ये जो जि़न्दगी की किताब है / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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हम जि़न्दगी भर अनगिनत किताबे पढ़ते हैं और इन किताबों में मन के प्रश्नों के उत्तर खोजते हैं, न जाने कितनी किताबें पढ़ी और कितनी पढ़ के भूल गए, लेकिन कुछ किताबें हमें ताउम्र याद रहती हैं। किताबें हमें जीना सिखाती हैं और जीने का हुनर भी। हम सभी अपनी जि़न्दगी जीते है, कोई अपने लिए जीता है तो कोई किसी और के लिए गुजार देता है। ये जीवन भी तो एक किताब ही है जिसे हम जन्म के दिन से लिख रहे हैं और अंतिम दिन तक लिखेंगे क्या-क्या लिखा? कैसा लिखा? अधूरा लिखा या पूरा लिखा? खुशी लिखी या गम लिखा? कभी सोचा ही नहीं बस लिखते ही गए कभी इस किताब को पढऩे की नहीं सोची और जिस दिन पढऩे बैठे उस दिन किताब ही रूठ गयी बोली अब नहीं बहुत देर हुई अब सो जाओ तुम।

क्यों समय रहते हमने अपनी जि़न्दगी की किताब नहीं पढ़ी। अंतिम नींद के पहले सारी किताबे पढ़ लेनी थी। रोज हम नए-नए पन्नों पर हर पल का हिसाब लिखते चले गये। खाते-बही लिख-लिख कर खुश होते गए लेकिन खातों को, इन पोथियों को कभी गलती से भी उलट-पलट कर नहीं देखा, किसी दिन फु रसत से अगर देखने बैठे तो पायेंगे कि हमारी जि़न्दगी की किताब का पहला पन्ना हमारे जन्म से शुरू होता है और फिर हम गढऩे लगते हैं रोज नई इबारत-बचपन की, वो कागज की कश्ती, बारिश का पानी और गुडिय़ां के ब्याह के रंग में रंगे कुछ पन्ने तो आम के पेड़ से कच्ची कैरियों को चुराने के आनन्द से सराबोर कुछ पृष्ठ... कुछ आगे बढ़े तो युवावस्था के इन्द्रधनुषी पन्ने जिनमें है प्रेम के सुर्ख गुलाब, तो कहीं है पीले, नारंगी अहसास।

कहीं फागुन के रंग तो कहीं सावन की भिगोती फुहार से भीगे-भीगे पन्ने होते हैं इस किताब में-कुछ पन्ने गुलाबी और थोड़े सुर्ख होते हैं जिन पर लिखी होती है प्रेम की, इजहार की और मिलन की इबारत ये पन्ने इस किताब के सबसे चमकीले पन्ने होते हैं, जो पूरी जि़न्दगी हमें रोमांचित करते है हम इन्हें बार-बार पढऩा चाहते हैं-प्रेम के पन्ने कभी बदरंग नहीं होते।

वो उम्र के हर मोड़ पर हमें लुभाते हैं। इन पन्नों पे हमने अपनी सबसे सुन्दर भावनाएं दर्ज की होती हैं, लेकिन इस किताब के कुछ पन्ने स्याह क्यों? काले नीले और थोड़े बदरंग क्यों? राख जैसे धूसरसे, जरूर ये दर्द दुख और पीड़ा के पन्ने हैं तन्हाइयों के पन्ने हैं इन्तजार के पन्ने है जो आंसुओं से भीग-भीग कर गल गए हैं इन्हें ज़रा आराम से उलटना वरना ये चूर-चूर हो जायेंगे ये दर्द के पन्ने हम दुबारा कभी भी पढऩा नहीं चाहते इन्हें पढऩे से हमारा अंतर-मन दुखता है। हम फिर से दुख के सागर में डूब जाते हैं।

