रघुआ माय के तीरथ / रंजन

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोनों टोला में खबर फैली गेलै... अबकी बेटा के बहू-भोज करी के रघुआ माय तीरथ पर जैतै। जतना मुँह ओतने बात। बिजय-माय चाची आरो शंकरबा माय, हाथ जोड़ी करी के पराथना करलकै, "अबकी रघुआ-माय के हंसा पूरा करी दहौ भगवान...आबे नै कलपाभौ प्रभु।"

आरो लछमिनियां की कहतियै...ओकरो आँख भरी गेलै। छोटीये छेलै त की, एक-एक बात आजो याद छै ओकरा। रघुआ बीमार पड़ी के जे खटिया पकड़लकै त उठै के नाम नै। रघुआ-माय आरो रघुआ-बाप... दोनों कानै छेलै रात-रात भर। बैद्य-हकीम आरो ओझा-गुनी, सब्भे हाथ उठाय देलकै। पंडित जी महा-मृत्युंजय जापो करलकै...तभियो रघुआ ठीक नै होलै। सूखी के काँटो होय गेलै। ऐन्हों कौन पीर के मजार-थान बचलै, जेकरा पास माथा नै पटकलकै, रघुआ-माय नें? लेकिन एक्को पैसा फायदा नै।

हारी-पारी आरो थकी के, गोसांय-पितर के मनौती माँगलकै। हरिद्वार-जातरा गछलकै। आरो देखौ भगवानों के लीला कि होकरो बादे रघुआ ऐन्हो ठीक होलै कि लागबै नै करै कि कहियो बीमारो छेलै।

मतर आबे तीरथ पर जाय केना? कैन्हें कि...रघुआ के इलाजो में एक्को पैसा की बचलै? जे तीरथ पर जैतियै! दोनों गोटा नें, अपनो पेट काटी-काटी के पैसा संधारना शुरू करी देलकै, मतर कि रघुआ के एक्को साँझ भुक्खा नै राखलकै। आबे देखौ बिधना के बिधान...याद करी के लछमिनिया के आजो, करेजा फाटै छै।

दू-चार महिना में कुछू पैसा संघारलकै आरो तीरथ खातिर तैय्यार होय गैलै रघुआ-माय। दोनों पति-पत्नी जातरा के पहिनें, गेलै गंगा नहाय ल।

दोनों टोला में कोहराम मची गेलै...रघुआ बाप डूबी गेलै गंगा में।

लछमिनियां काठ... देवता-पितर ई की करलकै? ऐन्हो भी होय छै भला? लछमिनियां जानै छै-रघुआ बाप, कानी-कानी के काली थान में कहै छलै, "हमरा बेटा के माफ करी दे माय। होकरा सें भूल होय गेलै, तोहरो थानों में... हमरा उठाय ले माय, रघुआ के बचाय दे।"

लछमिनियां नै जानै छेलै कि ऐन्हो भी होय छै। जानतं रहतियै, त रघुआ बाप के रोकी देतियै आरो चल्लो जैतियै खुद्दे।

यहो कोय जिनगी छै? सोसरारी में बसलो एक्के महिना गुजरलै कि सांय मरी गेलै आरो सास धक्का मारी के निकाली देलकै। सास के बोली अभी तलुक करेजो में गूंजै छै, "कुलछनी...ऐत संग खाय गेलै भतार के ...आरो रहभैं त भगवाने जानै, केकरा-केकरा खाय जैभैं।"

आबे त अधबैसू होय गेलै लछमिनिया। की नै जानै छै? मनौती पूरा नै करतै, त के बचैतै रघुआ-माय के? गोसांय-पीतर के कोप से कोय बचै छै भला? लेकिन की करतियै बेचारी रघुआ माय? कानी कपसी के रही गेलै। तीरथो वास्तं संघारलो पैसा खर्च होय गेलै, रघुआ बाप के सराध में।

दोनों कोर जोड़ी के पराथना करलकै बेचारी...छमा माँगलकै आरो किरियो खैलकै, "भीखो मांगै ल पड़तै त मांगी लेबै लेकिन कबूलती ज़रूर पूरा करबै भगवान।"

