रंगमंच में संजना कपूर के एकल प्रयास / जयप्रकाश चौकसे

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रंगमंच में संजना कपूर के एकल प्रयास
प्रकाशन तिथि :21 अक्तूबर 2015


दादा साहब फालके पुरस्कार विजेता शशि कपूर की बेटी संजना कपूर रंगमंच को समर्पित हैं। उन्होंने कमसिन उम्र में अपनी मां जैनीफर और पिता शशि कपूर को पृथ्वी थिएटर का आकल्पन और निर्माण करते देखा है और कोई दो दशक तक उसने पृथ्वी थिएटर का संचालन किया है तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय नाट्य सम्मेलन आयोजित किए हैं। विगत कुछ वर्षों से उनके भाई कुणाल कपूर इसका संचालन कर रहे हैं। संजना ने बच्चों को रंगमंच विधा से परिचय कराने हेतु ग्रीष्मकाल में संक्षिप्त कोर्स का भी संचालन किया है। वे अपने दादा पृथ्वीराज कपूर और नाना ज्यॉफ्रे केंडल के नाटक के प्रति अगाध प्रेम और समर्पण को जानती हैं। विगत कुछ समय से वे दिल्ली में रह रही हैं और पूरे भारत में रंगमंच संस्कृति का प्रचार करती हैं।

कुछ समय पूर्व उन्होंने पंजाब के एक छोटे शहर में नाट्यालय की किफायती संचालन विधि को देखा। वे लगातार रंगमंच की परम्परा को जीवित रखने के उद्‌देश्य से 'द वीक' नामक पत्रिका में पाक्षिक कॉलम लिखती हैं। वे भारत की उदात्त संस्कृति की विविध नाट्य परंपराओं से परिचित हैं और भारतीय रंगमंच की विविधता और उसकी ऊर्जा का भी उन्हें ज्ञान है। वे जानती हैं कि आज भारत में रंगमंच को लेकर खिचड़ीनुमा रचनाएं हैं और बिना किसी ठोस योजना के कुछ धन अत्यंत गैर-व्यवस्थित ढंग से रंगमंच के नाम पर बांटा जाता है। अजीबोगरीब नाट्य समारोह आयोजन के नाम पर तमाशा खड़ा किया जाता है, क्योंकि अखिल भारतीय रंगमंच विज़न का अभाव है। उनका खयाल है कि सरकार को इस स्वयं ओढ़ी हुई छवि से मुक्त होना चाहिए कि केवल सरकारी अनुदान से रंगमंच की रक्षा की जा सकती है। संस्कृति क्षेत्र में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सरकार दर्शक की समझदारी पर यकीन नहीं करती, जबकि रंगमंच कलाकार और दर्शक के बीच सीधे संवाद का मंच है। हर प्रस्तुति के दर्शक पर प्रभाव का कोई अध्ययन नहीं किया गया है और सच तो यह है कि सिनेमा दर्शक की प्रतिक्रिया का भी विधिवत अध्ययन नहीं हुआ है। रंगमंच की दर्शक संख्या को बढ़ाने की आवश्यकता है और रंगमंच पर अभिव्यक्ति की संपूर्ण स्वतंत्रता की रक्षा की आवश्यकता है। किसी किस्म की हुल्लड़बाजी इस स्वतंत्रता में बाधक नहीं हो- यही सरकार का असल काम है। दर्शक संख्या बढ़ाने का काम गैर-सरकारी संस्थाओं का है। आज भारत में साहित्य सम्मेलनों में फिल्म सितारों को आमंत्रित करने की प्रथा है, क्योंकि यह धन लगाने वाले प्रायोजक की मांग होती है।

संजना लिखती हैं, 'राइटर्स ब्लॉक' नामक संस्था नाटक लेखन की शिक्षा देती हैं। 'अधिशक्ति' नामक संस्था कलाकारों को प्रशिक्षित करती है। 'स्मार्ट' नामक संस्था का पूरा नाम ही उसका परिचय है- स्ट्रैटेजिक मैनेजमेंट इन द आर्ट ऑफ थिएटर। रंगमंच गतिविधियों के संचालन के लिए धन अभिनव तरीके से एकत्रित करना होगा ताकि धन देने वाला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बांध नहीं सके। नाटक अपने दर्शकों द्वारा खरीदे टिकट के दम पर चल सके तो उसका विकास सही दिशा में होगा। संजना लिखती हैं कि नए ऑडिटोरियम के निर्माण में बहुत धन लगता है, अत: उन किफायती जगहों की तलाश करनी चाहिए, जहां नाटक खेले जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि मुुंबई में प्रयोगवादी नाटक स्कूल और कॉलेज के हॉल में इतवार को लंबे समय से खेले जा रहे हैं और ये नाट्यधर्मी उन्हीं स्थानों पर सुबह रिहर्सल करते हैं। इस सिलेसिले में यह बात बताना आवश्यक है कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री ने अनेक विभागों को अलग-अलग भवनों से हटाकर एक भवन में लाने का आदेश दिया है ताकि रिक्त हुए भवनों में छोटे सिनेमाघरों और नाटक तथा नृत्य के लिए रंगमंच संस्थाओं को स्थापित किया जा सके।

संजना कपूर ने बिहार का दौरा भी किया और वहां नीतीश द्वारा बनाए संग्रहालय की प्रशंसा की, जिसकी संरचना में खाली स्थान कविता गाते से लगते हैं। अब 8 नवंबर को ही ज्ञात होगा कि बिहार में कविता जारी रहेगी या खोखले नारे गूंजेंगे। दरअसल, विकास का अर्थ केवल चौड़ी सड़कें विराट हाईवे या गगनचूंबी इमारतों की तथाकथित स्मार्ट सिटी नहीं है वरन् भौतिक विकास का अविभाज्य हिस्सा है साहित्य, कला एवं रंगमंच का विकास। संस्कृति को उसके उदात्त अर्थ में ग्रहण करना चाहिए। अमीर नागरिक नहं खुशहाल नागरिक गढ़ना है।