युगप्रवर्तक पितामह सत्यनारायण मोटूरि / सरस्वती माथुर

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हिंदी भाषा को गौरव प्रदान करने वाले एक युगप्रवर्तक पितामह के बारे में लिखना कितना कठिन है, लिखने बैठी तो अहसास हुआ!

सच ही कहा है किसी ने कि विरासत, परंपरा और जातीय बोध किसी देश और उनके निवासियों की अस्मिता की पहचान होते हैं, यह उस देश और व्यक्ति के विकास के सच्चे अर्थों में आख्याता भी होते हैं, हमने पढ़ा भी है और अनुभव भी किया है कि आकाश धरती की विरासत --तरंगो का उठना, सुर, आकाश -गंगा का चमकाना, इस विरासत की परम्पराएँ हैं और इस धरती की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले जंगल और उनमे गूंजता पक्षियों का कलरव वह जातीय बोध है जो धरती को प्राणवान कहलाने का गौरव देता है और इस दृष्टी का आख्यान करने वाले दृष्टा पदमभूषण सत्यनारायण मोटूरि जी जैसे वे मनीषी होते हैं जो अपने आप में एक समग्र सांस्कृतिक युग बन जाते हैं।

सत्यनारायण मोटूरि जी की सबसे बड़ी चिंता थी की कहीं हिंदी केवल साहित्य की भाषा बन कर न रह जाए, उसे जीवन के विविध प्रकार्यों की अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए !हिंदी का प्रत्येक विद्यार्थी आज इस तथ्य से अवगत है की हिंदी को जो संवैधानिक महत्व मिला मोटूरि जी का महत्वपूर्ण योगदान है।

भारतीय संविधान सभा के सदस्य होने का गौरव भी आपको प्राप्त हुआ !सन १९४० से १९४२ ई० तक भारत में महात्मा गाँधीजी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ उस काल में हिंदी का प्रचार प्रसार करना स्वाधीनता आन्दोलन का अविभाज्य अंग थाl दक्षिण में स्वाधीनता आन्दोलन व हिंदी का प्रचार प्रसार परिपूरक थे। इसके लिए मोटूरि जी को जेल भी जाना पड़ा पर उन्होंने जेल में रह कर भी हिंदी प्रचार का कार्य जारी रखा।

केन्द्रीय हिंदी संसथान का श्रेय भी मोटूरि जी को है l इस संस्था के निर्माण के पूर्व आपने महात्मा गाँधी जी से प्रेरणा व् आशीर्वाद ले स्थापित दक्षिणी भारत हिंदी प्रचार सभा के माध्यम से दक्षिणी भारत हिंदी प्रचार प्रसार की दिशा में अनुपम योगदान दिया ! सच कहें तो हिंदी प्रचार और मोटूरि जी दोनों समानार्थक शब्द हैं. वे अपने आप में एक विचार थे जिन्होंने हमेशा कहा कि---

"हम हिंदी को सेवा कि भाषा बनायेंगे सेवन की भाषा नहीं बनने देंगे.वे उन्नत मेधावी मनीषी एवम अंतदृष्टीयुक्य् प्रज्ञा पुरुष थे! सत्यनारायण मोटूरि जी हिंदी के गौरीशंकर थे, वे केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा के संस्थापक थे और हिंदी को राजभाषा घोषित करने और उसके स्वरुप का निर्धारण कराने वाले महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।

हिंदी के प्रचार प्रसार विकास के युग पुरुष, गाँधी दर्शन व् जीवन मूल्यों के प्रतीक मोटूरि जी का जनम २ फ़रवरी १९०२ में आंध्रप्रदेश में कृष्णा जिले के दोण्पाडु ग्राम में हुआ था। बचपन से ही वे मेधावी और विचारक प्रकृति के थे। सादगी में विश्वास करते थे, खादी के कपडे और गाँधी टोपी पहनते थे, उनका मोटे फ्रेम का चश्मा उनके व्यक्तित्व के दर्शन को एक भाषा देता था, जब वो बोलते थे तो भाषण में उदात्त एवं उदार विचारों की अभिव्‍यक्‍ति के साथ साथ उनके भाषण में सात्‍विक श्रम एवं अध्‍यवसाय का भाव झलकता था जो उन्‍नत मेधावी मनीषी एवं प्रज्ञा पुरुष के तत्‍वान्‍वेषण का सहज प्रस्‍फुटन होता था !वहां अपने पुरजोर भाषण में जोश से उन्होंने कहा था--

‘‘भारत एक बहुभाषी देश है। हमारे देश की प्रत्‍येक भाषा दूसरी भाषा जितनी ही महत्‍वपूर्ण है, अतएव उन्‍हें राष्‍ट्रीय भाषाओं की मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीयता को चाहिए कि वह अपने आपको इस बहुभाषीयता के लिए तैयार करे। भाषा-आधार का नवीनीकरण करती रहे। हिन्‍दी को देश के लिए किए जाने वाले विशिष्‍ट प्रकार्यों की अभिव्‍यक्‍ति का सशक्‍त माध्‍यम बनना है।

