युवा जॉब नही पैशन चुनते है / जयप्रकाश चौकसे
युवा जॉब नहीं पैशन चुनते हैं
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2011
आजकल एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है जिसमें युवा लड़की अपने पिता को मुर्गा खिलाती है और उन्हें स्वाद पसंद आने पर कहती है कि आपकी इच्छा थी कि मैं टीचर बनूं। मैंने जिद कर कुकिंग का प्रशिक्षण लिया। आज आपको मुर्गा खिला रही हूं, टीचर बनती तो 'मुर्गा' (स्कूल में दिया गया दंड) बनाती। विज्ञापन का सूत्र वाक्य है कि आजकल युवा करियर नहीं पैशन खोजते हैं। आज का युवा मनपसंद काम ही करना चाहता है और स्वयं को अपनी ऊर्जा के अपव्यय से बचाता है। इस विज्ञापन से युवा स्वप्न की बात सामने आती है परंतु यथार्थ में सबको अवसर नहीं मिल रहे हैं और सब क्षेत्रों में असल प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं है।
किसी काम को करने का जुनून होने पर रास्ते नजर आने लगते हैं, फिल्म 'फंस गए रे ओबामा' के फिल्मकार सुभाष कपूर पत्रकार थे और उन्होंने चुनाव की खबरें जुटाने के लिए उत्तरप्रदेश और बिहार का गहन दौरा किया। टेलीविजन की पत्रकारिता से जुडऩे के कारण शेखर कपूर से मुलाकात हुई, जिनके लिए आगे चलकर 'राम लीला' नामक वृत्तचित्र बनाया। जिसे कुछ समारोहों में सराहा गया। छोटे शहरों में धोनी, मुनाफ पटेल जैसी प्रतिभाओं के उभरने से प्रेरणा लेकर 'से सलाम इंडिया' बनाई जो 2007 के वल्र्ड कप में पराजय के बाद प्रदर्शित हुई और शायद इसी कारण यह असफल रही। सुभाष कपूर के पैशन अर्थात जुनून में कमी नहीं आई। आर्थिक मंदी के दौर से प्रेरणा लेकर सुभाष कपूर ने 'फंस गए रे ओबामा' बनाई, जिसे बहुत सराहा गया। अब तक उनकी बनाई 'राम लीला', 'से सलाम इंडिया' और 'फंस गए रे ओबामा' में सारे पात्र छोटे शहरों के लोगों से प्रेरित हैं।
दरअसल विगत दशक में छोटे शहरों से अनेक प्रतिभाशाली लोग आए हैं। इतना ही नहीं खरीदने की क्षमता हमेशा महानगरों में रही है, परंतु अब अनेक मध्यम और छोटे शहरों में लोगों के पास खरीदने के लिए धन आ गया है। आज अनेक मध्यम शहरों में जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं। इसी दौर में हबीब फैजल, सुभाष कपूर इत्यादि फिल्मकार इन्हीं क्षेत्रों के पात्रों वाली फिल्में बना रहे हैं। सामाजिक समस्याओं पर मनोरंजक फिल्में बनाई जा रही हैं। नए लोग अपने जुनून के कारण सफल हो रहे हैं। फिल्म उद्योग में प्रारंभिक काल से ही कुछ लोग अपने तूफानी पैशन के कारण सफल होते रहे हैं। महबूब खान, शांताराम, गुरुदत्त, राज खोसला इत्यादि अनेक लोग केवल पैशन की पूंजी के दम पर ही सफलता अर्जित कर सके।
कई बार पैशन का भ्रम भी लोगों को डस लेता है और पैशन को वे नारा बना लेते हैं। पैशन का अर्थ काम होता है। बिना कोई परिश्रम के केवल स्वयं को जुनूनी बताने से काम नहीं बनता। एक तरफ हम घटियापन की लहर देखते हैं तो दूसरी ओर कुछ युवा अत्यंत प्रतिभाशाली भी हैं। 'एमेडियस' नामक नाटक में दरबार के कंपोजर कैवेलेरी जब पहली बार मोजार्ट को सुनते हैं तो मौलिक प्रतिभा के विस्फोट से घबराकर भाग जाते हैं। उनकी शिकायत है कि ईश्वर ने उन्हें महत्वाकांक्षा दी, परंतु प्रतिभा मोजार्ट को दी, जिसे षड्यंत्र करके नष्ट करने की वह शपथ लेते हैं। घटियापन की लहर लाख कोशिश के बाद भी प्रतिभा को लील नहीं पाती।