यूडिथ / जे. एच. आनन्द

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यूडिथ’ का रचनाकाल और लेखक दोनों अज्ञात हैं। यह मूलतः हिब्रू भाषा में लिखी गयी थी, लेकिन अब इसका हिब्रू संस्करण उपलब्ध नहीं है। इतिहास और पुरातत्त्व के समीक्षक ‘यूडिथ’ का रचनाकाल 356 ई. पू. मानते हैं। यह यहूदी जाति के त्याग, बुद्धिमानी और राष्ट्रप्रेम की कहानी है।

ईसापूर्व चौथी सदी की बात है। असीरिया जाति का एक सम्राट था। उसका नाम नबूकद नस्सर था। उसकी राजधानी निनिवे थी। वह विश्वविजयी होकर स्वयं को सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपाधि देना चाहता था। उसी का समकालीन मीदे जाति का एक और सम्राट था। वह भी महान पराक्रमी था। उसका नाम अरपक्षद था। अरपक्षद को वास्तुकला से बहुत प्रेम था। उसने अपनी राजधानी बाताना को तराशे हुए मजबूत पत्थरों की चहारदीवारी से घेर रखा था। नबूकद नस्सर ने अरपक्षद पर आक्रमण करने की योजना बनायी। उसने अपने अधीन राज्यों, फारस, सिलिसिया, दमिश्क, लेबनान, कर्मेल, गिलआद, गलील, एस्द्रालोन, सामरिया, यहूदिया, मिस्र देश और इथिओपिया, को राजदूत भेजे कि वे राज्य अरपक्षद की शक्ति नष्ट करने में उसकी सहायता करें। इन राज्यों ने नबूकद नस्सर के आदेश की उपेक्षा कर दी, दूतों का अपमान किया और अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।

यह सूचना सुनकर नबूकद नस्सर बहुत नाराज हुआ। उसने शपथ खायी कि वह अरपक्षद को पराजित कर इन राज्यों को धूल में मिला देगा और इनके राजाओं के रक्त से अपनी तलवार की प्यास बुझाएगा। नबूकद नस्सर ने अकेले ही अपने प्रतिद्वन्द्वी अरपक्षद पर आक्रमण कर दिया। उसे बुरी तरह हरा दिया। उसके अभेद्य दुर्ग को तहस-नहस कर दिया। बाजारों को लूट लिया, शहर में आग लगा दी। और अपने नगर में लौटकर विजय-पर्व मनाया। उसी पर्व में उसने स्वयं को ईश्वर घोषित किया। कुछ दिन बाद सम्राट नबूकद नस्सर ने अपने प्रधान सेनापति होलोफेरनिस को आदेश दिया कि वह एक लाख बीस हजार पैदल सेना और बारह हजार धनुर्धर अश्वारोहियों को साथ लेकर सभी विद्रोही राजाओं को समाप्त कर दे। उनकी स्त्रियों को अपने लिए लूट ले। उनके बूढ़े, बच्चे और जवानों को गुलाम बना ले। नदियों और घाटियों को लाशों से भर दे। जो राजा आत्मसमर्पण करें, उन्हें उसके आने तक जीवित रखे।

होलोफेरनिस विशाल सेना लेकर विजय के लिए निकल पड़ा। उसने थोड़े ही समय में इस्माएल वंशियों को नष्ट कर दिया। मेसोपोटामिया में आग लगा दी। सिसिलिया राज्य खँडहरों में बदल गया। याफेत को लूट लिया। लूटी गयी स्त्रियाँ सैनिकों में बाँट दी गयीं, दमिश्क का नामोनिशान तक मिटा दिया। सीदोन, तूर, सूर, ओसीना आदि राज्यों के पूजास्थल नष्ट कर दिए गये और घोषणा की गयी कि सभी नागरिक आज से सम्राट नबूकद नस्सर को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करें और उसे भेंट चढ़ाएँ। सेनाध्यक्ष होलोफेरनिस का अगला शिकार यहूदी जाति थी। यह जाति पेलिस्तीन के यहूदा प्रदेश में रहती थी। आसपास के नगरों और पूजास्थलों की बरबादी का समाचार सुनकर यहूदियों को अपने पवित्र नगर यरूसलम और ईश्वर यहोवा के मन्दिर की चिन्ता होने लगी। वे यहोवा की पूजा और प्रार्थना करने लगे कि वह उन्हें इस विपत्ति से बचाए।

