ये रात फिर न आएगी / गोवर्धन यादव
शरद पुर्णिमा का दिन था। चांद अपने पूरे यौवन के साथ आकाश पटल पर चमचमा रहा था। मौसम बड़ा सुहाना हो गया था। रात के बारह बजे सारा जंगल आराम से सो रहा था। चारों ओर शांति का साम्राज्य था। पॆड़ की एक डाल पर बन्दर और बन्दरिया बैठे जाग रहे थे और दूसरी डाल पर तोता और मैना बैठे हुए थे। यह वह समय था जब पशु-पक्षी एक दूसरे की भाषा समझते थे।
तोता बोला:-"मैना, रात नहीं कट रही है। कोई ऎसी बात सुनाओ कि वक़्त भी कट जाए और मनोरंजन भी हो।" मैना मुस्कुराई और बोली:-"क्या कहूँ आप बीती या जगबीती। आप बीती में भेद खुलते हैं और जगबीती में भेद मिलते हैं" । तोता होशियार था, बोला-"तुम तो जगबीती सुनाओ" । मैना ने कहा:-"आज की रात एक चमत्कारी रात है। आज ही के दिन चन्द्रमा से अमृत बरसेगा। अमृत की कुछ बूंदे कमलताल में भी गिरेगी, जिससे इसका पानी चमत्कारी गुणॊं से युक्त हो जाएगा। यदि कोई प्राणी आधी रात को इस कमलताल में कूद जाए तो आदमी बन जाएगा।" । तोता बोला-": क्या सचमुच में ऎसा हो सकता है" । मैना ने कहा: "जो प्रेम करते हैं, वे सवाल नहीं पूछते, भरोसा करते हैं" ।तोते ने मैना से कहा "तो फिर देर किस बात की। चलो हम दोनों तालाब में कूद पड़ते हैं और आदमी बन जाते हैं" । मैना ने कहा, "अरे तोता, हम पंछी ही भले। अभी तू आदमी के फ़ेर में नहीं पड़ा है, इसलिए चहक रहा है। हम अपनी ही जात में बहुत खुश हैं।"
तोता-मैना कि बातें बन्दर और बन्दरिया ने सुनी तो चौंक पड़े। अधीर होकर बन्दरिया ने बन्दर से कहा-"साथी आओ.।कूद पड़ें।" बन्दर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा-"अरे छॊड़ रे सखी, हम ऎसे ही खुश हैं। एक डाल से दूसरी और दूसरी से तीसरी पर छलांग मारते रहते हैं। पेड़ों पर लगे मीठे-मीठे फ़ल खाकर अपना गुजर-बसर करते हैं। न घर बनाने की झंझट और न ही किसी बात की चिन्ता। हमें क्या दुख है। अपने दिमाक से आदमी बनने का ख़्याल निकाल दे" । बन्दरिया आह भर कर बोली-"ये जीवन भी कोई जीवन है? मैं तो तंग आ गई हूँ इस जीवन से। मुझे यह सब करना अच्छा नहीं लगता। आदमी की योनि में जन्म लेकर मैं दुनियाँ के सारे सुख उठाना चाहती हूँ । देखो, मैंने अपना मन बना लिया है और मैं अब तालाब में कूदने जा रही हूँ। यदि तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो तो मेरा साथ देना होगा। मैना कि बताई घड़ी बीतने वाली है, सोच क्या रहे हो, आओ पकड़ो मेरा हाथ और कूद पड़ो" । बन्दरिया कि बात सुनकर बन्दर हिचकिचाने लगा। बोला-"तुम भी मैना कि बातों में आ गयी। पानी में तो कूद पड़ेगे, लेकिन किसी जहरीले सांप ने काट लिया तो मुफ़्त में जान चली जाएगी" । बन्दरिया समझ गयी कि बन्दर साथ न देगा। घड़ी बीतने ही वाली थी। बन्दरिया चमत्कार देखने के लिए उत्सुक थी, झम्म से कमलताल में कूद पडी. आश्चर्य, बन्दरिया कि जगह वह सोलह साल की युवती बन गई थी।
