युवा उपन्यासकार के नाम पत्र 2 / मारियो वार्गास ल्योसा
छिपे हुए तथ्य
प्यारे दोस्त,
अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने कहीं जिक्र किया है कि लिखने के शुरुआती दिनों में ही, एकबारगी उसे लगा कि वह लिखी जा रही कहानी की केंद्रीय घटना को ही छोड़ दे (जिसके मुताबिक नायक को फाँसी पर झूल जाना था)। यूँ, ऐसा फैसला करने के साथ ही उसे कहानी कहने की नई तकनीक मिल गई, जिसका कि वह अपनी आगामी कहानियों और उपन्यासों में बार बार इस्तेमाल कर सके। यह बिलकुल ही सही बात है कि हेमिंग्वे की सबसे अच्छी कहानियाँ ऐसी खामोशी से लबरेज हैं; वाचक टुकड़े टुकड़े में कुछ कहता हुआ, मानो बार बार कहीं गायब हो जाता है, अनुपस्थित सूचनाओं को, आग्रहपूर्वक, पाठक की कल्पनाओं के माध्यम से उसके मस्तिष्क में तैयार होने देते हुए, कुछ इस तरह से कि पाठक उसे रिक्त स्थानों की पूर्ति के रूप में लेकर चलता रहे। इस तकनीक को मैं 'छिपे हुए तथ्य' का नाम दूँगा, तथा लगे हाथ यह भी साफ कर देना चाहूँगा कि, यद्यपि, हेमिंग्वे ने इसे अपने तरीके से मोड़ा तथा बहुधा इस्तेमाल भी किया, लेकिन इस तकनीक की खोज उसने नहीं की, क्योंकि यह तकनीक उतनी ही पुरानी है जितना कि खुद उपन्यास।
हालाँकि सच यह है कि कुछ आधुनिक लेखकों ने इसका उतनी ही ढिठाई से इस्तेमाल किया है, जैसे कि 'Old Man and The Sea' के इस लेखक ने। हेमिंग्वे की शानदार, और शायद सबसे अच्छी कहानी 'The Killers' को याद कीजिए। इसके मूल पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न है; ऐसा क्यों होता है कि दो छोटी बंदूकों वाले दो बदमाश 'हेनरीज' नाम के उस छोटे से भोजनालय में आते हैं और स्वीडन के निवासी ओल एंडरसन को मारना चाहते हैं? आगे, जब नौजवान निक एडम्स उसे बताता है कि उसके पीछे दो कातिल खड़े हैं, तो क्या एंडरसन खुद को अपनी किस्मत के हवाले करते हुए, भागने से मना कर देता है, अथवा शांत रहते हुए पुलिस को सूचित करता है? कौन जाने। यदि इन दोनों सवालों के जवाब चाहिए, तो हमें, उनको निरपेक्ष वाचक द्वारा बताए कुछ तथ्यों के आधार पर खुद ही तैयार करना होगा; शहर जाने से पहले एंडरसन शिकागो का एक बाक्सर हुआ करता था, जहाँ पर उसने कुछ ऐसा (बुरा) कर डाला था जिससे उसकी किस्मत ही कुंद पड़ गई।
छिपे हुए तथ्य, अथवा कहानी का लुप्त अंश, अनावश्यक तथा मनमाना नहीं हो सकता। यह अनिवार्य है कि लेखक की खामोशी का कोई ठोस मतलब हो, कि कहानी के व्यक्त हिस्सों पर उसका निश्चित प्रभाव हो, कि कहानी से उसकी अनुपस्थिति महसूस होती हो, कि उसकी वजह से पाठक के जेहन में उत्सुकता, उम्मीद तथा कल्पनाएँ जागती रहें। लिखने की तकनीक पर हेमिंग्वे को महारथ हासिल था, जैसा कि शब्दों के किफायती इस्तेमाल वाली कहानी 'The Killers' से भी स्पष्ट है। इसकी शब्द रचना किसी हिमशैल के उभरे शिखर जैसी, जो कि कहानी के शेष वृत्तांत के चमकते आधार पर टिका