दोनों टोला भरी में, केकरो चुल्हा पर कौन तरकारी बनलै, लछमिनियां के सब पता रहै छै। घुमले फिरै छै अंगना-अंगना। रघुआ-माय के पास की आबै छै, की खरच होय छै, लछमिनियां सें की छिपलो रहै छै? परानी त छै दुइये ठो, बेटा आरो माय। खरचा की खाली बुताथै में होय छै? अनाजो सें ज़्यादा खरच, रघुआ के पढ़ै-लिखै में। ऐन्हो कौन बरस नै गुजरलै कि बुढ़िया नै सफरलै। कलपी-कलपी के रही गेलै बेचारी, लेकिन तीरथ पर जाबे नैं पारलै।

लेकिन आबे लछमिनियां के पक्का विश्वास छै कि रघुआ के बहू-भात करी के रघुआ-माय तीरथ जैतै ज़रूर। अरे, बेटा होय गैलै कमासुत। बहुओ आबिये गेलै। रघुआ-माय जे चिन्ता करै छेलै कि तीरथ पर गेला के बाद घरो में गोसांय-पितर के सेवा के करतै, से त आबे खतम। रघुआ-बहू अइय्ये गेलै। करतै सेवा गोसांय-पितर के. अबकी जों बुढ़िया नै गेलै, त हुकरी-हुकरी करेजा में हंसा लै मरी जैतै।

दोनों टोला भरी में घूमी-घूमी के रघुआ-माय, आँगन-आँगन आपने सें न्यौता दैल गेलै। रघुआ-माय के गोड़ आज जमीनो पर छै कहाँ-हवा में उड़ी रहलो छै। न्यौता दै छै आरो कहबो करै छै, "अबकी तीरथ पर निकली जैबै। रघुआ सब इनतजाम करी देलको छै। गोसांय-पितर के सम्हालतै रघुआ-बहू।"

विजय-माय चाची के अँगना में शंकरवा-माय आरू विजय-माय बैठी के यही किस्सा बतियाय छेलै कि रघुआ-माय हाथो में विजै के लोटा लै-के पहुँची गेलै।

"आबो...आबो...रघुआ माय। की कहियौं, सौ बरस के ओरदा छेकौं तोरो।"

"कैन्हें? की बात छै"

"बात की रहतै? टोला के सब अँगना में आय तोहरे गप्प चलै छौं। भगवान करे, ऐन्हों देवता रं बेटा, टोला भरी के कोखी में आबे। सुनै छी...दू हजार टका लानी के धरी देलखौं तोरो हाथो में।"

" हौं बहिन...आबे हमरो आतमा अघाय गैलै। आजे भिनसरिया धरी देलकै दू हजार टका...आरो कहलकै, जो माय अपनो तीरथ के मनौती पूरा

कर...तोहें सिनी त जानबे करै छौ...रोजे हमरो कलेजा कलपै छेलै। रात-रात भरी नींन नै आबै बिजय माय...की कहतै गोसांय-पितर...सोचै छेलियै मनौती पूरा करलहे बगैर चल्लौ जैबै दुनियां सें, त के करतियै छमा? "

"छी छी कैन्हो बात कहै छौ, रघुआ-माय? गोसांय-पितर की जानै नै छै? सबके मरम जानै छै... तोरा कोय दोस नै लिखथौं। आबे हँसतं-हँसतं जाय के तीरथ-जातरा करी आबो आरो हमरहौ तरफों सें हरिद्वार में प्रसाद चढ़ाय दिहौ। जाय बखती पैसा दै देभौं।"

रघुआ माय नें अपनो हाथ ऊपर उठाय के कहलकै,

"ऐन्हो बात नै कहौ, टोला भरी के नामो से हम्में प्रसाद चढ़ाय देबै आरो सब्भे अंगना भरी में प्रसादी बाँटबै...आबे की दुख? अच्छा चलै छियौं, ऊ टोला में भी निमनतरन बाँटना छै। तोहें सिनी सांझ के पहिनें आबी जा, त बड्डी मेहरबानी। जानबे करै छौ, अकेला हम्मी छियै।"

