापा, मुझे माँ अपने साथ क्यों नहीं ले गई? क्या वह मुझे प्यार नहीं करती थीं?’ चेरी का कोमल मन उदास हो उठता।

“उसे अपनी ऐयाशी के लिए आज़ादी चाहिए थी। तू तो उसकी आज़ादी की राह में कांटा बनती। नशा कर के वह तुझे जिस बेरहमी से पीट डालती कि सह पाना कठिन हो जाता। रोकने पर गुस्से में मेरी शर्ट तक फाड़ डालती।‘

चेरी दहशत में आ जाती। क्या सचमुच उसकी माँ अपनी नन्हीं बेटी को उस निर्दयता से पीटती थी? पापा से अपनी माँ के घृणित कृत्यों को सुनती चेरी अंतर्मुखी और कुंठित होती गई। उसके मन में माँ के प्रति आक्रोश पनपता, क्यों वह उसे अकेला छोड़ गई? अगर पापा उसे अपने साथ इंडिया ना लाते तो उसकी क्या नियति होती? शायद इसी लिए चेरी ने अपना पूरा ध्यान पढाई और स्कूल-कॉलेज की दूसरी ऐक्टिविटीज़ पर केंद्रित कर लिया। हर परीक्षा में प्रथम आने वाली चेरी डिबेट, नाटक के अलावा खेलों में भी सबसे आगे रहती। कत्थक नृत्य करती चेरी, अपने नृत्य से मानो राधा को साकार कर देती। दर्शक मंत्र-मुग्ध रह जाते।

अचानक कालिंदी बुआ के आने की ख़बर ने चेरी को उत्साहित कर दिया। बुआ के आने से घर की एकरसता टूटने का पूरा विश्वास था। अपने जीवंत हंसमुख स्वभाव के कारण वह घर में रौनक ला देतीं।

नियत दिन कालिंदी बुआ आ गईं। चेरी को सीने से चिपटाती, वह कुछ कहते-कहते रुक गईं। उनकी हंसी और ढेर सारी मज़ेदार बातों से घर का माहौल खुशनुमा हो गया। चेरी पर उनका विशेष स्नेह था। चेरी भी उनके साथ सहज ही खुलती गई। उनके प्यार और अपनत्व में चेरी भीग जाती। कालिंदी में उसे ममतामयी माँ दिखती। उसकी दूसरी माँ ने उससे हमेशा एक दूरी बनाए रखी। कॉलेज की ढेर सारी बातें सुनती कालिंदी, चेरी की बुआ, कम मित्र ज़्यादा बन गई थीं।

‘सच बता चेरी, तेरा क्या कोई ब्वॉय फ़्रेंड नहीं है?’

‘नहीं, बुआ। पापा कहते हैं लड़कों से दोस्ती करना ठीक नहीं होता। उन पर कभी यकीन नहीं करना चाहिए।‘भोलेपन से चेरी बताती।

‘हूं, ऐसा कहते हैं तेरे पापा।‘कुछ कहना चाह कर भी कालिंदी चुप रह जातीं। उनके चेहरे के भाव चेरी पढ नहीं पाती।

कालिंदी बुआ अमरीका में रही थीं, चेरी का जी चाहता वह उनसे अपनी माँ के बारे में कुछ पूछे, पर साहस नहीं कर पाती। किसी के भी सामने माँ का नाम लेने की पापा ने सख़्त मनाही जो कर रखी थी।

चेरी की एम0 ए0 परीक्षा का रिज़ल्ट आया था। हमेशा की तरह चेरी ने सर्वोच्च स्थान पाया था। माँ और पापा बाहर गए हुए थे, घर में बस कालिंदी बुआ ही थीं। उत्साहित चेरी ने उन्हें अपना रिज़ल्ट दिखाते हुए खुशी से बताया-

‘बुआ, मैं फ़र्स्ट आई हूं। पूरे हिस्ट्री- डिपार्टमेंट के पांच वर्षों में इतने अंक किसी को नहीं मिले हैं। नया रिकार्ड बनाया है मैंने।‘चेरी की आवाज़ में खुशी छलकी पड़ रही थी। गोरा चेहरा खुशी से चमक रहा था।