हुआ, झलक जाया करता है, और फिर झट से पाठक की नजरों से छिन भी जाता है। चुप रहकर, उन इशारों भर के माध्यम से, जो तकनीक के इस्तेमाल को लेकर वचनबद्ध से, पाठक को कल्पना तथा अनुमान के सहारे कहानी में सक्रियता से शामिल हो जाने को मजबूर कर देते हैं, कहानी कहते जाना; यह उन सामान्य तरीकों में से एक है जिसके द्वारा लेखक अपनी कहानी को जीवन के करीब लाते हैं और उन्हें प्रबोधन की जबरदस्त क्षमता दे पाते हैं।
अब (मेरे हिसाब से) हेमिंग्वे के सबसे अच्छे उपन्यास 'The Sun Also Rises' में छिपे उस तथ्य को याद कीजिए। जी हाँ, वाचक जैक बार्नेस की अहमियत को। जाहिर तौर पर, इसे कहीं भी दर्शाया नहीं गया है, लेकिन उपन्यास के प्रवाह के साथ रची जा रही खामोशी, एक अजीब सी भौतिक दूरी, जैक का ब्रेट से दिली रिश्ता, जिसे कि वह प्यार करता है और वो भी उसे चाहती है, और अगर बीच में कोई ऐसी मुश्किल, कोई बाधा न आ जाती, जिसके बारे में हमें कुछ नहीं पता, तो उसके प्यार में आगे भी बढ़ चुकी होती, आदि के माध्यम से यह धीरे धीरे स्पष्ट होता जाता है। (मेरा मानना तो यही है कि पाठक, पढ़ी हुई चीज से प्रेरित होता हुआ उसे वहीं के पात्रों पर आरोपित करता है)। जैक बार्नेस की अहमियत उस तारी खामोशी, उस अनुपस्थिति में छुपी है, जिसे कि पाठक प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जैक के ब्रेट से जुड़ जाने में देखता है। यद्यपि यह कहानी का खामोशी में रह जाने वाला हिस्सा है, लेकिन 'The Sun Also Rises' की समूची कथा उसी के आलोक में नहाई हुई है।
एक और उपन्यास 'Jealousy' जिसका मुख्य किरदार कहानी के प्रवाह से नदारद रहता है, लेकिन कुछ इस तरह से, कि उसकी अनुपस्थिति उपन्यास में हरेक पल अपना एहसास कराती रहती है। 'Jealousy,' जिसमें कि वस्तुतः कोई कथानक है ही नहीं, अमूमन किसी ऐसी कहानी का लक्षण दिखाती है जो हमारी पकड़ अथवा समझ से बाहर हो। जैसे कि पुरातत्ववेत्ताओं ने सदियों से दफन पड़े चंद पत्थरों की मदद से बेबीलोन की जगहों को फिर से बना लिया, जैसे प्राणि विज्ञानी जीवाश्मों के पैबंद जोड़ प्रागैतिहासिक डायनासोर तथा कंकालों के सहारे टेरोडैक्टिल के आकार रच डाले, हम इस कहानी को भी फिर से, अपने हिसाब से रच लेने को मजबूर हो जाते हैं। रॉब ग्रिलेट के बारे में हम खुलेआम कह सकते हैं कि उनके सारे के सारे उपन्यास इन 'छिपे हुए तथ्यों' पर आधारित हैं। 'Jealousy' में यह प्रक्रिया ज्यादा सलीके से चलती दिखती है क्योंकि, उपन्यास के कथ्य का मुकम्मल मतलब होने के लिए जो चीज अनिवार्य है, वह अनुपस्थिति, अथवा केंद्र में स्थित वह चरित्र, कहीं न कहीं अपना अपना अस्तित्व बचाए रहता तथा पाठक की चेतना में आकार लेता रहता है। और 'Jealousy' में यह अदृश्य (अनुपस्थित) चरित्र है कौन? ईर्ष्यालु पति, जैसा कि अनेकार्थी ढंग से, शीर्षक से भी स्पष्ट होता है; कोई ऐसा शख्स जिसके उपर शक का शैतान सवार