"तों चिन्ता नै करो रघुआ-माय। दोनों टोला तोरो जग-परोजन सम्हारी देथौं। फिकिर नै करो, हमरा सिनी साँझ के पहिने आबी जैभौं।"

रघुआ माय के गेला के बादो ओकरे बात हुअ लगलै। शंकरबा-माय कहलकै, "केकरो करम की हमेशा फूटले रहै छै? भगवानो के दरबार में देर होय छै, अंधेर नै। की रकम पेट काटी-काटी के रघुआ के पढ़ैलकै। कत्त दुख-तकलीफ काटलकै बेचारीं...आबे देखो बिजय-माय...कैन्हो दिन पलटी गैलै।"

"जबे कोखी सें सुपुत्तर आबै छै...यही होय छै। हम्में त एक्के बात कहभौं शंकर-माय...भगवान जेकरो कोख नै भरै छै-ओकरा एक्के बार के दुख होय छै...आरो जेकरो कोखी सें कुपुत्तर जनमलो होकरा रोजै के दुख।"

" ठीक्के कहलौ विजय-माय...बड़ी भागवन्ती छै रघुआ-माय। दुसरो

रहतियै, त अखनी बहू के निहोरा करतियै कि माय के तीरथ सोचतियै? बताबो त। ' "तखनिये अँगना में लछमिनियां घुसलै," गोड़े लागै छिहौं चाची l"

"तों जे टोला भरी में हिल्ले-फिरैं छैं गे लछमिनियां, से की बात छै?"

"भर दिन त रघुआ माय, चाची के घरो में छेलिये, आरो तों बोलै छौ-हम्में टोला भरी में हिल्ले फिरै छी।"

"अच्छा आबी-जो, बैठ... की हाल छै वहाँ?"

"चार-चार हलबाय लगलो छै...पूड़ी-बुनिया आरो चार तरकारी... टोला भर अघाय जैतै खाय-खाय के, लेकिन अनाज नै घटतै।"

"बहू कैन्हो छै रघुआ के?"

"की पूछै छौ चाची, जाय के देखी लौ...दोनों टोला में ऐन्हो सुन्नर बहू नै होतै, टुकड़ा छेकै चाँद के."

"सुभाव कैन्हो छै गे लछमिनियां? तोरा सें गप्प तो होबे करले होतौ।"

"से चाची अभी हम्में नै कहभौं...शहरो के लड़की छेकै... बी0 ए0 पास...हमरा सें कोय गप्प नै। रघुआ ऐन्हो सटलो छै कि केकरो गप्पो करै के मौका नै। दू-चार दिनो में पता चलिये जैतै...कैन्हों बात-सुभाव छै।"

शंकर-माय टोकी देलकै, "रघुआ सैंती के रखतै त की करतै शहरो के लड़की...हाँ, जे ढील देलकै त नाचबे करती माथा पर।"

"ठीक्के कहलौ शंकर माय" बिजय माय कहलकै "लेकिन रघुआ ऐन्हौं नै छै...बहू के सैंती के राखतै।"

"की गे लछमिनियां, की सोचे लगल्हैं?"

शंकर माय टोकलकै त लछमिनियां जबाब नै देलकै।

"कुछू बोलबो करभैं कि चुप्पी-माय बनभैं?"

"हम्में की कहियौं चाची। हम्में सोचै छी...रघुआ बहू रहतै कहाँ? रघुआं नौकरी करै छै शहरो में त कनियांय की रहतै गाँवो में?"