ये काले धूसर पन्ने हमें बिलकुल नहीं सुहाते। आगे फिर इस किताब में कुछ सतरंगी पन्ने जगमगाते हैं। इनमें दर्ज है किसी की मुस्कु राहटें जो हमने सजाई थी किसी के लबों पर या किसी ने रख दी थी हमारे होठों पर, ये हंसी-खुशी के सतरंगी पन्ने भी चमक रहे है यहाँ। अरे, ये कुछ पन्ने हमने किताब में मोड़ कर क्यों रखे? ये हमारे बिलकुल निजी पन्ने है शायद जिन में हमने अपने निजी पलों को छुपा रखा है। जि़न्दगी की किताब के ये पन्ने हमें जीने का हौसला देते है। तन्हाइयों में जब कोई पास नहीं होता तब ये प्यार की थपकी देते हैं, जब आँखों से आंसुओं की धारा बहती है और कोई नहीं साथ होता तब ये पन्ने कहते हैं हम है ना। तुम्हारे-ये मुड़े पन्ने जिनमें छिपे है कई निच्छल रिश्ते, आत्मिक रिश्ते बिना, जरूरत के रिश्ते और उनकी ऊष्मा अभी है जीवित है। इन्हें छूना नहीं हाथ जल सकते हैं, आगे चलते हैं अरे इन आखिरी पन्नों पर तो कुछ लिखा ही नहीं है बिलकुल कोरे-क्यों? शायद ये वो पन्ने हैं उन भावनाओं और संवेदनाओं के नाम हैं उन ख्वाहिशों के नाम हैं। जिन्हें कभी व्यक्त ही नहीं किया गया, अनकही बातें लिखी हैं यहाँ।

भला शब्दों में इतनी सामथ्र्य कहाँ की वो भावनाओं को हुबहू व्यक्त कर दें। सारा अनकहा इन्हीं पन्नों में लिखा गया है। टूटी-फू टी ख्वाहिशें, आधे-अधूरे अरमान कुछ बेनाम रिश्ते, कुछ प्रेम भरे खत जो कभी लिखे ही नहीं गए कुछ आंसू जो पलकों पे सूख गए कुछ अनकही बातें जो होठों के किनारों पे चिपकी रहीं, इन पन्नों को पढऩे की नहीं महसूस करने की जरूरत है। इन्हें भी आप छुए नहीं बहुत कोमल हैं ये-मुरझाने का डर है और अंत में इस किताब के कुछ पन्ने फ टे हुए से दिखते हैं जरूर ये वो पन्ने होंगे जो जि़न्दगी की किताब से हमेशा के लिए दूर हो गए मगर उनके अलग होने के निशाँ किताब पर बखूबी देखे जा सकते हैं। ठीक वैसे जैसे कोई मासूम सा बच्चा अपनी गलतियाँ छिपाने के लिए और कॉपी को सुन्दर बनाये रखने केलिए कुछ पन्ने फ ाड़ देता है। टीचर के दिए गए रिमार्क वाले पन्ने को भी फ ाड़ देता है और मन-ही-मन खुश होता है कि अब कोई कमी नहीं इस नोटबुक में सब ठीक कर दिया है, लेकिन फटे हुए पन्नों की चुगली बाकी पन्ने कर ही देते हैं।

तो साहब ये है जि़ंन्दगी की किताब के पन्ने, हरेक की अपनी किताब है ये। हमें तय करना है हम उसे किस तरह से संजोते हैं पढ़ते हैं। हमें कोई हमारे जाने के बाद भी प्रेम से पढ़े, हम ऐसी किताब बन जाये। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-

'ये किताब भी क्या खिताब है

कहीं इक हँसी सा ख्वाब है

कहीं जान लेवा अजाब है

कहीं आंसू की है दास्ताँ

कहीं मुस्कुराहटों का है बयान,

कई चेहरे हैं इसमें छिपे हुए-

इक अजीब सा ये नकाब है

कहीं खो दिया, कहीं पा लिया

कहीं रो दिया, कहीं गा लिया

कहीं छीन लेती है हर खुशी

कहीं मेहरबान लाजवाब है।'