या मौला सयानों को थोड़ी नादानी दे / जयप्रकाश चौकसे

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या मौला सयानों को थोड़ी नादानी दे
प्रकाशन तिथि : 16 फरवरी 2013


आमिर खान, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, इमरान खान और इमरान हाशमी, सभी शादीशुदा सदाचारी से सितारे हैं और अपनी पत्नियों के अतिरिक्त वे केवल अवॉर्ड में मिली ट्रॉफीज से ही इश्क करते हैं। ऑस्कर को छोड़कर अन्य ट्रॉफीज महिला आकृति से प्रेरित हैं। शिखर सितारों में सलमान खान और रणबीर कपूर अविवाहित हैं। सलमान खान के विषय में 'एक था टाइगर' के एक दृश्य में कैटरीना कैफ कहती हैं कि तुम्हारी गर्लफ्रैंड के बारे में नहीं पूछूंगी, अब तुम्हारी उम्र सीधे विवाह की है। सलमान खान अत्यंत प्रेमल हृदय हैं, परंतु जीवन के इस दौर में उनका फोकस केवल काम है और उसी को वे मोहब्बत की शिद्दत से साध रहे हैं। रणबीर कपूर के प्रेम-प्रसंग प्राय: चर्चा में रहते हैं, परंतु सुर्खियों के लोप होने के पहले ही साथी बदल जाते हैं। वह बेबात कहीं भी भटके, पर लौटेगा हमेशा मां नीतू की पसंद और सहमति पर। आयुष्मान खुराना जैसे एक-दो फिल्में करने वाले भी शादीशुदा हैं।

इस समय फिल्म उद्योग के अधिकांश सितारे केवल काम और धन कूटने में लगे हैं और स्थापित सितारा छवि के अनुरूप कोई अनहोनी नहीं करते। दरअसल उनका जीवन ही फॉर्मूला फिल्म बनकर रह गया है और वे पुराने सितारों की तरह रंगीन मिजाज नहीं हैं। उनकी शराबनोशी भी होम्योपैथी की खुराक की तरह है, वरन स्याही के लिए इस्तेमाल ड्रॉपर से भी गिनकर बूंद डालते हैं।

आजकल के अधिकांश सितारों का जीवन लीक पर चलने वाली गाड़ी की तरह एकरसता से सराबोर है। उनसे बातचीत करें तो आपको वे आंकड़ों में उलझा देंगे। शम्मी कपूर जैसे आचरण वाले सितारे अब नहीं होते। दिलीप कुमार की तरह भी भावना की तीव्रता से इश्क के जुनून में अब कोई नहीं पड़ता। एक दौर में मधुबाला शम्मी कपूर के साथ पूना में शूटिंग कर रही थीं। देर रात दिलीप के मन में मधुबाला से मिलने की इच्छा जागी, वे स्वयं कार चलाकर पूना पहुंचे और छोटी-सी मुलाकात करके सुबह तक मुंबई वापस आ गए। राज कपूर और नरगिस की अंतरंगता परदे पर भी नजर आती है और भरम होता है कि सिनेमाई फ्रेम से बाहर आकर ये गाने लगेंगे 'प्यार हुआ इकरार हुआ' और कहीं सिनेमाघर में ही बरसात न होने लगे। उन दिनों दर्शक छतरी लेकर सिनेमाघर जाते थे। आज के सितारों के जीवन में गुजरे हुए दौर का जुनून नहीं है, वह पागलपन भी नहीं है। आज तो फिल्म उद्योग सयानों से पटा हुआ है। दरअसल इस दौर में वैलेंटाइन-डे तो होता है, पर किसी के पास पल दो पल का अतिरिक्त समय नहीं है। आज का युवा बहुत व्यावहारिक और सयाना है तथा दुनियादारी की सरहदों में ही रहता है।

भौतिक शास्त्र और गणित पढ़ाने वाले एक शिक्षक ने बायलॉजी पढ़ाने वाली युवती से शादी कर ली ताकि ट्यूशन संस्था का मुनाफा घर में ही रहे। गोयाकि लागत की बचत करके मुनाफा मुनाफे से विवाह कर रहा है। इस जुगाड़ू जगत की रीत निराली है, जहां शादी के लिए प्रेम मात्र कोई कारण नहीं है। यह पैकेज डील का दौर है। नौकरियां भी पैकेज के आकर्षण मात्र से बदली जाती हैं। काम के ठीये से निष्ठा अब मूर्खता मानी जाती है। उनका तर्क है कि ठीये से भैंस बंधी रहती है और वे पाउडर मिल्क का ही इस्तेमाल करते हैं।

आज के दौर में 'मधुमती' की तरह गहन सघन प्रेम-कथा कैसे बन सकती है और 'प्यासा' तो असंभव है, जिसका नायक गाए कि 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है'। दरअसल इस अत्यंत सफल दौर में संवेदनहीनता का बोलबाला है। सारे जीवन-मूल्य बदल गए हैं। कोमल गांधार के लिए कोई जगह नहीं। सितारों की व्यावहारिकता के लिए आग्रह और आम युवा की सफलता के लिए ग्रंथि एक ही व्याधि के दो लक्षण हैं। दो विज्ञापन फिल्मों पर गौर करें। एक में वृद्ध व्यक्ति अपनी पत्नी को वेलेंटाइन डे पर हीरे की अंगूठी देता है और वह कहती है कि इस उम्र में हीरा कैसे पहनूं? तो वृद्ध कहता है कि हीरे को तेरी उम्र नहीं मालूम पहन ले। गोयाकि हीरे की जुबां हो तो वह युवा की अंगुली में जाए। दूसरी विज्ञापन फिल्म में एक बूढ़ा वैलेंटाइन-डे पर अपनी बूढ़ी पत्नी को गुलाब का फूल देता है और वह चिड़चिड़ाकर कहती है कि ये क्या है? बच्चों की तरह फूल ले आए। बूढ़ा अपनी अकड़ से कहता है कि बस कह दिया, आई लव यू - अंदाज यह है मानो फौज में मार्च का हुक्म दे रहा है। खुर्राट बुढिय़ा कहती है - बीस रुपए का एक गुलाब, बेहतर होता गोभी का फूल ले आते। किसी जमाने में शायद अपनी जवानी में इस महिला ने गाया हो 'सब तो गए बाग मेरा बुढ्ढा भी चला गया, सब तो लाए फूल बुढ्ढा गोभी लेकर आ गया।' इन दोनों किस्सों में बूढ़ों का प्यार गहरा है।

शायद हर दौर में प्यार और जहार के तरीके बदलते हैं। आज वह सनक नहीं, वह दीवानगी नहीं। यह युवा सयानों का दौर है और प्रेम-कथा फिल्मों में नहीं, विज्ञापन फिल्मों में अभिव्यक्त हो रही है। हर दौर के अपने प्रतिनिधि माध्यम होते हैं।