उनका मत था कि भाषा सार्वजानिक समाज की वस्तु है अत इसका विकास भी साथ साथ चलना चाहिए और केन्द्रीय हिंदी संसथान को भाषाई प्रयोजनात्मकता को अपने कार्य का केन्द्रीय बिन्दु बना कर आगे बढ़ाना चाहिए, आप सही मायने में प्रयोजनमूलक हिंदी आन्दोलन के जन्मदाता थे ! मोटूरि जी ने हिंदीतर राज्यों के सेवारत हिंदी शिक्षकों को हिंदी भाषा के सहज वातावरण में रख कर उन्हें हिंदी भाषा ,हिंदी साहित्य एवं हिंदी शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने कीआवश्यकता का अनुभव किया। इसी उद्देश्य से परिषद् ने सन १९५२ में आगरा में हिंदी विद्यालय की स्थापना की और सन १९५८ में इसका नाम 'अखिल भारतीय हिंदी विद्यालय आगरा रखा गया।

वे भाषा के विकास को समाज के विकास के साथ जोड़ कर देखते थे और मानते थे कि जीवन के विविध प्रकार्यों कि अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए।

आपके द्वारा संस्थापित ऐसी संस्थाएं हैं, अखिल भारतीय संस्कृति संगम, दिल्ली, तेलगु भाषा समिती चनई (मद्रास) व् दिल्ली और हिंदी हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा आदि।

केन्द्रीय मोटूरि जी हिंदी प्रक्षिशन मंडल आगरा के अध्यक्ष रहने के साथसाथ विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं के सक्रीय सदस्य रहे हैं और इनकी उन्नति में आपका महत्व पूर्ण योगदान रहा है संसथान के अखिल भारतीय हिंदी सेवा सम्मान योज़ना के अंतर्गत सन १९८९ में हिंदी प्रचार एवं हिंदी प्रशिक्षण के दिशा में उल्लेखनीय कार्य के लिए आपको गंगाशरण सिंह पुरस्कार से भी सम्मानित करके संसथान स्वयम गौरवान्वित हुआ! इस योज़ना के अंतर्गत सन २००२ में भारतीय मूल के विद्वान को विदेशों में हिंदी में प्रचार एवं प्रसार के उल्लेखनीय कार्य के लिए आपके नाम से पुरुस्कृत किया जाता है।

  1. १९६२ में सत्यानारण जी भारत सरकार ने पदमभूषण देकर सम्मानित किया
  2. इसके अलावा आपकी बहुत सी उल्लेखनीय उपाधियाँ हैं .आन्ध्र विश्वविधालय से आपको ड़ी . लिट की मानद उपधि से नवाज़ा गया !
  3. हिंदी प्रचार प्रसार एवं हिंदी शिक्षण -प्रशिक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य के लिए गंगाशरण सिंह पुरूस्कार प्राप्त विद्वानों मेंआप सर्वप्रथम हैं
  4. आपके पद और कार्य कि एक लम्बी सूची है: दक्षिणी भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रचार संगठक भी आप रहे! इसके अतिरिक्त आंध्र प्रांतीय शाखा के प्रभारी, मद्रास की केंद्र सभा के परीक्षा मंत्री, प्रचारमंत्री प्रधानमंत्री (प्रधान सचिव ) राष्ट्रभाषा प्रचार समिती, वर्धा के प्रथम मंत्री, भारतीय संविधान सभा के सदस्य, राज्य सभा के मनोनीत सदस्य (प्रथम बार १९५४ में ), केन्द्रीय हिंदी संसथान के संचालन के लिए सन १९६१ में भारत सरकार के शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण मंडल के प्रथम अध्यक्ष, राज्य सभा में दूसरी बार मनोनीत सदस्य, केन्द्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के दूसरी बार अध्यक्ष (१९७५ से १९७९) रह कर हिंदी को समृद्ध करने में आपने नए आयाम जोड़े, कोई भी हिंदी प्रेमी आपके योगदान को भुला नहीं पायेगा।

आपके सम्मान में केन्द्रीय हिंदी संसथान द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय मूल के किसी विद्वान को विदेशों में हिंदी प्रचार प्रसार में उलेखनीय कार्य के लिए पदमभूषण सत्यनारायणमोटरी पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है---- 2012 में यह पुरुकार मिला है अंतर्जाल में हिंदी के प्रचार-प्रसार में सबसे अग्रणी लोगों में से एक अभिव्यक्ति और अनुभूति संपादिका प्रमुख पूर्णिमा वर्मन जी को पिछले दिनों राष्ट्रपति द्वारा हिंदी सेवी सम्मान समारोह में पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

“मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।” का दृढ़ विश्वास धारण किये दुनिया के हर कोने से हिंदी की आवाज को बुलंद करने के लिए तत्पर पूर्णिमा जी हिंदी का लोकप्रिय साहित्य नेट पर लाने के लिये सदैव प्रयासरत रहती हैं।

हिंदी और हिंदी के माध्यम से अनेकों विद्वानों को उँचाई तक पहुँचाने का श्रेय मोटूरि सत्यनारायण को जाता है। मोटूरि सत्यनारायण और हिंदी सेवा एक दूसरे के पर्याय थे, हैं और रहेंगे।

मोटूरि सत्यनारायण का 6 मार्च, 1995 को निधन हो गया था उनकी हिंदी सेवा और उपलब्धियां भारत की समन्वय शील संस्कृति की धरोहर है और उनके उदार दृष्टिकोण का परिचायक आज केन्द्रीय संसथान उनके ही श्रम का और चिंतन का प्रतिफल है। उनके योगदान को लेख में समेटना उनका विश्लेषण कर शब्दों में बंधना कतई संभव नहीं है बस इतना भर कर सकतेहैंकि हिंदी के द्वारा राष्ट्रिय एकता व् एकीकरण को एकजुट करने के उनके गंभीर प्रयास को नमन ही किया जा सकता है।