युद्ध और शांति / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
धूप सेंकते हुए तीन कुत्ते आपस में बात कर रहे थे।
आँखें मूँदकर पहले कुत्ते ने जैसे स्वप्न में बोलना शुरू किया, "कुत्ताराज में रहने का वाकई अलग ही मज़ा है। सोचो, कितनी आसानी से हम समन्दर के नीचे, धरती के ऊपर और आकाश में घूमते हैं। कुत्तों की सुविधा के लिए आविष्कारों पर हम अपना ध्यान ही नहीं, अपनी आँखें, अपने कान और नाक भी केन्द्रित करते हैं।"
दूसरे कुत्ते ने कहा, "कलाओं के प्रति हम अधिक संवेदनशील हो गए हैं। चन्द्रमा की ओर हम अपने पूर्वजों के मुकाबले अधिक लयबद्ध भौंकते हैं। पानी में अपनी परछाई हमें पहले के मुकाबले ज्यादा साफ दीखती है।"
तीसरा कुत्ता बोला, "इस कुत्ताराज की जो बात मुझे सबसे अधिक भाती है, वह यह कि कुत्तों के बीच बिना लड़ाई-झगड़ा किए, शान्तिपूर्वक अपनी बात कहने और दूसरे की बात सुनने की समझ बनी है।"
उसी दौरान उन्होंने कुत्ता पकड़ने वालों को अपनी ओर लपकते देखा।
तीनों कुत्ते उछले और गली में दौड़ गए। दौड़ते-दौड़ते तीसरा कुत्ता बोला, "भगवान का नाम लो और किसी तरह अपनी ज़िन्दगी बचाओ। सभ्यता हमारे पीछे पड़ी है।"