‘ऐसा तो होना ही था, आखिर तू बेटी किसकी है? तू हर बात में बिल्कुल अपनी माँ पर गई है, चेरी।‘ चेरी के चेहरे को मुग्ध दृष्टि से देखती कालिंदी ने कहा।

‘आप माँ को जानती थीं, बुआ?’ पहली बार चेरी ने अपनी माँ के लिए किसी से तारीफ़ के शब्द सुने थे।

‘मैं मेडिसिन में एम0एस0 करने अमरीका गई थी कुछ दिनों तक भैया और नैनसी भाभी के साथ रही थी। पुअर नैनसी, अब तो वह इस दुनिया में ही नहीं है। कालिंदी की हल्की सी उसांस चेरी से छिपी नहीं रही।

‘बुआ, प्लीज़ बताइए, मेरी माँ कैसी थीं। पापा तो उनका नाम भी नहीं लेना चाहते।‘चेरी का रोम-रोम कान बन गया था।

‘देख चेरी, अगर तेरे पापा नैनसी का नाम भी नहीं लेना चाहते, तो उसे भुला देने में ही तेरी भलाई है।‘

‘अच्छा, तो बस इतना बता दीजिए माँ कहां रहती थीं, क्या काम करती थीं? प्लीज़ बुआ।‘ चेरी की आवाज़ भीग सी गई।

‘कमाल है, वीरेश ने तुझे यह भी नहीं बताया? तेरी माँ अमरीका की यूनीवर्सिटी में हिस्ट्री की प्रोफ़ेसर थीं। नैनसी बहुत पॉपुलर टीचर थी।‘

‘माँ कौन सी यूनीवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थीं, बुआ?’

‘जाने दे चेरी, अब वो सब जान कर क्या करेगी। अगर तेरे पापा को पता चल गया तो बेकार में नाराज़ होंगे।

‘मैं वादा करती हूं, बुआ, मैं पापा से कुछ नहीं कहूंगी। ट्रस्ट मी, बुआ।‘

‘तेरी माँ यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन में पढाती थी। याद रख, तेरे पापा को इस बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए। तुझे देखकर नैनसी याद आ जाती है। आज तेरा रिज़ल्ट देख कर उसका नाम मुंह से निकल गया। वीरेश भैया ने नैनसी के बारे में बात करने से मना किया था, पर आज अचानक रुक नहीं सकी।

‘एक बात बताइए, आप माँ को पसंद करती थीं, बुआ?’

‘मुझे नैनसी में नापसंद करने लायक कभी कुछ नहीं दिखा। वह अपने विभाग और बाहर वालों के बीच भी बहुत लोकप्रिय थी। शायद यह दुर्भाग्य ही रहा कि वीरेश और नैनसी साथ नहीं रह सके।‘

‘मम्मी मुझे छोड़ कर किसी और के साथ क्यों चली गईं, बुआ।‘

‘क्या- - -आ? यह तुझे किसने बताया? मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता। कालिंदी के चेहरे पर ढेर सारा विस्मय स्पष्ट था।

उस रात चेरी सो नहीं सकी। दो वर्ष की बच्ची के रूप में चेरी, माँ की यादें ढूंढने की असफल चेष्टा कर रही थी। देर रात तक जागने के बावजूद माँ की धुंधली सी छवि भी मानस में नहीं उभर रही थी। अचानक माँ के बारे में जानने की तीव्र इच्छा हो आई। वह सोच में पड़ गई, क्या यह मात्र संयोग था, जिस विषय की माँ व्याख्याता थीं, उसी इतिहास विषय मे उसने एम0 ए0 की डिग्री ली है।

दूसरे दिन लाइब्रेरी में अमरीकी विश्वविद्यालयों के पते कैटेळॉग में ढूंढते हुए, जब यूनीवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन का हिस्ट्री डिपार्टमेंट दिखा तो मानो चेरी ने कोई ख़ज़ाना पा लिया। डिपार्टमेंट की अध्यक्षा मिशेल पीटरसन के नाम लिखे पत्र में अपनी माँ नैनसी के नाम का उल्लेख करते हुए, चेरी ने अनुरोध किया था कि वह उनके विभाग से शोध-कार्य करना चाहती है। जहां कभी उसकी माँ पढाती थी, उस विश्वविद्यालय में शोध-कार्य करना उसका स्वप्न है। पत्र के साथ उसने अपने परीक्षा- परिणामों का भी विवरण संलग्न कर दिया। पत्र भेजने के बाद चेरी उत्तर की प्रतीक्षा उत्सुकता से कर रही थी, क्या उसे एडमीशन मिल सकेगा?अचानक उसके नाम फ़ोन आया था, फ़ोन पर स्वयं मिशेल पीटरसन थीं।