"ठीके कहलैं गे लछमिनियां...लेकिन देखलो जैतै, रघुआ माय त अभी चल्ली जैतै तीरथ में, फिरू देखैं...रघुआ की करै छै? होना ई त स्वभाविके छेकै कि दोनों गोटा रहतै त साथे।"

शंकर माय के बात सुनी के बिजयो-माय सर हिलाय के जैतं-जैतं कहलकै, "ठीक्के कहल्हौ...अच्छा आबे हम्में चाहलिहौं, संझा समय मिलभौं रघुआ माय कन।"

"हम्मूं चलै छियौं चाची, आज काम के पहाड़ छै माथा पर।"

सांझ के पहिनें रघुआ माय के आँगन में दोनों टोला भरी के जनानी-मरद आरो लड़कन भरना शुरू होय गेलै। जे देखलकै बहू के, ओकरे मुँह खुली के रही गेलै। टोला भरी में हेनो बहू केकरो अंगना में छै? किसमत छै रघुआ के, शहरो में बाबू के नौकरी आरो दुर्गा माय नाँखी दिप-दिप कनियांन, जे देखै छै, यही कहै छै।

आरो लछमिनियां! आज त मलकायन बनली बैठली छै चैकी पर। चैक-चुमौना वहीं लै के बही में लिखी रहली छै। उपरी टोला के मौगी-सिनी नें जबे फुसफुस करे लागलै कि ई बिधवा के केना बैठाय देलकै, त बिजय-माय आरू शंकरवा-माय नें डांटिये त देलकै।

"बेटा माय भी त बिधवे छेकै...तोर्हो-सिनी के दिमाग में गोबर भरलो छौं...बहू के देखी आँख चैंधियाय गेल्हौं तोरा-सिनी के, आबे बोलबा की...खाली फाल्तू के मीन-मेख निकालै छौ, जा, जाय करी के बैठी जा पंगत में, अभी जनानिये के पंगत शुरू होतै?" ...चुप्पे होय गेलै उपरी टोला के मौगी सिनी।

"जुग-जुग जीयैं रे रघुआ...तों त बेटा माय के तारी देल्हैं" टोला के बुजुर्ग चैधरी बाबा नें ऐत-संग रघुआ के आशीर्वाद देलकै, "तोरो माय जों तीरथ नै करतियौ बेटा, त चाहे गया जी जाय-के पिण्ड देतिहैं, ओकरो आत्मा शान्त नै होतियौ। सुनै छियौ...दू हजार टका दै देल्हैं माय के. हमरो आशीर्वाद छेकौ बेटा...माय-बाप के सेवा सें बढी के ई संसार में आरो कोय पुण्य नै छैकै...चल अबे बहू के मुँह देखबौ पहिलें।"

लछमिनियां नें हँसी के जेन्हैं बहू के घुंगट उठैलकै, चैधरी बाबा खुश होय गैलै आरो पूरे एक सौ एक टका दै के आशीर्वाद देतं कहलकै, -

"सुनें नुनू...हम्में त भोज खैबौं नै...तों त जानबे करै छैं, कैन्हो पेट छै हमरो। खाय ले तरसै छियै, लेकिन डागटर बाबू कहै छै-' खाली सिझलो तरकारी आरो पानी-नाँखी दाल खाबे पारै छौ। जबे खाय के समय छेलै...तबे खाय के जुगाने नै छेलै, आय भगवानें सब देलकै त खाभै नै पारौं..."

कहतं-कहते हुनको आँख में पानी छलकी गेलै। टोला भरी के सबसे मातवर छै चैधरी बाबा, लेकिन हिनको किस्मत में नै घी छै, नै मसाला। आँखी के पानी पोछी के चैधरी बाबा चल्लो गेलै, त टोला भरी के लड़की सिनी रघुआ बहू के पास जमी गेलै?

"ऐ रग्घू भैय्या, आबे यहाँ के अड्डा छोड़ी दहौ। ज़रा हमरौ सिनी के त बतियावे द् भाभी सें।"

अशिया के बातो पर बाकी लड़की सिनी नें ठहाका मारलकै, त रग्घू लजाय के हटी गेलै। आबे टोला भरी के लड़की के जमात, मधुमक्खी नाँखी रग्घू बहू जकां छत्ता पर चिपकी गैले। हँसी...मजाक...ठिठोली...होय गेलै शुरू।


