याद : झिलमिल सितारों का आंगन / जयप्रकाश चौकसे

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याद : झिलमिल सितारों का आंगन

प्रकाशन तिथि : 27 जून 2012

'नो वन किल्ड जेसिका' जैसी सार्थक सफल फिल्म रचने वाले राजकुमार गुप्ता आजकल अपनी अगली फिल्म 'घनचक्कर' लिखने में व्यस्त हैं। इस फिल्म के लिए विद्या बालन, इमरान हाशमी अनुबंधित किए जा चुके हैं और कुछ और भूमिकाओं के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सितंबर से इसकी शूटिंग शुरू करने की योजना है। खबर है कि इस भूमिका के लिए विद्या बालन अपना वजन बढ़ाने जा रही हैं। इस समय बॉक्स ऑफिस पर भी उनका वजन अच्छा-खासा हो चुका है। 'द डर्टी पिक्चर' की बिंदास छवि के बाद 'कहानी' जैसी फिल्म को चला ले जाना उनकी पुख्ता सितारा हैसियत का परिचय देते हुए परचम भी बन जाता है। इसी तरह महेश भट्ट द्वारा बनाई गई अपनी छवि से बाहर निकलकर इमरान हाशमी ने 'शंघाई' में अपनी अभिनय प्रतिभा का सिक्का जमा दिया है। आजकल किसी और ही पैमाने पर विद्या व हाशमी वैसे ही सफल हैं, जैसे कभी शाहरुख-काजोल की जोड़ी होती थी। सारे सितारों की लोकप्रियता के अपने दायरे हैं, जैसे फारुख शेख और दीप्ति नवल की जोड़ी अमिताभ बच्चन और रेखा के जमाने में अपना स्थान रखती थी। इसका यह अर्थ नहीं कि विद्या-इमरान महज फारुख और दीप्ति हैं। आज बॉक्स ऑफिस के पैमाने भी बदल गए हैं। लाखों को टकों की तरह समझा जाता है।

बहरहाल राजकुमार गुप्ता की इस फिल्म के एक हिस्से में इमरान हाशमी अभिनीत पात्र की याददाश्त चली जाती है, परंतु बेखबरी के उन दिनों में भी उसे अपनी पत्नी के जन्मदिन की याद है। दरअसल याद में गहरे पैठे हुए लोग भूल जाने के दौर में भी सबसे पहले याद आते हैं, गोयाकि लोहे की तरह भारी-भरकम याद जीवन के समुद्र में लकड़ी की तरह सतह पर तैरते नजर आती है और हलकी-फुलकी चीजें डूब जाती हैं। याद के मामले में गुरुत्वाकर्षण के नियम अलग होते हैं। याद का रसायन और भौतिकी किसी प्रयोगशाला के दायरे में नहीं समाती। कुछ लोग यह मानते हैं कि मनुष्य अपनी पसंद की चीजों को कभी नहीं भूलता, परंतु नफरत और प्रतिहिंसा के हवन में होम होने वाली बुरी बातों को ही कुछ लोग नहीं भूल पाते, इसीलिए बदले की बातें पीढिय़ों तक चलती रहती हैं।

इलिया कजान की 'द अरेंजमेंट' नामक किताब में कॉर्पोरेट जगत के शिखर पुरुष की दुर्घटना होती है और नीम बेहोशी से उभरते क्षणों में वह डॉक्टर को यह कहते सुन लेता है कि इस तरह की दुर्घटनाओं में याददाश्त जा सकती है। वह इस तथ्य का लाभ उठाने के लिए याद गुम होने का अभिनय करने लगता है, परंतु इसी खेल में ये तथ्य भी सामने आते हैं कि न पत्नी उसे प्यार करती है और न ही प्रेमिका और बच्चों को भी उसके द्वारा जुटाई गई सुख-सुविधाओं से ही प्यार है। याद खोने का अभिनय उसके पैरों से यथार्थ की जमीन ही खींच लेता है। इलिया कजान बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जो रंगमंच, सिनेमा, साहित्य समेत कई क्षेत्रों में सक्रिय रहे।

याददाश्त खो जाने पर अनेक फिल्में बनी हैं, किताबें लिखी गई हैं, रिश्तों में उलटफेर हुए हैं। दरअसल गुमी हुई याद वाले व्यक्ति के अनुभव हम जान ही नहीं पाते। मृत्यु के क्षण कैसा लगता है, इसके अनुमान ही हैं हमारे पास, जैसे पोटेशियम सायनाइड नामक जहर का स्वाद कोई नहीं जान पाता, क्योंकि बताने के पहले ही मौत आ जाती है। हमारे ज्ञान के दायरे से बड़े हैं हमारे अज्ञान के दायरे। अनुमान और आकलन तथ्यों से ज्यादा शासित करते हैं जीवन को।

विगत् अनेक वर्षों से कहा जा रहा है कि हमारे महानतम अभिनेता दिलीप कुमार की याददाश्त भी उनके साथ धूप-छांह का खेल खेल रही है। किसी को सच्चाई का पता नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस महान कलाकार ने ही मन ही मन यह निश्चय किया हो कि अब उम्र के इस पड़ाव पर वह जीवन नामक फिल्म में याद खोने वाले की भूमिका का निर्वाह करेंगे। इस खेल में 'धूप' रचने से कठिन है 'छांह' का निर्वाह करना। दिलीप कुमार ने ताउम्र भूमिकाएं डूबकर निभाई हैं और एक दौर में उन्हें अपने मनोचिकित्सक की सलाह पर त्रासदी फिल्में अस्वीकार करके हास्य फिल्में करना पड़ीं। इस आखिरी 'भूमिका' को उनके इर्द-गिर्द के लोग त्रासदी समझ रहे हैं और वे इसे हास्य समझकर कर रहे हों। चार्ली चैप्लिन ने कहा था कि लांग शॉट में जीवन हास्य फिल्म लगता है, क्लोज शॉट में तरासदी महसूस होती है। अब उनको क्या कहें जो पूरे जीवन को लांग शॉट्स में फिल्माई कहानी समझते हैं।