‘चेरी, माई डियर, तू कहां है? यहां जल्दी आ जा, मैं तेरा वेट कर रही हूं।‘

‘मैडम, क्या मुझे एडमीशन मिल सकेगा? धड़कते दिल से चेरी ने प्रश्न किया था। ‘हमारी नैनसी की बेटी यहां से पीएच- डी करेगी, यह जान कर बहुत खुशी है। तेरे रिज़ल्ट के आधार पर एडमीशन के साथ तुझे स्कॉलरशिप भी मिल जाएगी, तू चिंता मत कर्।‘

‘मेरे पास तो पासपोर्ट भी नहीं है। क्या करूं?’ चेरी डर सी गई।

‘तेरा जन्म अमरीका में हुआ है, तू अमरीकन सिटीज़न है। अमरीकन एम्बैसी तेरी मदद करेगी। मैं ज़रूरी कागज़ात तेरे अलावा एम्बैसी को भी भेज रही हूं। तेरा पासपोर्ट बन जाएगा। देर मत कर्।‘

मिशेल पीटरसन की बातों ने चेरी के मन में आशा और साहस का संचार कर दिया। मीना को साथ ले कर चेरी एम्बैसी गई थी। भाग्यवश उसके स्कूल के सर्टिफ़िकेट पर भी उसका जन्म स्थान अमरीका लिखा हुआ था। कम्प्यूटर ने उसके जन्म स्थान की पुष्टि कर दी। एम्बैसी से शीघ्र पासपोर्ट बनाए जाने का अश्वासन पा, उत्साहित चेरी घर लौटी थी। मिशेल पीटरसन ने ज़रूरी फ़ार्म आदि भेज कर चेरी से जल्दी कारर्वाई करने को कहा था। फ़ार्म भर कर भेजने के बाद हिम्मत जुटा कर, चेरी ने अपने पापा से कहा था-

‘पापा, मैं अमरीका से पीएच- डी करना चाहती हूं। मुझे एड्मीशन मिल गया है।‘

‘क्या- - -आ? वीरेश जैसे आकाश से गिरे।

‘जी,पापा। अमरीका से पीएच- डी करना मेरा स्वप्न है। सौभाग्य से मुझे अवसर मिल रहा है। मैं यह चांस नहीं छोड़ सकती, पापा।‘

‘नहीं बिल्कुल नहीं। तू अमरीका नहीं जा सकती। मैं नहीं चाहता वहां के दूषित माहौल में तू सांस भी ले।

‘प्लीज़ पापा, मुझे आशीर्वाद दीजिए, रोकिए नहीं। मुझे बस प्लेन के टिकट भर के पैसे चाहिए। वहां के खर्चों के लिए मुझे स्कॉलरशिप मिल रही है।

‘कौन सी यूनीवर्सिटी तुझे स्कॉलरशिप दे रही है, ज़रा मैं भी तो सुनूं।‘

‘यूनीवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन-------‘

‘ख़बरदार जो यह नाम मुंह से फिर निकाला। मेरी बिना इजाज़त यह सब किसके कहने पर किया है। एक बार कह दिया तू नहीं जा सकती समझी। ‘क्रोध से वीरेश की आंखें लाल हो गईं।

‘एक बार उस जगह को देखना चाहती हूं, पापा, जहां आप और मम्मी ने मुझे जन्म दिया है। वादा करती हूं, कोई ग़लती नहीं करूंगी। पापा, मुझे जाने दीजिए।‘चेरी की आँखों से आंसू बह निकले।