रहता है, वह छुपकर अपनी पत्नी की हरेक हरकत की जासूसी करता है। पाठक निश्चित तौर पर इस बात से अनभिज्ञ है; उसे इसका पता औरत की छोटी से छोटी गतिविधियों, भंगिमाओं और खबरों तक पर सख्त नजर रखने के वाचक के सनकी उद्यम से चलता है। इस तरह से सटीक प्रेक्षण करने वाला शख्स आखिर है कौन? वह अपनी पत्नी को ही इस दृष्य उत्पीड़न का शिकार क्यों बना रहा है? उपन्यास, अपने आगे बढ़ने के साथ कहीं भी इन 'छिपे हुए तथ्यों' का खुलासा नहीं करता, और इस तिलिस्म को कहानी में बिखरे चंद सूत्रों की बिना पर पाठक स्वयं, अपने विवेक से खोलता है। रहस्य बनाए रखने के मकसद से, उपन्यास के प्रवाह में सदा खामोश रखी जाने वाली इन प्रमुख गूढ़ (छिपी हुई) बातों को, पाठक की नजर तथा उपन्यास के वास्तविक कालक्रम से अल्पकालिक तौर पर गायब चीजों से अलगाने के लिए 'पदलोपी' (eclliptic) कह सकते हैं। कहानी से अल्पकालिक तौर पर गायब चीजों की मिसाल वे जासूसी उपन्यास हो सकते हैं, जो हत्यारे की असलियत को सबसे अंत में जाहिर करते हैं। और इस तरह के तथ्य, जो बस कुछ ही समय के लिए गोपनीय, अथवा तात्कालिक तौर पर कहीं और विस्थापित रहते हैं, 'व्युत्क्रमक' (व्युत्क्रम, पद्य में प्रयोग की जाने वाली एक युक्ति है, जिसमें किसी पंक्ति के एक शब्द को सुश्रव्यता के मकसद से कहीं और विस्थापित कर दिया जाता है) कहे जा सकते हैं।
आधुनिक उपन्यासों में 'छिपे हुए तथ्य' का सर्वोत्तम मुजायरा जर्मनी के गथों पर आधारित, फाकनर की किताब 'Sanctuary' हो सकती है, जिसमें कहानी के मूल (हाथ में मक्के का भुट्टा लिए रहने वाले पोपे द्वारा अबोध टेंपल ड्रेक का कौमार्य नष्ट किया जाना) को विस्थापित करके उन छोटी छोटी डीटेल्स में घुला दिया जाता है, जो पाठक द्वारा व्याख्यान के टुकड़े टुकड़े जोड़कर वह दारुण दृश्य तैयार कराते हैं। यह उस मनहूस खामोशी की वजह से ही है, जो 'Sanctuary' में रचे माहौल से तैयार होता है; जो जेफर्सन, मेंफिस तथा कहानी के दूसरे हिस्सों को, क्रूरता, यौन शोषण, डर, पूर्वाग्रह तथा असभ्यता जैसी सभी बुराइयों की खान बनाता हुआ, बाइबिल के शब्दों में कहें तो, मानवता के ह्रास से जोड़ता है। उपन्यास में मौजूद संत्रासों की बात करें तो, टेंपल का बलात्कार सिर्फ उनमें से एक है; वर्ना तो वहाँ एक फाँसी, मनमाने ढंग से दिया प्राणदंड, अनेक हत्याएँ, नैतिक क्षय के विभिन्न उदाहरण मौजूद हैं। हमें पता है कि उनका उद्भव मानवीय नियमों के उल्लंघन में न होकर, छुद्र भावनाओं के विजयी होने तथा समूची धरती पर फैल रही नारकीय चीजों द्वारा सद्मूल्यों के परास्त होने में है - 'Sanctuary' ऐसी छिपी हुई गूढ़ सूचनाओं से खौलती रहती है। टेंपल ड्रेक के बलात्कार के अतिरिक्त टॉमी और रेड की मौत तथा पोपे की अहमियत जैसे तथ्य उस पहले से सन्नाटे के हिस्से हैं जिनका खालीपन पूर्व के क्रिया कलापों के आधार पर ही भरा जाता है, व्युत्क्रमन की प्रक्रिया में हटाए गए तथ्यों को वापस लाकर बीच बीच में जोड़ते हुए, तब जाकर कहीं पाठक घटनाओं के वास्तविक क्रम को समझते हुए कहानी का वास्तविक कालानुक्रम तैयार कर पाता है। फॉकनर, न सिर्फ इस कहानी में, बल्कि अपनी शेष सभी रचनाओं में भी छिपे हुए तथ्यों का माहिर खिलाड़ी था।
