ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..! / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..!
प्रकाशन तिथि : 04 नवम्बर 2019


सलमान खान अभिनीत 'दबंग 3' इसी वर्ष दिसंबर में प्रदर्शित होगी। अगले वर्ष ईद के अवसर पर 'राधे' का प्रदर्शन किया जाएगा। जिसकी ताबड़तोड़ शूटिंग प्रारंभ की जा रही है। 'तेरे नाम' सतीश कौशिक ने निर्देशित की थी। फिल्म का नायक एकतरफा प्रेम करता है। धीरे-धीरे आग दोनों ओर धीमे-धीमे सुलगने लगने लगती है, परंतु कुछ गुंडे नायक को स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी पर मारते हैं। उसे अस्पताल ले जाया जाता है। शरीर के जख्म भर जाते हैं परन्तु चोट के कारण वह पागल हो जाता है। पागल खाने के दृश्य भयावह बन पड़े हैं। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि वह पागलपन से मुक्त हो जाता है परंतु इस दरमियान प्रेमिका का विवाह हो जाता है और वह जहर खाकर मर जाती है। नायक निर्णय करता है कि उसे पागलपन का स्वांग करके पुनः पागलखाने में दाखिल हो जाना चाहिए। इस समझदार दुनिया में उसके लिए स्थान नहीं है। उसे पागलखाना समझदारों की दुनिया से बेहतर जगह लगती है।

इस फिल्म के प्रदर्शन के अनेक वर्ष पूर्व रमेश तलवार द्वारा निर्देशित 'बसेरा' में राखी को पागलखाने जाना होता है। उसकी गैर हाजिरी में उसकी बहन रेखा, राखी के बच्चों का ख्याल रखने के लिए उनके घर आती है। धीरे-धीरे वह बच्चों के साथ ही उनके पति को भी साध लेती है। पूरा परिवार प्रसन्न और मगन है। कालांतर में राखी का दिमागी संतुलन ठीक हो जाता है। विशेषज्ञ परीक्षण करके उसके सामान्य होने का प्रमाण पत्र देते हैं। राखी अपने घर लौटती है और महसूस करती है कि सब कुछ ठीक चल रहा है और उसके बच्चों तथा पति की देखभाल उसकी बहन बखूबी कर रही है। वह जान लेती है अब उसके परिवार में उसके आने से सब कुछ बिखर जाएगा। राखी फिर पागलपन का स्वांग करके पागलखाने लौट जाती है। संगीतकार हेमंत कुमार से वहीदा रहमान ने निवेदन किया कि वे बंगाली भाषा में बनी फिल्म 'खामोशी' को हिंदुस्तानी भाषा में बनाएं। वहीदा रहमान की भूमिका चुनौतीपूर्ण लगी जो अपनी सेवा टहल से दिमागी संतुलन खोए हुए मरीजों का इलाज करती है, परंतु पूरी तरह से ठीक होते ही वे अपनी नर्स को भूल जाते हैं। इस तरह के मरीजों की सेवा करते करते और ठीक होने पर उसे विस्मृत करने वालों की हृदय हीनता के कारण वह अपना दिमागी संतुलन खो देती है। अब नर्स मरीजा है। इस फिल्म में पागलों पर फिल्माया मन्ना डे द्वारा गाया गीत कमाल का था- 'रम से भागे गम जिन से भागे भूत-प्रेत।' कमल हासन श्रीदेवी अभिनीत फिल्म 'सदमा'में भी नायिका दिमागी संतुलन प्राप्त करते ही सब कुछ भूल जाती है। अंतिम दृश्य में श्रीदेवी रेलगाड़ी में बैठकर जा रही है और प्लेटफार्म पर उसे गुजरे दिन याद कराने के लिए कमल हासन गुलाटिया खाता है और उटपटांग हरकतें करता है। वह सब करता है जो श्रीदेवी अपने पागलपन के दौर में करती थी, परंतु उसे कुछ याद नहीं आता। किशोर कुमार ने भी अपनी फिल्म 'हाफ टिकट' में पागलपन का स्वांग बखूबी रचा था। फिल्म '420' के एक दृश्य में नायक सिर के बल खड़े होकर कहता है कि इस औंधी दुनिया को सीधा देखने के लिए शीर्षासन करना चाहिए। उन दिनों शीर्षासन करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक तस्वीर अखबार में प्रकाशित हुई थी।

हॉलीवुड में बनी एक फिल्म का नाम था- 'इट्स ए मैड मैड मैड वर्ल्ड'। एक हास्य रस की फिल्म थी। पागलखाने में इलाज के नाम पर किए गए जुल्म को दिखाने वाली फिल्म का नाम था 'वन फ्ल्यू ओवर द कुकूज नेस्ट' । यह फिल्म पुलित्जर प्राइज से नवाजे गए उपन्यास से प्रेरित थी। इसी फिल्म से प्रेरित होकर अमजद खान ने एक अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म में नायक को पागलखाने भेजने के दृश्य ठूसे थे। सामान्य अवस्था और पागलपन के बीच एक क्षीण रेखा है। हम अपने जीवन में यह जान ही नहीं पाते कि हमारे अपने करीबी लोगों में पागलपन सुसुप्त अवस्था में मौजूद है। इतना ही नहीं हम स्वयं भी बड़ी कठिनाई से अपने आपको सामान्य बनाए रखते हैं। निदा फाजली की एक पंक्ति है- 'मौला सोच-समझ वालों को थोड़ी नादानी दे, बच्चों को गुड़धानी दे।'