‘नहीं, यह असंभव है। अगर तू गई तो तेरे साथ हमेशा के लिए मेरा रिश्ता ख़त्म, यह बात अच्छी तरह से समझ ले फिर अपना फ़ैसला ले। बाद में पछ्ताएगी तो मैं माफ़ नहीं करूंगा।‘कड़ी आवाज़ में वीरेश ने चेरी को चेतावनी दे डाली।

‘चेरी का अमरीका जाना क्यों असंभव है, वीरेश? बेटी को इतना अच्छा चांस मिल रहा है, तू बाधा क्यों डाल रहा है? इतनी ज़हीन बेटी की राह में क्यों रोड़े अटका रहा है। अगर तू प्लेन के टिकट के पैसे नहीं देगा तो मैं दूंगी।‘अचानक कालिंदी ने आ कर दृढ शब्दों में अपनी घोषणा कर डाली।

‘आप कुछ नहीं जानतीं, दीदी। इसका वहां जाना ठीक नहीं है। एक बार कह दिया सो कह दिया। ‘ ‘क्यों ठीक नहीं है, वीरेश? अपना जन्म स्थान देखने के अलावा चेरी वहां से डॉक्टरेट की डिग्री भी तो लाएगी इससे तेरा भी तो सम्मान बढेगा। कितनी लड़कियों को अपने बलबूते ऐसा अवसर मिल पाता है? तुझे तो चेरी को शाबाशी देनी चाहिए।‘

‘मैं जानता हूं यह वहां से वापस नहीं आएगी। वहां के माहौल में अपना घर भूल जाएगी। अच्छाई इसी में है कि यह अमरीका के सपने देखना भूल जाए। मैं दावे के साथ कह सकता हूं, यह वापस नहीं आएगी। इस देश में क्या अच्छे विश्वविद्यालयों की कमी है? पीएच-डी यहां से भी तो कर सकती है। ‘ क्यों वीरेश , तू वापस आया या नहीं? बेकार का डर छो्ड़। चेरी चल, तू अपने जाने की तैयारी कर। मैं तेरी मदद करती हूं।‘

कालिंदी बुआ के प्रति चेरी कितनी कृतज्ञ थी। कालिंदी के सहयोग से सब कुछ कितना आसान हो गया। अनुभवी कालिंदी बुआ ने सभी आवश्यक चीज़ों की लिस्ट बना कर खरीददारी कराई थी। अमरीका के जीवन पर तो ख़ासा लेक्चर ही दे डाला। उन सब तैयारियों के बीच चेरी के पापा न जाने कहां चले गए। चेरी के उदास चेहरे को देख कालिंदी उसके मन की बात समझ गई। प्यार से समझाया था-

‘परेशान मत हो, चेरी। तुझ से अलग होने की बात से वीरेश उदास है। कुछ दिनों में वह ठीक हो जाएगा। कल तेरी फ़्लाइट है, देख लेना तुझे छोड़ने वीरेश एयरपोर्ट पर ज़रूर आएगा। पापा ने चेरी को निराश ही किया, कहां पहुंचे पापा? उसे छोड़ने बस कालिंदी ही आई थीं कहां चले गए पापा, ऐसा क्यों किया,क्यों पापा?

नम पलकों के साथ प्लेन में बैठी चेरी का मन प्लेन की गति से तेज़ उड़ान भर रहा था। अमरीका पहुंचने की उत्सुकता के साथ मन में संशय भी था। मिशेल मैडम ने चेरी को सीधे उनके घर पहुंचने के निर्देश दिए थे। घर का पता, टेलीफ़ोन नम्बर के साथ आवश्यक जानकारियां भी दी थीं। उनकी बातों से लग रहा था वह नैनसी से बहुत प्यार करती थीं। चेरी सोच रही थी कैसा होगा वह विश्वविद्यालय जहां उसकी माँ पढाती थी। अब वह, उनकी बेटी, उसी विश्वविद्यालय में शोध-कार्य के लिए जा रही थी। न जाने क्यो मन भारी हुआ जा रहा था।

टैक्सी से मिशेल पीटरसन के घर पहुंची चेरी ने डोर-बेल बजाई थी। दरवाज़ा स्वयं मिशेल ने खोला था। सफ़ेद बालों में उनका ममतामय चेहरा चेरी को देख कर खिल उठा। भावविह्वल वह कह बैठीं- -