यहूदी प्रदेश का प्रवेश-द्वार बेतूलिया नगर था। वह एक पहाड़ी पर बसा था। बेतूलिया को दुर्गम परकोटे से घेर दिया गया था। इसके लिए एक बहुत ही सँकरा मार्ग था, जिससे एक समय में सिर्फ एक ही व्यक्ति गुजर सकता था। वहीं एक बहुत बड़ी झील थी। उसी झील से सारे यहूदी प्रदेश में पानी जाता था। यहूदी जाति के जन्मजात शत्रु उसके चचेरे भाई एदोमी जाति के लोग थे। वे होलोफेरनिस से मिल आये। एदोमी के सेनापति ने होलोफेरनिस को राय दी कि झील पर कब्जा कर लिया जाय और बाहर निकलने के सारे मार्ग घेर लिये जाएँ। कुछ ही दिनों में जब यहूदी प्यासे मरने लगेंगे, तो स्वयं आत्मसमर्पण कर देंगे। और बिना लड़े विजय मिल जाएगी।

होलोफेरनिस और उसके अफसरों को यह राय बहुत पसन्द आयी। उन्होंने झील पर कब्जा कर लिया और नहरों के मुँह बन्द कर दिये। अन्य मार्गों पर बड़ी-बड़ी सैनिक चौकियाँ बिठा दी गयीं, ताकि कोई यहूदी बाहर न भागने पाए। यहूदी प्यासे मरने लगे। बच्चों, वृद्धों और स्त्रियों का प्यास से तड़पना देख कर उन्होंने अपने नगर प्रमुख उज्जियाह को राय दी कि वह आत्मसमर्पण कर दे। नगर प्रमुख ने उन्हें पाँच दिन तक और प्रतीक्षा करने के लिए कहा। उसका विश्वास था कि ईश्वर यहोवा अवश्य सहायता करेगा। उसी नगर में यूडिथ नाम की एक विधवा युवती रहती थी। वह अनिन्द्य सुन्दरी थी। वह अपना सारा समय पूजा-पाठ और यहोवा की सेवा में लगाती थी।

जब पाँच दिन में यहूदियों के आत्मसमर्पण की बात यूडिथ ने सुनी, तो उसे बहुत दुःख हुआ। उसने नगर प्रमुख को अपने यहाँ बुलाया और उससे कहा, “यदि हम आत्मसमर्पण कर देंगे, तो सारा यहूदी प्रदेश गुलाम हो जाएगा। यहूदी स्त्रियों की पवित्रता निर्दयतापूर्वक रौंद डाली जाएगी। आप मुझे तीन दिन का समय दें, मैं ईश्वर यहोवा से प्रार्थना करूँगी कि वह मुझे इतनी शक्ति दे जिससे मैं अपने देश की रक्षा कर सकूँ। आप मुझे सूर्यास्त के समय प्रवेश-द्वार पर मिलें। मैं तीन दिन के लिए बाहर जाना चाहती हूँ।” उस समय यूडिथ का तेज असह्य था। नगर प्रमुख ने उसकी बात मान ली और चला गया। यूडिथ ने सम्मोहक श्रृंगार किया। अपना खाने-पीने का सामान एक गठरी में बाँधा और सूर्यास्त के समय प्रवेश-द्वार पर पहुँच गयी। नगर प्रमुख वहाँ उपस्थित था। द्वार खुलवाया गया और यूडिथ उनसे विदा हो गयी। यूडिथ असीरियनों के शिविर में पहुँची। सैनिक उसके सौन्दर्य-सागर में डूबने लगे। तभी उसने सैनिकों से कहा कि वह होलोफेरनिस के पास जाना चाहती है। वह उन्हें कुछ ऐसे गुप्तमार्ग बताना चाहती है, जिससे आसानी से यहूदियों पर विजय पायी जा सके। सैनिक उसे होलोफेरनिस के पास ले गये। होलोफेरनिस उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया। उसकी वासना भड़क उठी।