उसके रूप से चांदनी रात जगमगा उठी। डाल पर बैठे बन्दर ने जब उसका अद्भुत रूप देखा तो पागल हो उठा। उसने तत्काल फ़ैसला लिया कि वह भी कमलताल में कूदकर आदमी बन जाएगा। उसने डाल से छलांग लगाया और तालाब में कूद पड़ा, लेकिन वह शुभ घड़ी कभी की बीत चुकी थी। वह बन्दर का बन्दर ही बना रहा।
दिन निकला। थर-थर कांपती युवती, सूरज की गुनगुनी धूप में अपना बदन गर्माने लगी थी। तभी संयोग से एक राजकुमार उधर से आ निकला। उसने उस रुपवती युवती को देखा तो बस देखता ही रह गया। उसने अपने जीवन में इतनी खूबसूरत युवती इसके पहले कभी नहीं देखा थी। देर तक अपलक देखते रहने के बाद, वह उसके पास पहुँचा और अपना उत्तरीय उतारकर उसके कंधो पर डाल दिया। फिर अपना परिचय देते हुए कहा–"-हे सुमुखी...सुलोचनी...मैं इस राज्य का राजकुमार हूँ और शिकार खेलने के लिए इस जंगल में आया हूँ। इससे पहले मैंने तुम्हें यहाँ कभी नहीं देखा। तुम्हें देखकर यह नहीं लगता कि तुम इस लोक की वासी हो। हे! त्रिलोक सुन्दरी बतलाओ, तुम किस लोक से इस धरती पर अवतरित हुई हो और तुम्हारा क्या नाम है?" ।
एक अजनबी और बांके युवक को सामने पाकर वह शर्म से छुईमुई-सी हुई जा रही थी। शरीर में रोमांच हो आया था। सोचने–समझने की बुद्धि कुंठित-सी हो गई थी। वह यह तय नहीं कर पा रही थी कि प्रत्युत्तर में क्या कहे।? क्या उसे यह बतलाए कि कुछ समय पूर्व तक वह बन्दरिया थी और अर्धरात्रि में इस कमलताल में कूदने के बाद, एक सुन्दर-सुगढ युवती बन गई है? देर तक नजरें नीचे झुकाए वह मौन ओढ़े खड़ी रही।
राजकुमार ने मौन को तोड़ते हुए कहा:-"मैं भी कितना मुर्ख हूँ, जो ऎसे-वैसे सवाल पूछ बैठा। मुझे यह सब नहीं पूछना चाहिए था। देवी माफ़ करें। मेरी एक छॊटी-सी विनती है, उसे सुन लीजिए. तुम्हारी यह कमनीय काया जंगल में रहने योग्य नहीं है। तुम्हारे ये नाज़ुक पैर उबड़-खाबड़ और कठोर धरती पर रखने लायक नहीं है। फिर जंगल के हिंसक पशु तुम्हें देखते ही चट कर जाएंगे। मैं नहीं चाहता कि तुम उनका शिकार बनो। तुम्हें तो किसी राजमहल में रहना चाहिए. तुम कब तक इस बियाबान जंगल में यहाँ-वहाँ भटकती रहोगी। मेरा कहा मानो और मेरे साथ राजमहल में चली चलो। मैं दुनिया के सारे वैभव, सुख-सुविधाएँ तुम्हारे कदमों में बिछा दूँगा। तुम्हें अपनी रानी बनाकर रखूँगा। पूरे राजमहल में तुम्हारा ही हुक्म चलेगा। देर न करो और चली चलो मेरे साथ" ।