ओसारा पर रघुआ माय टोला भरी के जनानी संग हँसी-हँसी के बतियाय रहलो छै, "आबे तीरथ में कौन बिध्न। रघुआ माय नें सब पता करी के राखले छै। आबे जमाना बदली गेलै। हरिद्वार जाय लगी, दिल्ली जायके कोय दरकार नै। पटना में रेलगाड़ी में बैठी जा आरो सीधे हरिद्वार।"

"आरो जानै छौ...बदरीनाथ तक मोटर गाड़ी जाय छै। कोय हर-हर, कच-कच नै। हरिद्वार में बैठी जा मोटरो में, सीधा बदरीनाथ में उतारी देथौं।" दुसरो जनानी नें वै-में बात जोड़ी देलकी।

टोला के मौगी-सिनी ताज्जुब सें सुनलकै...रघुआ माय की कहै छै,

"हमरो सास जबे गेलो छेलै, त हरिद्वार सें पैदले गेलै, तीन महीना के तीरथ छेलै। सुनै छियै, एक जमाना में जे बदरीनाथ तीरथ वास्त निकलै छेलै, ओकरो वापस लौटै के कोय गारंटिये नै।"

ऐसने गप्पो में रघुआ माय रमली छेलै कि ओकरा रघुआ बाप के याद

आबी गेलै आरो अचानके ऊ उदास होय गेलै। जग-परोजन में ज्यादे याद सताबै छै-सब्भै के. आय अगर रघुआ बाप रहतियै त कत्ते खुश होतियै।

हँसतं-हँसतं अचानके जे रघुआ माय गुमसुम होय गेलै त एक मौगी नें टोकिये त देलकै, "की भेलौं रघुआ माय?"

रघुआ माय जबे जवाब नै देलकै त दोसरो मौगी नें कहलकै, "ज़रूर रघुआ बाबू के याद आबी गेलो होतै।"

पहली मौगी कहे लागलै, " कि करभौ रघुआ माय, भगवानो के लीला पर

केकरो जोर चलै छै बहिन...हुनको ओतने ओरदा छेलै त तों की करभौ...लेकिन हुनी जहाँ भी छै सब देखी रहलो छथिन, केना कष्ट भोगी-भोगी केे रघुआ के

पाल्ला, जवान करला...पढै़ला-लिखैला आरो बाबू बनाय देला। "

रघुआ माय के आबे बर्दाश्त नै होलै आत फूटी-फूटी के काने लागलै। हल्ला मची गेलै कि रघुआ माय कानी रहलो छै?

अरे की होय गेलै? केकरौ पता त छेलै नै कि असली बात की छेकै। रघुओ के कोय जाय के कही देलकै कि तोरो माय कानी रहलो छौं त रघुआ दौड़ी के माय के पास आबी गेलै।

"की होलौ माय...कैन्हें कानी रहलो छैं?" पुछतं-पुछतं माय के कंधा पकड़ी के रघुआ आपनो बदन सें सटाय लेलकै, त माय के बोल फुटलै, "कुच्छू नै बेटा ...तोरो बाबू के याद आबी गेलौ... तोहें जो। पंगत देख बेटा, सब बूढ़ा-बुजुर्ग के गोड़ छूबी के आशीश ले आरो भोज-भात देख। बेटा, हमरो फिकिर मत कर।"

"की कहै छैं माय, तोरो फिकिर नै करबै, त केकरो करबै? आबे खुशी-खुशी तीरथ करी के आवें...मन त छेलै कि अपने संग तोरा तीरथ कराय देतिहौं, लेकिन की करियै...आॅफिसो सें छुट्टी मिललै सिर्फ़ दस दिनो के. मालिक त हमरा बेटा नियर मानै छै, सारा जवाबदेही हमरे माथा पर पटकी देलकै। छुट्टियो बढ़ावे नै पारै छियै...की करियै?"