उसने किसी यहूदी स्त्री को नहीं भोगा था और ऐसी सुन्दरी तो उसने देखी भी नहीं थी। वह यूडिथ के स्वागत में बिछ-सा गया। यूडिथ ने कहा, “मैं अपने ईश्वर यहोवा की आज्ञा से आपके पास आयी हूँ। मैं आपकी सहायता करूँगी और ऐसे गुप्तमार्ग बताऊँगी, जिनसे आप यहूदियों को समाप्त कर सकें। मैं रोज रात में घाटी में जाया करूँगी और यहोवा की पूजा करूँगी। यहोवा ही मुझे आक्रमण की शुभ घड़ी बताएगा। तभी आप यहूदी प्रदेश पर आक्रमण कर दें।” यूडिथ को आराम से रहने और पूजा के लिए जाने की आज्ञा मिल गयी। यूडिथ तीन दिन असीरियनों के शिविर में रही। होलोफेरनिस उसे प्राप्त करने के लिए बेचैन होता रहा। चौथी रात शुरू हुई। होलोफेरनिस से अधिक सहन न हो सका। उसने यूडिथ को अपने खेमे में बुलाया। यूडिथ सम्पूर्ण श्रृंगार कर उसके पास गयी। उसके साथ उसकी दासी भी थी। खेमे में पहुँचकर उसने होलोफेरनिस से प्रार्थना की कि इतने लोगों के सामने उसे शर्म आती है अतः सबको खेमे से बाहर निकाल दिया जाए।

उसकी प्रार्थना का आज्ञा की तरह पालन किया गया। सभी अंगरक्षक और दासियाँ द्वार बन्द कर बाहर चले गये। द्वार पर यूडिथ की दासी खड़ी कर दी गयी। यूडिथ ने होलोफेरनिस को अदाओं के साथ इतनी शराब पिलायी कि वह बेहोश हो गया। यूडिथ ने उसी की तलवार से उसका सिर काट लिया और अपनी पोटली में लपेट लिया। फिर वह रात्रि पूजा के बहाने अपनी दासी के साथ घाटी में चली गयी। घाटी से निकलकर वह बेतूलिया के प्रवेश-द्वार पर पहुँच गयी। द्वार खुलवाया गया। उसने नगर प्रमुख को होलोफेरनिस का कटा हुआ सिर दिखाकर कहा कि सुबह असीरियनों पर आक्रमण कर दिया जाए। अपने सेनापति की मृत्यु का समाचार पाकर वे भागने लगेंगे, तभी उन्हें समाप्त कर दिया जाए। सारे यहूदी प्रमुख और नागरिक तथा सैनिक यूडिथ की प्रशंसा करने लगे। वे खुशी से नाचने, गाने और जय-जयकार करने लगे। नगर प्रमुख ने उन्हें शान्त किया और यूडिथ के उपाय को क्रिया रूप देने का उपक्रम करने लगे। 

दूसरे दिन सवेरे यहूदियों ने होलोफेरनिस का सिर नगर के परकोटे पर टाँग दिया। वे पहाड़ से नीचे उतरने का उपक्रम करने लगे। ज्योंही असीरियनों ने उन्हें उतरते देखा, उन्होंने रणभेरी बजा दी। सैनिक अधिकारी निर्देश लेने के लिए होलोफेरनिस के खेमे के पास गये। उन्होंने प्रधान अंगरक्षक को सेनाध्यक्ष के पास भेजा। अंगरक्षक ने परदा हटाकर शयनकक्ष में प्रवेश किया। उसे सामने ही अपने सेनापति का सिर विहीन धड़ दिखाई दिया। उसके मुँह से भयानक चीख निकल गयी। वह बदहवास-सा यूडिथ के खेमे में गया। खेमा खाली था। वह छाती पीटने और चिल्लाने लगा-”धोखा, विश्वासघात! एक यहूदी औरत सेनापति का सिर काटकर ले गयी!” यह खबर सुनकर शेष सेनाधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। जब सैनिकों को यह समाचार ज्ञात हुआ, तो वे सम्भ्रम में पड़कर भागने लगे। उन्हें भागता देखकर यहूदी सैनिक उन पर टूट पड़े। असीरियनों की छावनी उजाड़ हो गयी। सिवा लाशों के कुछ न बचा। इस तरह यूडिथ की सूझ-बूझ और साहस ने यहूदी जाति को गुलाम होने से बचा लिया। युडिथ यहूदियों में एक देवी की तरह पूज्य हो गयी।