रंग शहूदी: हृदय की अन्तर्यात्रा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्रकृति में हम उजली चाँदनी बिखेरते चाँद को देखते हैं, तो हृदय तरगित होने लगता है। हो भी क्यों न, जब सागर का जल पूर्ण चन्द्रमा की रात्रि में ज्वार के रूप में चाँद को छूने का प्रयास करता है, तो मन क्यों पीछे रहे। पुष्पित उपवन को देखकर हृदय स्फुरित होने लगता है। यह बाह्य उपादान हमें तभी आह्लाद से भरते हैं, जब हमारे हृदय में भी अनुकूल भाव जाग्रत हों। यदि हमारा मन किसी दुख से व्यथित है, हमारा हृदय उदासी या अवसाद में घिरा है, तो हमें जड़-चेतन सभी व्यथित करेंगे, दुखी ही नज़र आएँगे। यदि हम इन दुखों से ऊपर उठकर अपनी उदात्त चेतना को एकाग्र करके अनन्त सत्ता से जोड़ लेंगे, तो हमें एक अभूतपूर्व आनन्द की अनुभूति होगी। यह तभी सम्भव है, जब हम सांसारिक विकारों से ऊपर उठकर चिन्तन, मनन और अनुभव को छलने वाले आकर्षणों से परे ले जाएँ।
डॉ. हरदीप कौर सन्धु से हिन्दी हाइकु के माध्यम से विश्वभर के सृजनधर्मियों को जोड़ा और 115 देशों तक पहुँच बनाकर 4, 67013 हिट्स की पहुँच बनाई, यह काम हिन्दी का कोई विश्वविद्यालय नहीं कर सका। रंग शहूदी में वही खोज है, वही अनन्त सत्ता की खोज में मन की उड़ान और हृदय की अन्तर्यात्रा है। ऐसे यात्रा वही कर सकता है, जो समय से परे, धरालोक से परे झाँकने की क्षमता रखता हो; जिसका हृदय सांसारिक लोभ-मोह से परे हो। पढ़ते हुए रंग शहूदी की गहराई में मैं गोता लगाता गया तो कबीर, सूर तुलसी से लेकर असम के शंकर देव तक मेरे सामने आ खड़े हुए। कवयित्री सन्धु को शब्द-सिद्धि प्राप्त है। वह आसपास के शब्दों में प्राण फूँककर उनको जीवन्त कर देती हैं। प्राण-प्रतिष्ठा होने पर इनके शब्द श्लोक का रूप धारण कर लेते हैं। जल और उसकी लहर की तरह, वाणी और अर्थ की तरह।
आत्मा और अनन्त सत्ता की तरह इनकी संवेदना भावों की गहन धारा में उतरती है, तो व्यापक रूप में प्रकट होती है। चुप्पी में संवाद, भीड़ में भी अकेलापन महसूस कर लेना, इनके व्यक्तित्व का गुण है। यह चुप्पी सब कहीं गहन अर्थ का संधान (खोज) कर लेती है। चाहे साहित्य हो, चाहे शिक्षण, हरदीप को लीक से हटकर चुनौती भरे काम करने की आदत है। यही आदत इनकी आत्मा की खुराक है, इनका जीवन है। यह आदत इनको अन्तर्मन में गोता लगाने के लिए बाध्य करती है। वनस्पति विज्ञान में पी-एच डी करने वाली, मानव मन की अनन्त गहराइयों का गोताखोर बनकर 'रंग शहूदी' में काया-प्रवेश करती है, तो कुछ और ही दृष्टिगोचर होती है-एक अलौकिक शक्ति और अर्थसत्ता से सज्जित, कवयित्री से भी आगे बढ़कर भाव-साधिका।
अनुप्रास अलंकार से सजी द्विपदी में एक तरफ़ भावों की उड़ान है, तो दूसरी ओर भाषिक क्षमता की ऊँचाई भी है। सभी ऊर्ध्वगति से गगन को स्पर्श करती हुई। मन की पावनता और हृदय की निर्मलता के बिना यह सम्भव नहीं। 'अ' से अश्क की ही व्याख्या देखिए कि किस प्रकार हमारे आँसू हामारे भावों के सजग प्रवक्ता बन जाते हैं। अत्यधिक प्रसन्नता तो आँसू, असह्य पीड़ा है, तो आँसू। ये आँसू हमारे हृदय की जिह्वा है, हमारे मानव होने का सबसे बड़ा प्रमाण हैं-
अवल्ले आबशार अशक अबोले अलफाज़ अशक
अतुल्ले अहसास अशक अमुल्ले अनुवाद अशक
इष्ट से सच्चा प्यार है, तो मिलन होना स्वाभाविक है। सन्धु जी ने कहा है-
इशट इख़लास इशट इलहाक
इशट इलहाम इशट इख़लाक
समय का प्रवाह निरन्तर बना रहता है। वह कभी रुकता नहीं। विस्तार और निरन्तरता ही इसका जीवन है-
वकत वनज वकत वणजारा
वकत वहन वकत विसतारा
अखण्ड आनन्द पावन मन की ही सृष्टि है, जिसकी अमृत धारा अखण्ड रूप से प्रवाहित होती रहती है। इस द्विपदी को पढ़कर जैसे कबीर सामने आ खड़े हुए हों, यह कहतते हुए–
आकासे मुखि औंधा कुआँ, पाताले पनिहारी।
ताका पाणी को हंसा पीवै, बिरला आदि विचारि।
सन्धु जी ने कहा-
चन्न चाननी झरै अखंड
शीतल मन अंमृत कुंड
जीवन की तृष्णा हमको अटकाती भी है और भटकाती भी है। एक बूँद मिल जाए उस अनन्त प्रेम की तृषा (प्यास) मिटे। बूँद की सद्गति तो सागर में मिलकर ही होती है। कबीर भी तो यही कहते हैं-
हेरत हेरत हे सखी, रहा कबीर हेराय।
बूँद समानी समुंदर में, सो कत हेरी जाय।
यही बात और कम शब्दों में हरदीप सन्धु ने कही है-
जी करदा इक्क बून्द होइ हाऊँ
अंतरि त्रिखा अति तेह बुझाऊँ
हरदीप कौर सन्धु के इस काव्य पर अलग से एक पुस्तक भी लिखूँ, तो कम होगा। अपनी बात का समाहार (समेटते हुए) करते हुए यही कहना चाहूँगा कि रंग शहूदी आपके कवित्व की वह ऊँचाई है, जिसे स्पर्श कर पाना किसी साधक का ही काम है।