अब एक आखिरी उदाहरण के लिए, मैं पाँच सौ वर्ष पहले के, बहादुरी के किस्सों से लबरेज एक मध्यकालीन उपन्यास तक जाना चाहूँगा। 'खोआनोत मार्तोरेल' (Joanot Martorell) की लिखी 'Tirant Lo Blanc' जिसे मैं अपने बिस्तर के सिरहाने रखता हूँ। मार्तोरेल इसमें छिपे हुए - पदलोपी अथवा व्युत्क्रमक - तथ्यों से, आधुनिक काल के सबसे दक्ष उपन्यासकार की भाँति खेलता है। आइए देखते हैं कि उपन्यास के एक मूल प्रश्न, तिरांत और कारमेसिना, तथा डायफेबस और स्टेफनी द्वारा रची जा रही 'खामोश शादियों' (एक कथांश, जिसका विस्तार 162वें अध्याय के उत्तरार्ध से 163 अध्याय के मध्य तक है) के लिए कथ्य की संरचना किस तरह से की गई है। कहानी कुछ यूँ बढ़ती है; कारमेसिना और स्टेफनी तिरांत और डायफेबस को महल के एक कमरे में ले जाती हैं। वहाँ, इस बात से अनभिज्ञ होते हुए, कि 'प्लाएरदेमाविदा' (एक नाम, लेकिन शब्दशः / जीवन का अपना सुख) ताले में चाभी के छेद के रास्ते से उनकी जासूसी कर रही है, वे पूरी रात प्यार के खेल में मशगूल रहकर गुजारते हैं, तिरांत और कारमेसिना बिलकुल उन्मुक्त और सहज, तथा डायफेबस और स्टेफनी थोड़ा कम। सुबह होने पर, जब प्रेमी युगल अलग होते हैं, तब से चंद घंटो बाद ही, प्लाएरदेमाविदा यह राज खोलती है कि वह रात में ही हो चुकी उनकी गुप्त शादियों की गवाह है।
ये घटनाएँ उपन्यास में वास्तविक कालक्रमिक समय में घटती नजर नहीं आतीं, बल्कि समय के अलग टुकड़ों में, तथा व्युत्क्रमित रूप में दिखती हैं, जिसके नतीजे के तौर पर कथा का वह समूचा हिस्सा एक समृद्ध आख्यान सा लगता है। (कारमेसिना और स्टेफनी द्वारा तिरांत और डायफेबस को अलग कमरे में ले जाने के फैसले के) कथानक के बाद से ही सारा ताना बाना तैयार होता है। इस शक से, कि कहीं खामोश शादियों का उत्सव न हो जाए, स्टेफनी सोने का बहाना करती है। निरपेक्ष वाचक, वास्तविक कालक्रमिक समय में जाते हुए, खूबसूरत राजकुमारी को देखने के बाद के तिरांत के विस्मय को दर्शाता है, जब वह अपने घुटनों पर झुककर राजकुमारी का हाथ चूमता है। और यही वो जगह होती है जहाँ पहली बार दर्शाए जा रहे समय का वास्तविक कालक्रम से विस्थापन हो जाता हैर : 'और वे बुदबुदाने की आवाज में कुछ प्यार भरे शब्द बोले। जब उन्हें लगा कि समय काफी हो चुका है, वे एक दूसरे से विदा लिए और अपने ठिकानों पर वापस आए।' खामोशी का एक आकाश छोड़ते हुए, एक कुटिल प्रश्न के साथ कहानी भविष्य में छलाँग लगा देती है : 'कोई प्यार में रहा, तो कोई गम में रहा, उस रात नींद किसे आई?' आगे, वाचक, पाठक को अगली सुबह में पहुँचा देता