ये धागा है प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय / ममता व्यास

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पिछले दिनों बहुत-सी शादियों में जाने का अवसर मिला। कितने खुश होते हैं सब शादियों में। जिनकी हो रही है वो भी और जो शादियों में मेहमान बन कर आते हैं वो सब भी। खूब आनन्द और उल्लास का माहौल रहता है। और फिर सभी वर-वधु को उनके वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं देकर अपने-अपने घर चले जाते है। हमारी हिंदी फिल्मों में भी अंत में सभी किरदार आपस में मिल जाते है। सभी के विवाह हो जाते है और फिल्म का "दी एंड" हो जाता है। अक्सर सोचती हूँ। क्या विवाह हो जाना ही सुख, ख़ुशी और आनन्द की गारंटी है। यदि हाँ तो फिर आए दिन विवाह टूट क्यों रहे हैं? क्यों वकीलों और काउंसलरों के दरवाजे खटखटाए जा रहे हैं? पहले अपने लिए योग्य साथी की तलाश। फिर विवाह का खर्चा और फिर विवाह को बचाने की कवायद। विवाह में होने वाले खर्चे से ज्यादा है महंगा है विवाह को बचाना। टूटते रिश्ते, बढ़ती दूरियाँ अवसाद, निराशा, अकेलापन और मानसिक तनाव का पर्याय बन गए हैं विवाह। लेकिन संतोषजनक बात ये है कि मनोविज्ञान में एक ऐसी चिकित्सा विधि है जिसके द्वारा विवाह या टूटते रिश्तों को फिर से जोड़ने की कोशिश की जाती है। चलिए जानते है क्या है वैवाहिक चिकित्सा विधि और कैसे की जाती है क्लायंट की चिकित्सा।

वैवाहिकी चिकित्सा इक़ तरह की समूह चिकित्सा है। जो पारिवारिक चिकित्सा के बहुत करीब है। इस चिकित्सा विधि में पति और पत्नी के बीच के पारस्परिक संबंधों को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है। इन दिनों देश विदेशों में हजारों महिला और पुरुष अपने विवाह को बचाने या उससे छुटकारा पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। विवाह के अलावा आजकल आज बिना विवाह के भी इक़ दूजे के साथ रहने की रीत चल पड़ी है। पुरुष और महिला बिना विवाह किये साथ-साथ रहते हैं। इसलिए आजकल वैवाहिकी चिकित्सा की जगह मनोवैज्ञानिकों द्वारा युग्म चिकित्सा यानि "कपल थेरेपी" का प्रयोग अधिक किया जाता है। युग्म चिकित्सा में विवाहित जोड़े, अविवाहित जोड़े, समलिंगी जोड़े तीनों ही तरह के लोगो का उपचार किया जाता है।

युग्म चिकित्सा में दोनों सहयोगियों को अक्सर इक़ साथ बुलाया जाता है, उनकी बातों को ध्यान से सुना जाता है और समाधान निकाले जाते हैं। मनोचिकित्सकों की कोशिश यही होती है की जोड़ियों के आपस में सम्बन्ध उन्नत बने। इस चिकित्सा विधि में कई तरह के उपागम या एप्रोचेस का उपयोग किया जाता है। जोड़ियों को एक दूजे की बातें सुनने के लिए रोजेरियन प्रविधि का उपयोग कराया जाता है। इस उपागम में एक दूसरे की प्रतिक्रियाओं के बीच स्पष्टीकरण करने में मदद करते हैं। इससे भविष्य में दोनों के बीच उत्तम सम्बन्ध बनने की नींव मजबूत हो। दूसरे उपागम में व्यवहार चिकित्सा का उपयोग किया जाता है। इसमे युगल जोड़ी को वांछित व्यवहारों को पुनर्बलित करना सिखलाया जाता है तथा अवांछित व्यवहार को हटाने की प्रेरणा दी जाती है। इस सिलसिले में मार्गोलिन तथा विस १९७५ ने युग्मों (कपल) के लिए सरंचित व्यवहार चिकित्सा का उपयोग किया। इसमें छह अवस्थाओं या चरणों पर विचार किया जाता है। और जिसे पूरा करने में करीब ढाई महीने का समय लगता है। ये महत्वपूर्ण अवस्थाएं निम्नलिखित हैं:

