याद / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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काकी दस वर्षीय उदय को सदा के लिए अकेला छोड़ गई.

उदय अपने दोस्त के साथ खेल रहा था। दोस्त खेल से थक-थका कर घर जाने को उतावला था। उसने कहा 'मैं जा रहा हूँ। मम्मा ने कहा था जल्दी आना।'

'मेरी मम्मा तो कुछ नहीं कह सकती मुझे'।

'क्यों?'

'वो मर गई न?'

'तो क्या, आ जाएगी।'

'मरने वाले कभी नहीं आते।'

'तुझे कैसे पता?'

'मेरी मम्मा कहती थीं कि जाने वाले की याद आती है। वह नहीं आता। पता है मम्मा यह भी कह कर गई कि जो काम कहूँ वे करना। मम्मा ने कहा' रोना मत', मैं नहीं रोता। मम्मा ने कहा' जिद्द मत करना', मैं नहीं करता। मम्मा ने कहा' बाहर का खाना मत खाना', मैं नहीं खाता। मम्मा ने कहा' बड़ा आदमी बनना', मैं बनूँगा।'

'तेरी मम्मा तो आकर देखने वाली नहीं। तू कुछ भी कर ना।'

'अरे नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर मेरा कहा नहीं किया तो वह मेरी यादों में भी नहीं आएंगी। इसलिए उनका कहा तो करना ही होगा। मुझे माँ चाहिए. चाहे याद में ही सही।'