है। प्लाएरदामाविदा उठती है, और राजकुमारी कारामेसिना के कक्ष में जाती है, तथा स्टेफनी को 'बिना छेड़े, जस का तस' छोड़ दिए जाने की मुद्रा में नजर आती है। स्टेफनी के आनंद और विलास में बाधा क्यों आ गई? प्लाएरदामाविदा के रोचक इशारे, मजाक और मीठे ताने, पाठक तक पहुँचते ही उसकी उत्सुकता को बढ़ा देते हैं। और अंत में, इस लंबी, चतुर प्रस्तावना के अंत में, प्लाएरदामाविदा बता देती है कि उसने बीती रात स्वप्न में देखा कि स्टेफनी, तिरांत और डायफेबस को उस कमरे की तरफ ले जा रही है। कथांश में सामयिक विस्थापन का यह दूसरा उदाहरण है। यह वाकया बीते दिन की शाम में वापस जाने का है, जिसमें प्लाएरदामाविदा के स्वप्न के माध्यम से पाठक यह जान पाता है कि खामोश शादियों में क्या कुछ हुआ होगा। कथांश को पूर्णता देते हुए, गुप्त ब्यौरे स्पष्ट हो जाते हैं। लेकिन क्या यह पूर्णता वास्तविक पूर्णता है? शायद नहीं। जैसा कि आपने ध्यान दिया होगा कि सामयिक विस्थापन के साथ साथ एक स्थानिक विस्थापन अथवा 'स्थानिक दृष्टिकोण' में भी एक तब्दीली दिखाई दी, खासकर इसलिए, कि खामोश शादियों का आख्यान सुनाती हुई, वह ध्वनि मूल तथा निरपेक्ष वाचक की नहीं होती। यह प्लाएरदामाविदा की आवाज होती है, जिसके कथन वस्तुनिष्ठ न होकर व्यक्तिपरक हैं (उसका स्वच्छंद और मजाकिया तरीके से व्याख्या करते जाना, न सिर्फ प्रसंग को आत्मपरकता देता हैं, बल्कि उस विस्फोट को भी टाल देता है, जो डायफेबस द्वारा स्टेफनी के शील भंग करने की दास्तान को किसी और तरीके से सुनने पर कहानी में घटित होता)। समय तथा स्थान का यह दुहरा विस्थापन, खामोश शादियों के प्रसंग में, एक में से एक निकलते चीनी बक्सों का रूप ले लेता है, माने निरपेक्ष तथा सर्वज्ञ वाचक की कहानी के भीतर एक दूसरी, (प्लाएरदामाविदा द्वारा कही जा रही) स्वतंत्र कहानी अंतर्निहित है। 'Tirant lo Blanc' नाम का यह उपन्यास, संक्षेप में कहूँ तो प्रायः चीनी बक्सों अथवा रूसी गुड़ियों की तरह एक के भीतर एक के शिल्प में रचा हुआ है। तिरांत का वर्षों तक जारी रहा शोषण तथा वह दिन जब इंग्लिश कोर्ट में चलने वाला उत्सव खत्म हो होता है, जैसी चीजों का पता कहानी के निरपेक्ष तथा सर्वज्ञ वाचक की जगह डायफेबस से चलता है, जब वह वारोइक के काउंट को कहानी सुना रहा होता है; डायफेबस, 'रहोडेस' के 'जेनोअन्स' द्वारा पकड़े जाने को उस कहानी के माध्यम से जानता है जिसे फ्रेंच कोर्ट के दो योद्धा तिरांत, तथा ब्रिटनी के राजकुमार को सुना रहे होते हैं; और व्यापारी गाउबेदी के साहसिक कारनामों का पता उस कहानी से चलता है जिसे सुनाकर तिरांत विधवा रेपोसादा को खुश करता है। इस तरह से, एक क्लासिक कृति के मात्र एक खंड के अध्ययन से यह पता चल जाता है कि, जो संसाधन और पद्धतियाँ समकालीन लेखकों द्वारा नुमाइशी अंदाज में पेश किए जाने के कारण किसी नई खोज की तरह लगती हैं, वे दरअसल हमारी औपन्यासिक धरोहर हैं, क्लासिक रचनाकारों ने जिनका पूरी आश्वस्ति के साथ इस्तेमाल किया है। आधुनिक रचनाकारों ने जो कुछ भी किया है, ज्यादातर मामलों में वह कथा साहित्य के प्राचीन नमूनों में मौजूद विशेषताओं में ही नए तरीके से रंग रोगन अथवा चंद प्रयोगधर्मी परिष्कार कर लेना भर है।
