युवा संशय और सपनों का कॉकटेल / जयप्रकाश चौकसे
युवा संशय और सपनों का कॉकटेल
प्रकाशन तिथि : 16 जुलाई 2012
दो अलग-अलग रंग, स्वाद और मिजाज की शराबों को विभिन्न फलों के रस के साथ मिलाने पर कॉकटेल बनता है और यह इतने विविध प्रकार का होता है कि इसके विशेषज्ञ भी हैं। कॉकटेल का नशा जल्दी चढ़ता है और उतरने पर सिरदर्द भी होता है। गोयाकि एक किस्म की अपरिभाषेय बेचैनी ही इसका तलछट है।
विपरीत स्वभाव के पेय मिलाए जाने के बाद भी अपनी स्वतंत्र फितरत नहीं छोड़ते, अत: इनकी विलयशीलता महज दिखावे की है। राजनीतिक दल भी मिलकर साझा सरकार बनाते हैं और उनकी विलयशीलता भी भरम ही है। वे अपनी तुनकमिजाजी और निहित स्वार्थ कभी नहीं छोड़ते। केवल सत्ता का लोभ इन्हें नजदीक लाता है और बांधे रखता है। अन्य कॉकटेलों की तरह राजनीति का कॉकटेल भी तेजी से दिमाग पर छाता है और खुमार उतरते ही सिरदर्द को अपनी तलछट की तरह छोड़ता है।
वर्तमान में यह मिलाना कठिन नहीं है, क्योंकि किसी भी दल के पास अपने प्रचारित राजनीतिक सिद्धांत के प्रति कोई लगाव नहीं है। यह अलग-अलग चीजों को मिलाना फिल्म संगीत में प्रारंभ से ही रहा है, परंतु सिंथेसिस शब्द का इस्तेमाल विगत कुछ वर्षो से ही हो रहा है। शंकर-जयकिशन, नौशाद और सचिन देव बर्मन ये काम सिंथेसिस के पुरोधा माने जाने वाले ‘पंचम’ के जन्म से पहले से करते आ रहे हैं। आजकल अनाड़ी लोग ये सिंथेसिस कर रहे हैं और नकल का आरोप झेल रहे हैं। सारी मौलिकता केवल इस बात में निहित है कि आपकी ‘प्रेरणा’ का मूल किसी को मालूम नहीं पड़े, परंतु विकसित टेक्नोलॉजी के कारण अब मूलस्रोत को छुपाए रखना कठिन हो गया है।
कपड़ा उद्योग में हमेशा ही धागों को मिलाया जाता रहा है। सूत के साथ ऊन और नायलॉन की मिलावट की जाती हैं। दरअसल मनुष्य के अवचेतन और स्मृति पटल पर विभिन्न प्रभावों का मिला-जुला रूप छाया रहता है। भाषाएं और संस्कृतियां हमेशा तरल रही हैं और मिले-जुले प्रभावों से पुरातन होकर भी नित नवीन स्वरूप धारण करती हैं। वे कभी आक्रामक नहीं होतीं, परंतु उनके नाम पर अनेक लोग अखाड़े में दंड पेलते रहते हैं।
वर्तमान में हॉलीवुड के कारण अमेरिकी जीवन शैली का विकृत स्वरूप अनेक देशों के फिल्मकार स्वीकार कर रहे हैं और उसमें अपना देशी तड़का भी लगाते हैं। दरअसल हॉलीवुड से अमेरिकी जनजीवन की कल्पना करना उतना ही दोषपूर्ण है, जितना किसी विदेशी द्वारा मुंबइया सिनेमा से भारत की कल्पना करना। विशुद्ध देशज सिनेमा विरल है। सैफ अली खान की ‘कॉकटेल’ में दीपिका पादुकोण द्वारा अभिनीत पात्र वेरोनिका बिगड़ैल अमीरजादी है और उसका नाम आर्ची कॉमिक्स की नायिका से लिया गया है। दूसरी नायिका पंजाब से लंदन आई सरल स्वभाव की देशी लड़की है, जिसे विवाह के नाम पर ठगा गया है।
इस तरह गीता और सीता की लोकप्रिय छवियों की कॉकटेल में एक लंपट युवा पात्र को मिलाया गया है, जिसके लिए प्रेम का अर्थ कभी वासना से ऊपर नहीं गया। अत: इन तीन पात्रों की कॉकटेल में नायक की ठेठ पंजाबी मां को इस तरह मिलाया गया है, जैसे शराब की कॉकटेल में फलों का रस मिलाया जाता है। बहरहाल, मध्यांतर के बाद इस फिल्म के दुष्ट पात्र पश्चाताप के बाद सन्मार्ग पर आ जाते हैं और मूल चरित्र का यह सतही परिवर्तन ही इसे आज के युवा दर्शकों में लोकप्रिय बना रहा है, जिनकी दिली इच्छा है कि सीता-सी पत्नी मिले और गीता-सी गर्लफ्रेंड। पहले दिन की भीड़ इसी मनोवृत्ति के युवा वर्ग ने बनाई थी, जबकि एकल सिनेमाघर पहले से ही उदासीन हैं।
इस ‘कॉकटेल’ के लेखक इम्तियाज अली हैं, जिनकी गैरपारंपरिक ‘रॉकस्टार’ एआर रहमान और रणबीर कपूर के दम पर बॉक्स ऑफिस की वैतरणी पार कर सकी। इम्तियाज अली का ख्याल है कि सच्च प्रेम होने के बहुत बाद युवा मन उसको पहचान पाता है, गोयाकि यह उस हिरण की तरह है, जो कस्तूरी की तलाश में मारा-मारा फिरता और बहुत बाद में उस सुगंध के स्रोत को स्वयं में खोज पाता है। वे अपनी सभी फिल्मों में इस तरह के पात्र रचते हैं। हालांकि इस फिल्म का निर्देशन उन्होंने नहीं किया है।
फिल्म में प्रस्तुत ठेठ पंजाबी मां का चरित्र स्टॉक चरित्र है। इस फिल्म में उसे अभी तक युवा दिखने के भरम का संकेत दिया गया है। शायद यथार्थ जीवन में डिंपल कपाडिया खन्ना अभी तक अपनी ‘बॉबी’ की छवि को भूल नहीं पाई हैं और यह बात वे अभिनय में भी छुपा नहीं पा रही हैं। युवा मन के संशय और विपरीत दिशाओं में खींचने वाली प्रवृत्तियां तथा युवा भटकाव ही इस फिल्म का डिब्बे में बंद अस्वाभाविक प्रोटीन है और उसी कारण युवा दर्शक इसे देख रहे हैं। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि 1973 में प्रदर्शित ‘बॉबी’ की प्रेरणा राज कपूर को आर्ची कॉमिक्स से ही मिली थी और 2012 में भी आर्ची कॉमिक्स एक फिल्म को जन्म देती है। कॉमिक्स की नायिका शायद अब सठिया गई है, क्योंकि यह बहुत ही पुराना आदिम कॉमिक्स है। उसकी मासूमियत और मादकता का मिश्रण आज भी कायम है। कई मामलों में युवा भी आदिम प्रवृत्तियों से बच नहीं पाते।