युवा पीढ़ी के सितारा पुत्रों के तेवर / जयप्रकाश चौकसे

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युवा पीढ़ी के सितारा पुत्रों के तेवर
प्रकाशन तिथि :13 अगस्त 2016


वरुण धवन को देखते ही गोविंदा की याद आती है। उनमें कुछ साम्य है परंतु इतना नहीं कि उन्हें जुड़वा मान लिया जाए। डेविड धवन पुणे फिल्म संस्थान से संपादन का कौशल सीखकर आए और कुछ फिल्मों का संपादन करने के बाद वे निर्देशन क्षेत्र में उतर गए। उसी दौर में गोविंदा 'तन बदन' फिल्म के समय डेविड धवन से मिले। दोनों की मनोरंजन की परिभाषा एक ही थी और बॉक्स ऑफिस सफलता एकमात्र लक्ष्य। दोनों की टीम ने सफल फिल्मों की शृंखला ही रच दी। दोनों के चेहरे पर सफलता की लुनाई एक-सी थी। लंबे वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी सगे भाई-बहन की तरह दिखने लगते हैं। लंबे समय तक साथ रहना विचार रसायन परअसर डालता है। उनकी हास्य फिल्मों में शरारत के साथ फूहड़ता का समावेश भी था और करिश्मा कपूर ने 'सरकाइले खटिया जाड़ा लगे' जैसे गीत भी गाए हैं। शुरुआत के वर्षों में अनीज बज़मी उनके स्थायी लेखक रहे। कादर खान के जुड़ते ही 'शराफत छोड़ दी' इस टीम ने। यह धारणा कि हम वही बनाते हैं, जिसे अवाम पसंद करता है, हर व्यक्ति के सुविधाभोगी होने का परिणाम है। अवाम की पसंद नामक हाथी का वर्णन पांच अंधों के द्वारा करने की तरह है।

डेविड धवन ने पुणे संस्थान में विश्व सिनेमा की अजर-अमर फिल्में भी देखी थीं परंतु उन्होंने अपने आपको जाने कैसे बचाया है कि उनका स्पर्श तक नहीं होने दिया। भले ही उनका यह समर्पण और एकाग्रता बॉक्स ऑफिस सफलता के लिए थी परंतु इसकी कद्र तो करनी होगी।

महाभारत में अर्जुन जब युद्ध कला अपनी गर्भवती पत्नी को सुना रहे थे तो गर्भस्थ अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसना सीख लिया परंतु बाहर आने की विधि बताए जाने तक उसकी मां गहरी निद्रा में थी। महाभारत युद्ध में अभिमन्यु का मारा जाना अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। बहरहाल, वरुण-गोविंदा साम्य आश्चर्यचकित नहीं करता परंतु गौरतलब यह है कि वरुण धवन ने अपना मेहनताना घटाकर 'बदलापुर' फिल्म अभिनीत की है, जो निहायत ही गैर डेविड-गोविंदा धारा की फिल्म है। इस संदर्भ में यह बड़ी अजीब बात है कि गर्भस्थ शिशु पहले ध्वनि सुन लेता है और नेत्र बाद में खुलते हैं। हम अकारण ही ध्वनि को ब्रह्म नहीं मानते।

फिल्म उद्योग में इस पीढ़ी के सुपुत्र अपने पिता की कार्बन कॉपी नहीं हैं। दरअसल, व्यक्तिगत सोच के साथ अपने विरोधी के विचार का सम्मान करना सामान्य बात है परंतु आज की राजनीति में भेड़चाल को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। यह कट्‌टरता समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है। वैचारिक उदारता का लोप होते जाना चिंताजनक है। हम चाहे-अनचाहे एक क्रूर समाज की रचना कर रहे हैं। वोट बैंक का मिथ मनुष्यों को बांट रहा है परंतु यह कोई स्थायी दशा नहीं है। नफरत जगाई जाती है, प्रेम होता है। नफरत का उत्पाद अाप कर सकते हैं परंतु प्रेम का नहीं। पत्थरों से भरी पड़ी जगह पर भी कुछ कोपल जाने कैसे फूट पड़ती है। पत्थरों से बने फुटपॉथ पर आप यह कोपल देख सकते हैं। कुचले जाने की नियति के बावजूद वे जन्मती हैं।

जब ऋषि कपूर के पुत्र रनवीर कपूर ने अभिनय क्षेत्र में कदम रखा तब ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने पिता से जुदा अपनी पसंद की फिल्में ही करेंगे। इम्तियाज अली से उनका गहरा याराना है। उनके अपने चुने रास्ते पर कुछ बॉक्स ऑफिस दुर्घटनाएं हुई हैं परंतु वे जिद के पक्के हैं। आज उनके समकालीन रनवीर सिंह उनसे आगे हैं परंतु वे इससे विचलित नहीं हैं। इस दीवाली पर रनवीर कपूर एेश्वर्या राय और अनुष्का अभिनीत करण जौहर की फिल्म का प्रदर्शन हो रहा है और 'जग्गा जासूस' अगले वर्ष जनवरी में प्रदर्शित होगी। बॉक्स ऑफिस परिणाम कुछ भी हो वे अपनी लीक नहीं छोड़ेंगे। इस तरह की जिद आत्म-विश्वास से ही पैदा होती है।

ऋषि कपूर ने डेविड धवन के साथ बहुत फिल्में अभिनीत की हैं परंतु ऐसा नहीं लगता कि रनवीर कपूर डेविड धवननुमा फिल्म कभी करेंगे। आज की पीढ़ी के ये तेवर भरोसा दिलाते हैं।