‘ओह माई ग़ॉड! मेरी नैनसी वापस आ गई। तू अपनी माँ की कॉर्बन कॉपी है, चेरी। आई होप यू हैड अ कम्फ़र्टेबल जर्नी।‘

बात खत्म करती मिशेल ने चेरी को सीने से चिपटा लिया। आँखें नम हो आईं। प्यार से चेरी को कंधे से पकड़ मिशेल,चेरी को लिविंग रूम में ले गईं। चेरी की पीठ पर स्नेह् भरा हाथ फेर मिशेल चेरी के लिए कोल्ड-ड्रिंक लाने चली गईं। सोफ़े पर बैठी चेरी की दृष्टि सामने दीवार पर लगी तस्वीर पर अटक गई। तस्वीर की स्त्री के चेहरे से चेरी के चेहरे का अदभुत साम्य था। कोल्ड-ड्रिंक थमाती मिशेल, चेरी की दृष्टि का अनुसरण करती हुई बोलीं-

“मेरे घर में अपनी माँ की तस्वीर देख कर ताज्जुब हो रहा है, चेरी? सच तो यह है, नैनसी सिर्फ़ इस तस्वीर में ही नहीं मेरे दिल में भी बसी है।‘

“क्या यह मेरी माँ की तस्वीर है?’

‘क्या तूने अपनी माँ की तस्वीर भी नहीं देखी है?’ चेरी के उस सवाल पर मिशेल विस्मित थीं।

चेरी ने जवाब में नकारात्मक सिर हिला दिया। आँखों में अपरिचय का भाव था।

‘हाउ मीन ऑफ़ दैट चीट्। पर उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी।

‘आप किसकी बात कर रही हैं, मैडम? चेरी चौंक सी गई।

‘एक माँ से उसकी बेटी को चुरा कर भागने वाला धोखेबाज़---मेरा मतलब पुअर नैनसी के सो कॉल्ड हसबैंड से है। मिशेल के चेहरे पर आक्रोश था।

‘यह आप क्या कह रही हैं, मैडम्। यह सच नहीं है। सच यह है कि पापा को छोड़ कर, किसी और के साथ जाते वक्त मम्मी मुझे पापा के पास छोड़ गई थीं।‘

‘व्हाट नॉनसेंस! इतना बड़ा झूठ बताया है उस रास्कल ने। तेरी माँ आखिरी सांस तक तेरी याद में घुलती रही। तुझे खोजने इंडिया तक गई, पर वह तुझे लेकर न जाने किस बिल में छिप गया था। निराश नैनसी वापस आ गई। अपनी बच्ची की याद में आंसू बहाती नैनसी की ज़िंदगी में कई पुरुषों ने खुशियां भरने की कोशिश की, पर वह अपने उसी धोखेबाज़ पति और बेटी की व्यर्थ प्रतीक्षा करती रही। उसकी तो जीने की चाह ही खत्म हो गई थी।‘ मिशेल ने टिशू से अपने आंसू पोंछ डाले।

स्तब्ध चेरी माँ के जीवन का वह सत्य सुन, कोल्ड-ड्रिंक मुंह से लगाना ही भूल गई।

‘आज तुझे यहां देख कर नैनसी की सोल को बहुत शांति मिलेगी। यहां सब उसे बहुत प्यार करते थे। उसने अपना अकेलापन और दुख मेरे साथ ही बांटा है। सच तो यह है, वह कुछ समय मेरे सहारे जी सकी वर्ना वह तो उसी दिन मर गई थी, जब तेरा बाप तुझे ले कर भाग गया था।

‘काश मैं यहां पहले आ जाती, माँ से मिल पाती---‘चेरी का गला भर आया।

‘कल डिपार्टमेंट में नैनसी को चाहने वालों से मिलकर तुझे अच्छा लगेगा। उसके कुछ स्टूडेंट्स अब यहां लेक्चरर हैं। उनके साथ बातें कर के तू अपनी माँ को और ज़्यादा अच्छी तरह से समझ पाएगी। एक बात, तू मुझे मैडम न कह कर सिर्फ़ मिशेल या आंटी कहे तो खुशी होगी।‘प्यार से मिशेल ने कहा।