"शायद सच कह रहे हैं राजकुमार, अब यह कमनीय काया जंगल में रहने लायक नहीं रह गई है। उसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अब वह बन्दरिया नहीं, एक नारी बन गई है और एक नारी को अपना तन ढकने के लिए कपडॆ चाहिए, फिर तन सजाने के लिए आभूषण चाहिए. अब वह पॆड पर नहीं रह सकती। उसे रहने को घर चाहिए और भी वह सब कुछ चाहिए, जिसकी सुखद कल्पना एक नारी करती है। यह ठीक है कि उसका मन अब भी अपने प्रिय में रम रहा है, लेकिन वह उसकी आवश्यक्ताऒं की पूर्ति नहीं कर सकता। उसे तो अब चुपचाप राजकुमार का कहा मानकर उसके साथ हो लेना चाहिए इसी में उसकी भलाई है" । यह सोचते हुए उसने राजकुमार के साथ चलने की हामी भर दी थी। घोडॆ पर सवार होने के पहले उसने अपने प्रिय को अश्रुपुरित नेत्रों से देखा और हाथ हिलाकर बिदा मांगी।
बन्दर ने देखा कि उसकी प्राणप्रिया राजकुमार के साथ जा रही है, तो उसने उन दोनों का पीछा किया। कहाँ घोडॆ की रफ़तार और कहाँ बन्दर की दुड़की चाल। भागता भी तो बेचारा कितना भागता।? दम फ़ूलने लगा था। आँखों के सामने अन्धकार नाचने लगा और अब मुँह से फ़ेस भी गिरने लगा था आखिरकार वह बेहोश होकर गिर पड़ा।
संयोग से उधर से एक महात्मा निकल रहे थे। वे त्रिकालदर्शी थे। बन्दर को देखते ही सारा माजरा समझ गए. उन्होंने अपने कमण्डल से पानी लेकर उसके मुँह पर छींटॆ मारे। बन्दर को होश आ गया। होश में आते ही बन्दर फ़बक कर रो पड़ा और उसने महात्माजी से अपना दुखड़ा कह सुनाया। महात्मा ने उसे धीरज बधांते हुए कहा कि तुम्हें अपने साथी पर भरोसा करना चाहिए था। यदि तुम भरोसा करते तो ये दिन न देखने पड़ते। खैर जो होना था, सो हो चुका। अब तुम किसी मदारी के साथ हो लो। कुछ दिन बाद तुम्हें तुम्हारी प्रियतमा मिल जाएगी।
संयोग से उधर से एक मदारी आ निकला। उसने बन्दर को पकड़ लिया। अब वह गाँव-गाँव, शहर-शहर करतबें दिखलाता घूमने लगा। एक दिन वह उस राज्य में जा पहुँचा। नियमानुसार उसे राजमहल जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करना था। रस्सी से बंधे अपने प्रेमी को देखते ही वह ख़ुशी से उछल पड़ी। उसने मदारी को पास बुलाया और मुँहमांगी क़ीमत देकर खरीद लिया। अब वह दिन भर उसके साथ बना रहता। वह जहाँ-भी जाती, उसे अपने साथ ले जाती। रसीले मीठे-मीठे फ़ल खिलाती। ख़ूब बतियाती। उसे खिला-खिला देखकर राजकुमार की आशा बलवती होने लगी थी कि साल बीतते ही वह उसके साथ शादी रचा लेगी। देखते ही देखते पूरा साल कब बीत गया किसी को पता ही नहीं चल पाया।
पूनम की वह अनोखी रात का दिन भी आ गया। चांद अपने पूरे यौवन के साथ आकाश पटल पर चमचमा रहा था। उस समय कमलिनी अपने प्रेमी बन्दर के साथ अटारी पर बैठी हुई थी। दोनों प्रेमी गले में हाथ डाले उस अद्भुत रात का आनन्द उठा रहे थे। संयोग से तोता-मैना कहीं से उड़ते हुए आए और राजमहल की अटारी पर बैठ गए. तोते ने मैना से कहा:-"कितनी सुहानी रात है। ऎसी रात में भला किसे नींद आती है। तुम कोई ऎसी बात सुनाओ, जिससे समय भी कट जाए और मनोरंजन भी हो" ... मैना बोली:-"आप सुनाऊँ या जगबीती। आप सुनाने में भेद खुलते है और जगबीती सुनाने में भेद मिलते है" तोता होशियार था बोला:-"तुम तो जगबीती ही सुनाओ" ।
