या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता / जयप्रकाश चौकसे

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या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
प्रकाशन तिथि : 29 जनवरी 2020

कंगना रनोट अभिनीत ‘पंगा’ और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत ‘मैरी कॉम’ फिल्म में यह समानता है कि दोनों फिल्मों की नायिकाएं बच्चों को जन्म देने के बाद भी खेल-कूद क्षेत्र में सफलता प्राप्त करती हैं। अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना ने कुछ फिल्मों में अभिनय किया है। बच्चों को जन्म देने के बाद वे लेखन क्षेत्र में सक्रिय हुई हैं। नीना गुप्ता ने मसाबा को जन्म देने के बाद भी अभिनय यात्रा जारी रखी है और ‘बधाई हो’ के लिए उन्हें पुरस्कार भी दिए गए हैं। श्रीदेवी ने दो बेटियों को जन्म देने के बाद ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘मॉम’ में यादगार अभिनय किया। हाल में प्रदर्शित ‘तान्हाजी’ में काजोल ने भी वापसी की है।

फिल्में और साहित्य में मां की महिमा को प्रस्तुत किया गया है। मैक्सिम गोर्की की मदर से लेकर पर्ल एस बक की ‘गुड़अर्थ’ और राजिंदर सिंह बेदी की ‘एक चादर मैली सी’ तक में मां सक्रिय रही है। रूस में बनी महान फिल्म ‘बैलेड ऑफ ए सोल्जर’ में फौजी ने बहादुरी के पुरस्कार स्वरूप छुट्‌टी मांगी और अपने साथियों के परिवार को उनके समाचार देने का दायित्व लिया। उसके लिए दिल दहलाने वाला अनुभव था कि वह अपने फौजी मित्र की पत्नी को शरीर बेचते हुए देखता है। वह परिवार को चलाने के लिए जिस्म बेचती है। अपने वोट बैंक के लिए युद्ध की बात करने वाले नेताओं को युद्ध की विभीषिका का ज्ञान ही नहीं है। युद्ध के हवन में विजेता और पराजित दोनों के हाथ झुलस जाते हैं।

अमेरिकन फिल्म में युद्ध के समय बाढ़ आती है। एक मां अपनी युवा विधवा बहू के साथ ऊंचे टीले पर प्रश्रय लेने पहुंचती है। उसकी बहू ने कुछ समय पूर्व ही एक शिशु को जन्म दिया जो मर गया था। उस मकान में एक उम्रदराज आदमी भूखा और बीमार है। सास, बहू से कहती है कि इस भूखे को अपना दूध पिला दे। शायद मदद पहुंचने तक यह जीवित रहे। यह दृश्य फिल्म ‘ग्रेप्स ऑफ रेथ’ का है।

‘मदर इंडिया’ फिल्म के सफल प्रदर्शन के बाद दक्षिण भारत के निर्माता एस.एस. वासन ने नरगिस को प्रस्ताव दिया कि फिल्म के पूरे खर्च के बराबर धन उन्हें अभिनय के लिए दिया जाएगा, परंतु नरगिस ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। कुछ फिल्में सरोगेट मदर नामक विषय पर बनी हैं, जिनमें असहाय स्त्री अपनी कोख उधार देती है। इस करारनामे में कोख उधार देने वाली स्त्री का नाम और परिचय इस तरह गुप्त रखा जाता है कि नागरिकता के रजिस्टर में भी लिखा नहीं जा सकता।

फिल्म मैरी कॉम के क्लाइमैक्स में एक और मां बॉक्सिंग कर रही है, दूसरी ओर उसके शिशु की शल्य चिकिस्ता हो रही है। मां और शिशु दोनों की विजयी होते हैं। मां के महिमा गान में यह भी कहा जा सकता है कि अंग्रेजी शब्द मदर से मां का एम हटाने पर अदर यानी गैर ही रह जाते हैं। मां का गर्भाशय आज भी विज्ञान के लिए चुनौती है। मानव मस्तिष्क की गहन कंदरा भी ऐसी ही रहस्य है।

शबाना आजमी ने मातृत्व की व्याख्या इस तरह की है कि दूसरों के बच्चों को मां की तरह स्नेह देना भी मातृत्व है। विनय शुक्ला की फिल्म ‘गॉड मदर’ में वे अपराध सरगना की भूमिका में प्रस्तुत हुईं। इकलौता पुत्र एक कन्य से प्रेम करता है और वह कन्या किसी और से प्रेम करती है। एक दृश्य में वह कन्या गॉडमदर को सच बताती है। गॉडमदर अपने पुत्र के एक तरफा प्रेम को नजरअंदाज करते हुए उस कन्या का विवाह उसकी इच्छानुसार उसके प्रेमी से कर देती है। कथा में एक पेंच यह भी है कि वह कन्या उसके विरोधी की पुत्री है। बंगाल के अभिनेता विक्टर बनर्जी और शबाना आजमी अभिनीत एक फिल्म में शबाना ने सरोगेट मां की भूमिका अभिनीत की थी। ज्ञातव्य है कि शौकत आजमी पृथ्वी थियेटर्स में कलाकार थीं। पृथ्वीराज ने एक दाया को नियुक्त किया था। जब शौकत मंच पर होती तो दाया शबाना का ख्याल रखती थी। परिंदे अपने नन्हे शिशु के लिए अपने मुंह में अनाज का दाना लेकर आते हैं। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं कि कोयल के नन्हे की रक्षा कौआ करता है। मनुष्य को परिंदों से बहुत कुछ सीखना है। छात्र ही पुरातन अफीम के नशे में गाफिल हैं। मां के मंदिर पहाड़ों पर बने हैं। आशय यह है कि मां को समझाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। जन्म देते समय मां पीड़ा सहती है और इस पीड़ा का कर्ज चुकाया नहीं जा सकता।

शरत बाबू के उपन्यासों में मां के चरित्र को बहुत महत्व दिया गया है। उनके अनेक नारी पात्र, अन्य के शिशुओं को लाड़-दुलार करती हैं। ‘बिराजबहू’ ऐसी ही कथा है। देश और धरती को मदर कहकर संबोधित किया जाता है। ज्ञातव्य है कि गोविंद निहलानी की फिल्म ‘हजार चौरासी की मां’ में जया बच्चन ने अभिनय किया था। यह अत्यंत प्रशंसित फिल्म है।