‘जी आंटी, आपकी बहुत आभारी हूं। अगर आपसे न मिलती तो मम्मी की जो ग़लत छवि दिखाई गई थी उसकी सच्चाई कैसे जान पाती।‘पलकों पर छलक आए आंसुओं को चेरी ने पोंछ डाला।

डिपार्टमेंट के लेक्चर हॉल में पहुंची चेरी, एक अव्यक्त वेदना से अभिभूत थी। दीवार पर लगी नैनसी के चित्र के नीचे उसके जन्म और मृत्यु की तारीखें अंकित थीं। चेरी से मिलने कुछ युवा लेक्चरर और दो प्रोफ़ेसर आए थे। सभी के पास चेरी को बताने के लिए अपने-अपने यादगार अनुभव थे। पति और बेटी के बिना अकेली रह गई नैनसी ने अपने विद्यार्थियों और साथियों को अपना प्यार दे कर अपना दुख बांटने का प्रयास किया था। मिशेल पीटरसन ने नैनसी को छोटी बहिन से भी ज़्यादा प्यार दिया और नैनसी ने उन्हें बड़ी बहिन जैसा प्यार और सम्मान दे कर, उन्हें हमेशा के लिए अपना बना लिया।

यह वही लेक्चर हॉल था जहां उसकी माँ ने न जाने कितने विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन किया था। आज नैनसी जीवित नहीं है, पर उसकी यादें कितने दिलों में जीवित हैं, पर उसकी एकमात्र बेटी चेरी के पास माँ की एक भी स्मृति नहीं है। याद है तो पापा के मुंह से सुनी झूठी घृणित कहानी। चेरी से कुछ कहने के अनुरोध पर चेरी ने कहा—

‘सॉरी। प्लीज़ एक्स्क्यूज़ मी। मैं बस आपके शब्दों में माँ को देखना चाहती हूं।‘

उन सब के अनुभवों ने चेरी को उसकी माँ की एक दूसरी ही ममतामयी, उदार, स्नेही स्त्री की छवि दिखाई थी। काश् वह माँ के जीवन-काल में आ पाती। रात में मिशेल ने चेरी को एक डायरी और कुछ कागज़ात थमाते हुए कहा-

‘अपने अंतिम दिनों में नैनसी ने ये सब देते हुए कहा था- ‘मुझे यकीन है, एक दिन मेरी चेरी मुझे ढूंढती हुई यहां आएगी। उसे मेरी डायरी और मेरी वसीयत के कागज़ात दे देना। मेरा सब कुछ उसके नाम है। पहले जो कुछ उसके नाम किया था, वो सब तो उसका बाप चोरी कर के ले गया। अगर मेरी बेटी न आ पाए तो मेरा सब कुछ चैरिटी मे दे देना।‘

आंसुओं से धुंधली हो आई नज़र से चेरी ने डायरी के पृष्ट पलटे थे---

‘हेड ऑफ़ दि डिपार्टमेंट ने “भारत के मुग़लकालीन स्मारकों का इतिहास” विषय डेजर्टेशन के लिए दिया है। मैंने विषय को बस दिल्ली और आगरा तक सीमित रखने की परमीशन ले ली है। भारत यात्रा को ले कर बहुत उत्साहित हूं।‘

‘आगरा में पहला दिन!

ताज़महल को देख कर अभिभूत हूं। प्यार का प्रतीक इतना भव्य मकबरा? मेरे सोच को पीछे से आई एक आवाज़ ने तोड़ा था।

‘अगर आप ताज़महल का इतिहास जनना चाहती हैं तो बंदे से ज़्यादा अच्छा गाइड नही मिल सकेगा।‘

नज़र उठाते ही एक मुस्कराता युवक दिखा था।

‘मैं वीरेश पाठक, हिस्ट्री विषय में एम0 ए0 की डिग्री ली है। आपका यह गाइड क्या आपकी मदद कर सकता है?’