मैना बोली:-"तुम्हें याद है अथवा नहीं, यह तो मैं नहीं जानती। बात पिछले साल की है। ऎसी ही चमत्कारी रात थी। उस दिन एक पेड़ की डाल पर बन्दर और बन्दरिया जाग रहे थे। मनुष्य़ तन पाने के लिए बन्दरिया पानी में कूद पड़ी और देखते ही देखते एक सुन्दर युवती में बदल गयी। बन्दर ने जब यह चमत्कार देखा तो वह भी पानी में कूद पड़ा था, लेकिन वह अद्भुत घड़ी बीत चुकी थी। वह बन्दर का बन्दर ही बना रहा। संयोग से युवती बनी बन्दरिया को उसका पुराना प्रेमी मिल तो गया है लेकिन अलग-अलग योनियों में जन्म लेने से उनका मिलन संभव नहीं हो सका। आज की रात भी अद्भुत रात है। ऎसी अनोखी रात फिर कभी नहीं आएगी। यदि कोई आधी रात के समय कमलताल में कूद पड़े, तो मनचाही योनि प्राप्त कर सकते हैं।" इतना कहकर दोनों उड़ गए.
तोता और मैना कि बातें सुनकर बन्दर बहुत खुश हुआ। उसका अपना मनोरथ शीघ्र ही पूरा होगा, यह सोचकर वह ख़ुशी के मारे वह उछल-उछलकर नाचने लगा। उसे उछलता-कूदता देख कमलिनी को बेहद आश्चर्य हो रहा था। उसने पूछा कि आख़िर क्या बात है जो इतना उछल-कूद कर रहे हो। बन्दर ने चहकते हुए कहा:-"सुना तुमने, मैना क्या कह रही थी" ।
"क्या कह रही थी मैं भी तो सुनूं?" कमलिनी ने पूछा।
´"कह रही थी कि यदि कोई इस कमलताल में कूद पड़े तो मन चाही योनि प्राप्त कर सकता है। मैं चाहता हूँ कि तुम कमलताल में कूद पड़ो और फिर से बन्दरिया बन जाओ. इस तरह हमारा फिर से मिलन हो सकता है।" बन्दर ने अति उत्साहित होते हुए कहा।
उसकी बात सुनते ही वह खिलखिलाकर हंस पड़ी और तब तक हंसती रही थी, जब तक बेदम नहीं हो गयी। बन्दर समझ नहीं पा रहा था कि उसके हंसने के पीछे क्या कारण हो सकता है। उसने अधीर होकर उसका कारण जानना चाहा।
"तुम्हारी बेवकूफ़ी भरी बातों को सुनकर केवल हंसा ही जा सकता है और मैंने वही किया है। सच कहा है किसी ने कि बन्दर बेवकूफ़ होते हैं। उनमें अकल केवल इतनी-सी होती है...इतनी सी. उसने अपनी तर्जनी के पोर पर अपना अंगूठा रखते हुए कहा था। तुम मुझे सलाह देने वाले कौन होते हो कि मैं कमलताल में जाकर कूद जाऊँ और बन्दरिया बन जाऊँ और पेट की भट्टी की आग को बुझाने के लिए तुम्हारे साथ जंगल-दर-जंगल भटकती रहूँ। आज मेरे पास क्या नहीं है। धन है, दौलत है, राजमहल है, नौकर-चाकर हैं और इससे भी बढ़कर मुझ पर अपनी जान छिड़कने वाला-वाला राजकुमार है, जो आज नहीं तो कल इस राज्य का राजा बन जाएगा और मैं महारानी। अरे बुद्धु...मानव तन बड़ी मुश्किल से मिलता है। मैं इतनी बेवकूफ़ नहीं कि तुम्हारे खातिर, फिर उसी योनि में चली जाऊँ।? ज़रा ठंडॆ दिमाक से सोचो, तुम और मैं साथ तो है, भले ही तुम बन्दर की योनि में हो, इससे क्या फ़र्क पड़ता है अतः मेरी मानो मेरे साथ बने रहो, अच्छा खाओ-पियो और ऎश करो और एक कोने में पड़े रहो।" कमलिनी ने कहा।