"तोरो-हेनो सरवन कुमार बेटा पावी के आबे हमरा आरो की चाहियो...हमरा रेल में बैठाय, बहू के समझाय दिहैं, अँगना के गोसांय-पितर के सेवा करतै।"

"तों एक काम कर माय। अकेले जैभैं, त हमरा फिकिर लागलो रहतौ...लछमिनियां के साथें लै जो। खर्चा-पानी के नै सोच, हम्में सब इंतजाम करी दैबौ।"

बाहर आँगन, ओसारा आरो पंगत में सब्भे के पता चली गेलै कि रघुआ नें माय के साथ तीरथ में लछमिनियो के भेजी रहलो छै। सब्भे खुश होय गेलै। दोनों टोला भरी के आशीर्वाद मिले लागलै। रघुआ के. बेटा होय त रघुआ ऐसन।

साँझ सें रात होय गेलै। घर-आंगन में पेट्रोमेक्स जली गेलै। भोज के पंगत अभी चलिये रहलो छेले कि बाहर हल्ला होय गेलै। शहर सें चकाचक कार आबी के रघुआ के दुआरी पर लगलै। टोला भरी के बच्चा कार के घेरी लेलकै। बाहर सें दौड़ी के आदमी सिनी रघुआ के खबर देलकै, त रघुआ झट बाहर।

"अरे सेठ जी आप।"

हड़बड़ाय गेलै रघुआ। मालिक के संग मलकायन। रग्घू के साथें-साथ दोनों पति-पत्नी सीधे रघुआ माय के पास पहुँची गेलै। रघुआ माय के भी माथा चकराय गैलै। कीमती सूट में मालिक आरो गहना सें लदलो मलकायन। दोनों गोटा के कपड़ा में जानें कैन्हो इतर के खुसबू छेलै कि पूरा ओसारा गम-गम होय गेलै।

रघुआ माय नें दोनों के वाँहीं कुर्सी पर बैठाय, झटकी के अँगना में गेलै,

आरो बहू के साथ वापस आबी के सेठ जी तरफ इशारा करी कहलकै, -

"ले बहू, मालिक के परनाम करी ल।"

मालिक के गोड़ छुऐ ल जेन्हैं बहू झुकबे करलै कि झट सिनी मलकायन नें उठी के ओकरा पकड़ी लेलकै। आपनो हाथो सें घुंघट उठाय के चेहरा निहारलकै आरो आपनो कलेजा में सटाए लेलकै।

मालिक नें आपनो जेबी सें मखमल मढ़लो एक डिब्बा निकाली के बढैलकै, त मलकायन नंे डब्बा लै क आपनो हाथो सें बहू के हाथ में दै देलकै। तखनिये मालिक के ड्राइवर हाथ में एक पैकेट लेले जल्दी से ऐलै।

"अरे, भाई राम सिंह, असल गिफ्ट तो गाड़ी में ही छूट गया था...लाओ." मालिक नें आपनो पत्नी के इशारा करलकै त हुनी पैकेट लै के बहू के हाथो में दै कानों में की कहलकै...कोय नै सुनलकै।

" चलो भाई रघुनन्दन, हम दोनों की ओर से तुम दोनों को बहुत-बहुत

बधाई. आॅफिस की ओर से तुम्हें क्या गिफ्ट मिला है, उसे सरप्राईज रहने दो। बाद में खोल कर देखना। अब बहू को ले जाओ, मैं ज़रा माँ से दो बातं कर लूँ। "

सेठ जी नें आत्मीय भाव सें कहलकै।

रग्घू त घबरय्ये गेलै-मालिक त हिन्दी बोलै छै। माय केना बात करतै? आरो डब्बा में आखिर कैन्हों सरप्राईज बंद छै? ओकरो दिमागे काम करना बंद करी देलकै। रग्घू आरो बहू जेन्है गेलै, मालिक नें रघुआ माय के सामना वाला चैकी पर बैठाय के दोनों गोटा आपनो-आपनो कुर्सी पर बैठी गैलै।

"आपका बेटा बहुत होनहार है माँ जी, मेरा सारा कारोबार अब इसी की जिम्मेदारी है। जल्दी ही कम्पनी की तरफ से आपके बेटे को फ्लैट और गाड़ी मिलने वाली है।" सेठ जी के आवाज में उत्साह छेलै।

रघुआ माय मालिक के मुँह टुकुर-टुकुर ताके लागलै। ई फ्लैट की होय छै? आखिर नै रहलौ गेलै त सकुचाय के पूछिये लेलकै, "ई फ्लैट की होय छै सरकार, हम्में गाँव के गवांर नै बुझै छी।"