‘ओह श्योर, पर एम ए की डिग्री ले कर भी गाइड क्यों बने हैं? कोई दूसरा काम भी तो कर सकते हैं।‘ मैं अचानक पूछ बैठी।

‘मेरे ख़्याल में कोई भी काम छोटा नही होता, मिस। इन स्मारकों को देख कर लगता है, मेरा इनसे कोई पुराना नाता है। इनके बारे में दूसरों को बताने में बहुत आनंद मिलता है।‘वीरेश गंभीर हो उठा।

वीरेश ने जैसे ताज़ को साकार कर दिया। मैं सोचती, क्या हिंदुस्तान का बादशाह मुमताज़ के प्यार में इस कदर डूब गया था। वीरेश को मैं मंत्र-मुग्ध सुनती रह जाती। सिकंदरा और एतमाद्दौला के बाद आगरे के किले के बारे में बताते वीरेश ने मानो आँखों के सामने तस्वीरें ही उतार दी थीं। वीरेश सचमुच अदभुत गाइड है। अब दिल्ली जाना है क्या वीरेश मेरे साथ दिल्ली जा सकेगा?’

‘मुझे दिल्ली के स्मारकों को स्टडी करना है। क्या आप मेरे साथ दिल्ली चल सकते हैं? वीरेश से पूछा था।

‘दिल्ली क्या अगर आप कहें तो मैं आपके साथ अमरीका तक चल सकता हूं। उसकी शैतान मुस्कान पर मैं लाल हो उठी।

दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारक दिखाते वीरेश के साथ समय गुजारना स्वप्न जीने सा लगता। अचानक एक दिन मुझे प्रोपोज़ कर वीरेश ने चौंका दिया, पर क्या मैं इसी पल की प्रतीक्षा नहीं कर रही थी?


‘आपके लायक तो नहीं हूं, पर आपको बेहद चाहने लगा हूं। क्या मुझे जीवन साथी के रूप में स्वीकार कर सकेंगी? न कहने का सवाल ही कहां था? हम दोनों हमेशा के लिए एक हो गए।‘

मुझे लेक्चररशिप मिल गई है, व्यस्तता बढ गई है। वीरेश से विवाह कर खुश हूं, पर वीरेश का समय कैसे कटेगा? वैसे वीरेश मस्त हैं, उसे काम करने की कोई जल्दी नहीं है। सिर्फ़ टीवी देख कर तो समय नहीं बिताया जा सकता। आज मै बहुत खुश हूं, मेरे अनुरोध पर हेड ने वीरेश को टीचिंग असिस्टेंट्शिप दे दी है।

हेड ने शिकायत की है, वीरेश काम के प्रति सीरियस नहीं हैं। मेरी बात भी अनसुनी कर जाते हैं। घर में फ़ोन पर न जाने किसके साथ घंटों बातें करते रहते हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई प्रेमी अपने प्यार का इज़हार कर रहा हो। मैं हिंदी भाषा नहीं समझती। फ़ोन के भारी बिल देख कर पूछने पर कहते हैं मित्रों के साथ हंसी मज़ाक चलता है। परदेश में अपनों से भी बात न कर पाएं तो मन उदास हो जाता है। शायद यह बात सच है।

डायरी पढती चेरी अचानक रुक गई। कालिंदी बुआ ने ही तो बताया था, उसकी दूसरी माँ, पापा के साथ पढती थी। दोनो शादी करना चाहते थे, पर पापा के पास कोई बड़ी नौकरी या पैसे नहीं थे। अमरीका से पापा काफ़ी पैसे कमा कर लौटे थे। पापा ने अपनी उसी प्रेमिका के साथ शादी की है। चेरी को विश्वास हो गया, मम्मी का शक ठीक ही था। पापा फ़ोन पर अपनी प्रेमिका के साथ ही बातें करते होंगे। चेरी ने अगला पृष्ठ खोला—

‘आज मैंने एक फूल सी बच्ची को जन्म दिया है। मेरा जीवन सार्थक हो गया। इसका नाम चेरी रक्खूंगी। यह हमारे जीवन में चेरी की मिठास ले कर आई है। वीरेश को काम ना करने का बहाना मिल गया है। बेटी के साथ वह घर में ही वक्त गुजारते हैं।

