योग्यता / ओमप्रकाश क्षत्रिय
निर्माणाधीन पुल के गिरने से हुई धनजन हानि की खबर पर हायतौबा मची हुई थी। सभी इस घटना से गमगीन हो कर अपनेअपने तर्क रख रहे थे।
"घटिया निर्माण की वजह से पुल गिरा है," एक दोस्त ने दूसरे को पुल के नीचे दबे व्यक्तियों के क्षतविक्षत शव का चित्र दिखाते हुए कहा, "देख लो कितने बेकसूर लोग इस के नीचे दब कर मर गए."
"नहींनहीं। यह पुल घटिया निर्माण सामग्री की वजह से नहीं गिरा है। पुल के इस हिस्से को देखो।" दूसरे ने चित्र पर हाथ रख कर कहा, "इतने ऊंचे से गिरने के बावजूद टूटा नहीं है। यानी पुल में निर्माण सामग्री अच्छी लगी थी।"
"अरे! तो पिल्लर सही नहीं बने होंगे?" तीसरा ने तर्क दिया।
चौथा कब चुप रहने वाला था। उस ने कहा, "मुझे लगता है इस की नींव सही नहीं भरी गई होगी। इसलिए पुल गिर गया है । ऐसे दोषी लोगों को तो फांसी होना चाहिए. ताकि देश में घटिया निर्माण को रोका जा सकें।"
पांचवा यह सब बातें चुपचाप सुन रहा था। तब पहले ने उसे छेड़ते हुए कहा, "अरे भाई, यह हमारी राष्ट्रीय समस्या है। तू कुछ बोलता क्यों नहीं? हो सकता है हमारी विचारविमर्श करने से यह समस्या हल हो जाए. या इस का कोई समाधान निकल आए?"
"ऊहूं" वह नाक से हवा निकाल कर उठ खड़ा हुआ, "मेरे भाई, अंधे ड्राइवर को लाइसेंस दोगो तो दुर्घटना तो होगी ही," कहने के साथ वह कंधे ऊंचका कर चलता बना।
यह देखसुन कर चारों दोस्त एकदूसरे का मुंह देखने लगे। ' आखिर वह क्या बोल गया?