कमलिनी की बातें सुनकर उसका माथा चकराने लगा । उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस तरह से उसके प्यार को ठुकरा देगी। उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था, लेकिन वह जानता था कि गुस्सा करने से विवेक बोथरा हो जाता है और फिर बनता काम भी नहीं बन पाता। यह सच है कि वह अब भी उससे उतना ही प्यार करता है, जितना कि वह पहले भी करता आया था और हर हाल में उसका साथ छोड़ना नहीं चाहता था। वह तो अपने खोए हुए प्यार को पुनः प्राप्त करना चाहता है। अब उसका दिमाक काफ़ी तेजी के साथ उस ओर सोचने पर मजबूर हो गया था, जिससे वह कमलिनी को पा सकता है।
काफ़ी सोचने और विचार करने के बाद उसके दिमाक में एक योजना आयी, जिसके बल पर वह सफल हो सकता था।
वह राजकुमार के पास जा पहुँचा और निवेदन करते हुए कहने लगा:-"राजकुमारजी, मैं जानता हूँ कि आप कमलिनी से बेहद प्यार करते हैं और उससे शादी भी करना चाहते हैं। वह भी कुछ ऎसा ही चाहती है, लेकिन उसे आपकी यह सूरत अच्छी नहीं लगती, इसलिए उसने आपसे एक साल बाद विवाह करने की बात कह कर, आपके प्रस्ताव को टाल दिया था। मैं एक ऎसा उपाय जानता हूँ, जिससे आप अपना चेहरा सुन्दर बना सकते हैं।" इतना कहकर वह चुप हो गया था और इस बात का इंतज़ार करने लगा था कि उसकी बातॊं ने राजकुमार पर कितना असर डाला है।
राजकुमार को लगा कि बन्दर शायद ठीक ही कह रहा है। उसने अधीर होकर बन्दर से उस उपाय के बारे में विस्तार से जानना चाहा। बन्दर ने एक सांस में सारी योजना कह सुनाई.
दोनो मध्य रात्रि में पहाड की उस चोटी पर जा पहुँचे, जहाँ से उन्हे कमलताल में छलांग लगानी थी। अब बन्दर ने राजकुमार से कहा:-"आप अपनी आँखें बंद कर लीजिए और हाथ जोडकर प्रार्थना करते हुए उन वाक्यों को दुहराते जाएँ जैसा कि मैं कहता जाऊँ" ।
राजकुमार ने अपनी आँखें बंद कर ली और प्रार्थना कि मुद्रा में अपने हाथ जोड लिए. बन्दर ने कहना शुरु किया:-"हे प्रभु! आपने नारद मुनि को हरि का रूप दिया था, कृपया वही रूप मुझे देने की कृपा करें" ।बन्दर के कहे वाक्यों को दुहराते हुए राजकुमार ने ताल में छलांग लगा दिया। अब बन्दर की बारी थी। उसने कमलताल में कूदने से पहले कहा कि वह राजकुमार बनना चाहता है, कहकर कूद पड़ा। आश्चर्य राजकुमार बन्दर बन गया था और वह राजकुमार।
राजकुमार ने जब अपना बदला रूप देखा तो फ़ूट-फ़ूटकर रोने लगा। बन्दर से राजकुमार बने युवक ने कहा:-" अब रोने धोने से कुछ होने वाला नहीं है। आपने जो रूप मांगा था, वह आपको मिल गया है। अब केवल एक ही उपाय शेष है कि या तो आप मेरे साथ राजमहल चला चलें अथवा जंगल की ओर निकल जाएँ।