यूँ ही / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
"अरे !अरे ! ऊपर क्यों चढ़े जा रहे हो ?" चिंपांजी खिखिया उठा।
"भैया, इस वृक्ष पर मैं जन्म से रह रहा हूँ। यह वृक्ष मेरा है।" छलांग मारकर बंदर एक डाल और ऊपर चढ़ गया।
"तुम्हारा है नहीं, था। अब यह मेरा है।"
"वह कैसे ?" आश्चर्य होकर बंदर ने पूछा।
"जंगल के इस फलदार हिस्से पर युगों से अधिकार जमा कर बैठे हो।अब भागो। इसपर हमारा अधिकार होगा।' कहते हुए चिंपांजी बंदर की डाल पर आ गया। बंदर ने भावुकता के साथ कहा," यहाँ के पेड़, पौधे, नदी, झरने आदि के साथ हमारा जन्म-जन्मांतर का रिश्ता है। यहीं की माटी में हम पले बढ़े और खेले हैं। इसी माटी पर हमारे पूर्वज विलीन हो गए हैं।"
"तो क्या हुआ रे साला, पूछ वाला जंतु ?"
"ऐसा क्यों कहते हो भैया? मैंने सुना है कि ढाई करोड़ वर्ष पहले तुम्हारे और मनुष्य के एक ही परदादा थे -- प्रोकॉन्सुल। मेरे परदादा उनके भाई थे। उन दोनों के पिता एक पूछवाले जंतु ही थे।"
"साला, नाता जोड़ता है !" कहते हुए चिंपांजी ने बंदर की पूंछ ज़ोर से खींची। बंदर चिल्ला उठा और उसकी गर्दन पकड़ ली। दोनों लड़ते-लड़ते धड़ाम से नीचे गिरे। चिंपांजी ने मारते-मारते उसे बेदम कर दिया।
बंदर की छाती पर खड़ा होकर चिंपांजी अपनी छाती ठोंंक-ठोंंककर चैलेंज कर रहा था--- साले, असभ्य बंदर ! तुम्हारी आवाज़ बंद कर दूंगा। तुम्हारे वंश को ख़त्म कर दूंगा। ... तुम्हें खोज खोज कर मारूंगा !