‘हम दोनों का ज्वाइंट अकाउंट है। वीरेश बेहिचक पैसे निकालते हैं। उन्हें भविष्य की कोई चिंता नहीं है। मैंने चेरी के नाम से कुछ फ़िक्स्ड डिपोज़िट और एजुकेशन का इंश्योरेंस लिया है। उसे ऊंची शिक्षा दिलाने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। न जाने क्यों वीरेश की कोशिश रहती है, चेरी बस उनके साथ ही रहे। चेरी मेरी सजीव गुड़िया है। उसे कितना भी प्यार करूं मन नहीं भरता।‘

‘आज सुबह उठने पर चेरी और वीरेश घर में नहीं मिले। शायद चेरी को ले कर वीरेश पार्क गए होंगे। आज मेरा एक प्रेजेंटेशन है, लौटने में देर हो जाएगी। वीरेश को पहले ही बता दिया है। उन्होंने आश्वस्त किया है, वह चेरी को सम्हाल लेंगे।‘

‘चेरी को ले कर वीरेश न जाने कहां चले गए है। देर रात होने पर पुलिस में रिपोर्ट लिखाई है। मिशेल की तसल्ली पर भी आंसू नहीं रुक रहे हैं। ना जाने किस हाल में होगी मेरी बच्ची। अचानक जो सूचना मिली उसने स्तब्ध कर दिया। मुझे सोता छोड़, पिछली रात ही चेरी को साथ ले कर वीरेश फ़्लाई कर गए थे। अब तक तो वह इंडिया भी पहुंच गए होंगे। हाय मेरी बच्ची, मैं पछाड़ खा कर गिर पड़ी। मेरे ज़ेवर, कैश इंश्योरेंस के कागज़ात सब गायब थे।

रोती हुई चेरी न जाने कब सो गई। सवेरे मिशेल ने प्यार से जगाया था।

‘अपनी माँ का घर देखना चाहेगी, चेरी?

‘क्या मम्मी का यहां कोई घर है, आंटी? चेरी का विस्मय स्वाभाविक था।

‘हां वैसे तो घर अभी स्टेट- कस्टडी में है, पर नैनसी ने इंस्ट्रक्शन दे रक्खे हैं, अगर कभी उसकी बेटी आ जाए यह घर उसका होगा। पैंतीस वर्षों तक यदि चेरी ना आए तो यह घर किसी ऑरफ़ेनेज को दे दिया जाए।

‘ओह मम्मी, मैं आ गई हूं, पर तुम क्यों नहीं हो? मेरा इंतज़ार क्यों नहीं किया?’ चेहरा ढांप चेरी रो पड़ी।

‘काम डाउन चेरी। क्या यही काफ़ी नहीं है कि तू नैनसी के यकीन को सच करने आ गई। वैसे अगर पढाई पूरी करने के बाद तू इंडिया वापस जाना चाहे तो अपने घर को बेचने या चैरिटी में देने का तुझे पूरा अधिकार होगा।‘

‘मैं अब कभी इंडिया वापस नहीं जाऊंगी, आंटी। मम्मी के घर में रह कर, उनकी यादों को जीना चाहूंगी।‘आंसू पोंछ चेरी माँ के घर जाने को तैयार थी।

एक सूना उदास घर, मानो किसी की प्रतीक्षा कर रहा था। बंद दरवाज़े खुलने को तैयार थे। घर की उदासी को झुठलाता, एक चेरीब्लॉसम का पेड़ अपने पूर्ण दर्प के साथ गुलाबी फूलों से लदा मुस्कराता सा लग रहा था, मानो उसकी प्रतीक्षा पूर्ण हो गई थी।

‘यह पेड़ तेरी माँ ने तेरी याद में लगाया था, चेरी। अक्सर इसी पेड़ के नीचे बैठी नैनसी पुराने एलबमों में तुझे खोजती आंसू बहाती थी। यह पेड़ नैनसी के आंसुओं से सिंचित है।‘मिशेल की आवाज़ भीग आई।

अचानक मिशेल का साथ छोड़, चेरी भाग कर चेरीब्लॉसम के तने से जा चिपटी।

‘मम्मी—मम्मी---‘

चेरी की आंखें बरस रही थीं। हवा के झोंके से झरते फूल मानो उसे नैनसी का आशीर्वाद दे रहे थे।