पहली अवस्था में कपल जोड़ी के समस्यात्मक व्यवहार तथा सभी कारणों की पहचान करते हैं। दूसरी अवस्था या चरण में दोनों साथियों के बीच टूटे हुए सवांद को फिर से कायम करना है। बातचीत के रास्ते फिर से खुलें, इसके लिए चिकित्सक-- माडलिंग, व्यवहारपरक रिहर्सल तथा विडिओ फीडबेक का सहारा लेते हैं। अगले चरण में चिकित्सक युगल जोड़ी को मानसिक संघर्ष का समाधान करने को कहते हैं। इसके अगले चरण में सिखाया जाता है कि अच्छा व्यव्हार कैसे किया जाए? अच्छे व्यवहार पर पुरस्कार और गलत व्यवहार पर दंड दिया जाता है। मनोचिकित्सकों की कोशिश होती है कि पति और पत्नी या दोनों साथी एकदूजे की अच्छाइयों को देखे और उन बातों को नकार दें जिनसे वे असहमत हैं। चौथी अवस्था को चिकित्सकों ने अतिमहत्वपूर्ण माना है। इसमे युगल संचार कौशल सीखता है तथा एक दूसरे के साथ संतोषजनक सम्बन्ध बनाता है। अन्तिम चरण में, जोड़ी के बीच अनुबंध किया जाता है। धीरे-धीर वे समझने लगते हैं एवं अपनी भूमिका के प्रति सचेत रहते हैं। इस तरह ये चरण पूरे होते हैं।

अब महत्वपूर्ण सवाल ये उठता है कि क्या किसी विवाह या रिश्ते को बचाने के लिए कोई प्रविधि या चिकित्सा विधि कामगार हो सकती है? क्या कोई टेक्निक किसी सम्बन्ध को मजबूत कर सकती है? घनिष्ट बना सकती है? इस सवाल का जवाब हमें मनोचिकित्सक कुकरली (१९८०) देते हैं। मनोचिकित्सक कुकरली ने ३२० ऐसे क्लायंटों का पांच सालों तक अनुसरण किया जिन्होनें वैवाहिक चिकित्सा का लाभ लिया था। उनके सम्बन्ध विच्छेद दर को भी देखा गया। ऐसे केसेज में जिसमे दोनों सहयोगियों को वैवाहिक चिकित्सा इक़ साथ मिली थी; ५६.४५% युग्म या कपल पांच सालों तक वैवाहिक जीवन बिता चुके थे तथा जिन केसेज में अन्य दूसरे तरह की चिकित्सा दी गयी; केवल २९% ही पांच साल तक विवाहित जीवन बिता सके।

इन सभी निष्कर्ष की संपुष्टि गुरमैन, कनिस्कर्ण तथा पिनसोफ़ द्वारा इस क्षेत्र में किये गए अध्ययनों की समीक्षा से भी मिलता है। यही नहीं इस चिकित्सा विधि द्वारा विषाद, एगोरा-फोबिया तथा अल्कोहल के दुरूपयोग आदि का उपचार भी किया जाता है। इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि वैवाहिक चिकित्सा इक़ प्रकार की पारिवारिक चिकित्सा है। इस विधि से बहुत हद तक वैवाहिक संकट को दूर करके वैवाहिक संबंधों को उन्नत बनाने में काफी मदद मिलती है। विवाह इक़ प्रेम से बुना हुआ धागा है इसे प्रेम से सहेजना होगा। ये धागा है विश्वास का, इसे मत तोड़ो चटकाय...