रईस वर्ग और सिंघानिया परिवार का गृहयुद्ध / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :11 अगस्त 2017
डॉ. विजयपत सिंघानिया कुछ फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं जिनमें से एक खाकसार की लिखी हुई फिल्म थी। आज डॉ. विजयपथ सिंघानिया और उनके पुत्र गौतम के बीच युद्ध जारी है और डॉ. विजयपत को रैमंड कम्पनी के राज्य से निष्कासित कर दिया गतया है। कानपुर का यह परिवार लगभग एक सदी से सम्पन्न है। वे खानदानी रईस लोग हैं और विगत कुछ वर्षों में हमारी भ्रष्ट व्यवस्था का लाभ उठाकर धनवान नहीं हुए हैं। खानदानी रईसों और हाल ही में हुए रईसों के मिजाज, शौक और व्यवहार में भारी अंतर होता है। खानदानी रईस कुछ हद तक सामंतवादी लोगों की तरह शौकीन होते हैं और कलावंत लोगों की भरपूर सहायता भी करते हैं। दरबारों ने कला का विकास भी किया। इसका यह अर्थ नहीं कि अवाम संसार से प्रतिभावान लोग नहीं निकलते। अगर तानसेन के कद्रदान सम्राट थे तो अवाम से बैजू बावरा भी आया है। राग दरबारी के मुकाबले भैरवी भी खूब पल्लवित हुई है।
सिंघानिया परिवार का एक सदस्य बहुत अय्याश व्यक्ति था परन्तु उनके पारिवारिक ज्योतिष ने कुंडली का अध्ययन करके यह कहा था कि यह व्यक्ति अय्याशी में जितनी रकम ज़ाया करेगा, उससे दस गुना अधिक आय परिवार को होगी अर्थात धन पाने के लिए उसे अय्याशी से नहीं रोका जाये। कालांतर में उस अय्याश की खरीदी हुई कलाकृतियों का मूल्यांकन किया गया तो वह करोड़ों रुपये की सिद्ध हुईं। आज भी मुंबई के वारडन रोड पर स्थित उनके बहुमंजिला में दो मालों में परिवार का संग्रहालय है। ज्योतिश शास्त्र एक रहस्यमय विधा है।
एक कथा है कि इस्लाम के अनुयायी ग्रेबिल की भेंट एक ज्योतिष से हुई। उस समय ग्रेबिल एक खानाबदोश से वस्त्र पहने थे और उनके संत होने की बात उन्होंने छुपाए रखी थी। ज्योतिष ने उन्हें कुछ बातें बताते हुए कहा कि इसी स्थान पर ग्रेबिल मौजूद हैं। ग्रेबिल ने कहा कि इस निर्जन स्थान पर तो केवल वे दोनों ही मौजूद हैं और तीसरा कोई नहीं है तो ज्योतिष ने कहा कि वह स्वयं ग्रेबिल नहीं है, अत: उससे मुखातिब व्यक्ति ही ग्रेबिल है, भले ही उसने अपने आप को एक आम आदमी की तरह प्रस्तुत किया हो। इस घटना के बाद भी इस्लाम के मानने वालों को ज्योतिष से दूर रहने का प्रावधान किया गया क्योंकि ज्योतिष क्षेत्र में असली ज्ञानी कम होते हैं और उनकी तादाद बहुत होगी जो इसके सहारे अंधविश्वास व कुरीतियों को पोषित करेंगे। आज डोनाल्ड ट्रम्प की तरह अनेक नेता इस्लाम के मानने वालों को मुजरिम के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं और उन्हें एक कोने में धकेल दिया गया है। इस्लाम की तलवार के हव्वे को खूब बढ़ा दिया गया है और उनके ज्ञान को नजरअंदाज किया जा रहा है। इतिहास गवाह है कि किसी भी वर्ग या कौम को इस तरह कटघरे में खड़ा करने से वह वर्ग मजबूत होता है।
बहरहाल खानदानी रईस डॉ. विजयपत सिंघानिया आज कष्ट में हैं और उन्हें तन्हा छोड़ दिया गया है। उनके गुणों को भुलाया जा रहा है। यह भी विस्मृत किया जा रहा है कि उनके शासनकाल में रैमंड कंपनी ने बहुत प्रगति की है और मौजूदा समृद्धि का एक बड़ा हिस्सा उनके नेतृत्व में अर्जित किया गया है। उनके वूलन कम्बल पूरे विश्व में अपनी गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने थाना क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षा संस्थान का निर्माण किया था और गरीबों के इलाज के लिए एक अस्पताल भी बनाया था। उन्होंने हवाई उड़ान के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। एक दौर में उनके पास अनेक किस्म के हवाई जहाज उड़ाने के लाइसेन्स थे और पायलट प्रशिक्षण क्षेत्र में वे लेक्चर भी देते रहे हैं। एक गुब्बारे को रिकॉर्ड ऊंचाई तक ले जाने का उनका कीर्तिमान आज तक नहीं टूटा है। वे स्वादिष्ट भोजन पकाने में भी माहिर हैं।
गौतम सिंघानिया को तेज कार चलाने का शौक है और कई कीमती कारें उन्होंने खरीदी हैं। रफ्तार गौतम सिंघानिया का जुनून है। तेज गति से चलने वाली कार में सवार व्यक्ति को वृक्ष भागते से दिखते हैं जैसे अवाम चलती रेल में महसूस करता है परन्तु सत्य तो यह है कि वृक्ष खड़े रहते हैं। उनका अस्तित्व उनकी स्थिरता में है और मनुष्य की गति उसकी गति में जाते ही दुर्घटनाओं को जन्म दे सकती है।
यह भी गौरतलब है कि युवा वर्ग रेडीमेड वस्त्र का शौकीन है जिसके कारण रैमंड व्यवसाय को थोड़ी सी हानि पहुंची है परन्तु आज भी ऊन के कपड़ों की गुणवत्ता स्थापित सत्य है। पिता-पुत्रसंघर्ष पुरातन है। घर की भीतरी कलह ने तो कुरुक्षेत्र में घमासान युद्ध रचा था। उपनिषद में एक श्लोक का अर्थ है कि पिता-पुत्र रिश्ता जैसे तीर और कमान का रिश्ता है। पुत्र रूपी तीर प्रत्यंचा के तनाव से ही निशाने पर जा लगता है परन्तु तीर प्रत्यंचा से शत्रुता करे या कमान का ही तिरस्कार करे तो बात नहीं बनती। हम आशा कर सकते हैं कि अपने नाम गौतम से प्रेरित होकर गौतम सिंघानिया शांति का प्रयास करेंगे और विजयपत भी महसूस करें कि जीवन जय पराजय से अधिक मूल्यवान है। इस प्रकरण का तड़का यह है कि विजयपथ अपनी जीनव-कथा शोभा डे से लिखवा रहे हैं जो सत्य से अधिक सनसनी पर यकीन करती हैं। शोभा डे का लेखन तो श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर के नन्हे बालक द्वारा महल पर फेंके पत्थर की तरह होता है। डॉ. विजयपत और शोभा डे किताब के रूप में आणविक बम का निर्माण कर सकते हैं। यह एक फिल्म की पटकथा भी बन सकता है।