अब, मेरे हिसाब से इस पत्र को पूरा करने से पहले, (सभी उपन्यासों पर लागू होने वाली) सहज शैली की वह साधारण सी चीज परख लेनी होगी, जहाँ से इस चीनी बक्से वाली पद्धति का आविर्भाव होता है। किसी उपन्यास का लिखित हिस्सा, उसमें कही जा रही कहानी का एक छोटा टुकड़ा भर होता है; जबकि पूरी कहानी, विचार, संस्कृति, इतिहास, मनोविज्ञान, चीजों, भंगिमाओं, तथा सैद्धांतिकी जैसे कहानी को बोधगम्य बनाने वाले सभी तत्वों का अंगीकरण करती हुई, शब्द सीमा में तय की गई दूरी से बहुत आगे तक जाती है। यहाँ तक कि शब्दाडंबरों से भरपूर, मितकथ्यता से खाली, तथा अति विस्तृत उपन्यास भी, पूरा का पूरा अपने लिखित हिस्से में ही समाहित नहीं होगा।
किसी भी तरह की कथा रचना में निहित अनिवार्य पक्षधरता को रेखांकित करने के लिए, फ्रांसीसी उपन्यासकार क्लाउड सिमोन ने यथार्थवादी साहित्य के दृढ़ निश्चयी रवैये में, उसे पुनः यथार्थवादी बना देने के मकसद से, मजाकिया लहजा घुसेड़ते हुए - गिटेन्स (सिगरेट का एक ब्रांड) के एक पैकेट की व्याख्या शुरू की। उसने खुद से पूछा कि यथार्थवादी कहलाने के लिए व्याख्यान में कौन कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए? बेशक, पैकेट की माप, रंग, उसके अंदर की चीज, उस पर लिखी घोषणाएँ, तथा उसके बनने में इस्तेमाल हुआ पदार्थ, जैसी चीजें अनिवार्य थीं। लेकिन क्या इतना ही काफी होता? मुकम्मल तौर पर देखें तो, नहीं। ताकि विवरण से कोई छोटी सी सूचना भी छूट न जाए, विवरण में उन सतर्कताओं का भी जिक्र होना चाहिए, जो पैकेट तथा उसमें भरी सिगरेट के बनने की औद्योगिक प्रक्रिया में जरूरी थीं, तथा उसके प्रचार एवं प्रसार का वह तंत्र भी जिसके जरिए वह उत्पादक से चलकर उपभोक्ता तक पहुँच रहा है। एक बार ऐसा हो जाने के बाद, क्या गिटेन्स के पैकेट का विवरण पूरा हो पाएगा? कतई नहीं। सिगरेट का प्रयोग (उपभोग) भी कोई अलग की बात थोड़े ही है; यह (सिगरेट का पिया जाना), चलन के द्वारा व्यवहार में आई तथा आदत के कारण विकसित हुई चीज है; इसे भुलाया नहीं जा सकता है कि यह सामाजिक इतिहास, मिथक, राजनीति तथा जीवन शैली के साथ अकाट्य रूप से जुड़ी रही है। दूसरी ओर यह एक दस्तूर है - एक आदत या बुरी लत - जिस पर कि विज्ञापन तथा आर्थिक महकमों का खासा असर रहता है तथा जो इसे पीने वाले की सेहत को प्रभावित करता है। इस तरह से, वर्णन की संपूर्णता की तलाश में यदि प्रहसन के दूर दूर तक के आयाम खोजे जाने लगें, तो सबसे गैर जरूरी चीजों के मामले में भी हम समूचे ब्रह्मांड के जिक्र वाली आदर्श स्थिति की ओर बढ़ते नजर आएँगे।
कहानी के बारे में, बिना किसी शक के, एक इससे मिलती जुलती बात कही जा सकती है। यदि, कहानी की शुरुआत के साथ ही लेखक कुछ सीमाओं का निर्धारण नहीं कर लेता है (यदि उसने खुद को चंद सूचनाओं या तथ्यों को कहने से बचा लेने के लिया तैयार न कर लिया), तो उसकी कहानी शुरुआत और अंत दोनों से रहित, खुद को जैसे तैसे हरेक संभव कहानी से जोड़ती हुई, तथा अपनी संपूर्णता में निर्मूल सी बनकर रह जाएगी; कल्पना के उस अनंत आकाश में भटकती हुई जहाँ सारी कहानियाँ एक दूसरे जुड़ी हुई, एक दूजे के साथ रहती हैं।
अब यदि उस परिकल्पना में आपका यकीन है, कि एक उपन्यास - अथवा लिखावट में उतर रही कोई भी कहानी - उस संपूर्ण कहानी का एक हिस्सा भर है, जिसके अधिकांश को अतिरिक्त तथा छोड़ देने योग्य समझकर, अथवा लिखे जाने वाले प्रमुख तथ्यों के सम्मुख आड़े आने वाला मानकर, लेखक नहीं लिखता है, तो आपको पत्र में पहले बताए गए 'स्पष्ट अथवा गैरजरूरी' तथा 'छुपे हुए तथ्यों' के बीच के फर्क को समझना चाहिए। इसके उलट, कहानी की योजना में इसका एक कार्यकारी महत्व है, जिसकी वजह से कहानी से इसके बाहर रहने या विस्थापित होने का कहानी पर असर होता है, कथानक अथवा प्रयुक्त दृष्टिकोण में एक अनुगूँज पैदा करते हुए।
अंत में, मैं फिर से उस की हुई तुलना को दुहराना चाहूँगा, जिसे फाकनर की 'Sanctuary' के बारे में बात करते हुए मैंने किया था। मान लेते हैं कि उपन्यास की पूरी कहानी (लिखे तथा छोड़ दिए गए सभी तथ्यों को जोड़ते हुए), एक टोकरी है। और उसमें से अतिरिक्त तथा छोड़ देने योग्य हिस्सों तथा कहानी को एक विशेष सुगढ़ता देने के मकसद से हटाए विवरणों (छिपे हुए तथ्यों) को अलग कर देने के बाद ही, उपन्यास को एक सच्चा आकार मिलता है। इस तरह से तैयार और तराशी हुई चीज ही कलाकार की मौलिकता की अभिव्यक्ति है। इसका निर्माण बहुत से औजारों से मिलकर होता है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि 'छिपे हुए तथ्य' उनमें सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाला बेशकीमती औजार है, जो काट छाँट का काम तब तक जारी रखता है, जब तक कि रचना को इच्छित खूबसूरती तथा प्रबोधन क्षमता वाला स्वरूप न मिल जाय।
अगली मुलाकात तक, सप्रेम
मारियो वार्गास ल्योसा
(ये दो स्वतंत्र पत्र , वार्गास ल्योसा की किताब 'Cartas a un joven novelista' ('Letters to a young novelist' यानी 'युवा उपन्यासकार के नाम पत्र' से लिए गए हैं। ल्योसा द्वारा लिखे ये पत्र , दरअसल , उस योजना का हिस्सा थे जो एक स्तंभ के रूप में सिलसिलेवार प्रकाशित होने वाले थे। उनकी यह योजना किसी कारणवश फलीभूत न हो सकी , लेकिन वार्गास को यह विचार पसंद आया और वे इस पर काम करते रहे। अंततः , वर्ष 1997 में , बारह पत्रों की यह श्रृंखला पुस्तकाकार प्रकाशित हुई। पत्रों का चयन तथा मूल स्पैनिश से अनुवाद युवा कवि-कहानीकार श्रीकांत दुबे ने किया है।)