"छी, छी, माँ जी, कौन आपको गाँव का गंवार कह सकता है। रघुनंदन ने मुझे सब बताया है। आपने किस तरह अपने बल पर दुखों का पहाड़ उठाया है-हमें पता है। ऐसे होनहार-ईमानदार बेटे की माँ गंवार कैसे हो सकती है? और एक बात, मुझे सरकार-वरकरार मत कहिए, उम्र में आपके बेटे के समान हूँ...मुझे बेटा कह सकती हैं-अच्छा लगेगा मुझे।"

भोज में दोनों गोटा में सें कोय नै बैठलै, लेकिन रघुआ माय नें जबे

आपनो हाथो सें मिठाय के डिब्बा देलकै, त हुनी राखी लेलकै। मालिक के गाड़ी तुरंत चल्लो गेलै, लेकिन टोला भरी वास्तं एक नया गप्प के मसाला छोड़ी देलकै-ऐन्हो मालिक-मलकायन, ऐन्हो मातवीर आरो घमण्ड तनिको नै। आरो रघुआ के मानै छै कत्त। मुँह देखौनी आखिर देलकै की?

जेत्त मुंह-ओत्त बात।

बेचारा रघुनन्दन! ढेर रात बीती गेलै, कनियांय कब्बे सें कोहबर में बैठली छै, आरो रघुआ के फुरसत नै कि कोहबर में घुसै। न्यौतारिनो के झुण्ड रघुआ माय के घेरी के बैठलो छै। के कहाँ सुततै, कहाँ रहतै, एकरो इंतजामो में परेशान छै रघुआ। हलवाय सिनी जाय वास्तं तैयार, ओकरहौ विदा करना छै। बचलो घी-तल-मसाला आरू अनाजो समेटना ज़रूरी। हलवाय के जोगड़िया सिनी भी एक सें एक चालू होय छै। नजर बचाय के बचलो चीज गायब करै में कोय देरी नै।

मामला सुलझैतं-समेटतं रघुआ हलकान होय गेलै। टोला-मोहल्ला सें माँगलो-जमा करलो गेंदरा-भोतरा बिछवाय के, न्यौतारिन जोर-जनानी के सुतै के इंतजाम आरो हलवाय जोगड़िया के सोर-समान समेटतं-समेटतं आरो विदा करतें-करतें

आधो रात गुजरी गेलै, तबे थकलो-मरलो बेचारा रघुनन्दन पहुँचलै आपनो कोहबर में।

गेठरी नाँखी सिमटलो कनियांय, बैठले-बैठले सुती गेलो छेलै। चेहरा घुंघट सें बाहर।

परी छै भाय! कनियांय के रूप देखी के पिघली गेलै रघुआ। बिजली नाँखी करेंट। भिनसरिया सें एक पैर पर खड़ा छेलै बेचारा। आरो कोय बखत रहतियै त गिरी पड़तियै-सीधे खटिया पर, लेकिन ई रूप देखी के ओकरा लागलै कि बदन हवा में उड़ी रहलो छै ओकरो।

हौले-हौले जाय के चुपचाप बिस्तर के दुसरो कोना में बैठी गेलै। रघुआ के लागलै यही रकम बैठलो-बैठलो रूप निहारी के भिनसरिया करी देतै। की करलो जाय? लालटेन बुझैय्यै, एतना दिप-दिप चेहरा। लालटेन बुझाय के बादो त झलकबे करतै।

रघुआ जेन्हैं बिस्तर सें उठलै... कनियांय नें चैंकी के आँख खोली देलकै। फिरू की छेलै, हड़बड़ाय गेली बेचारी। घुँघट काढ़ी के उठी गेलै तुरत, आरो रघुआ के पास आबी के पैर छुवै खातिर जे झुकलै त रघुआ ने भरी लैलकै आपनो छाती में।

मखमल के गठरी में ठूंसी के भरलो सेमल के रूइया नाँखी कनियांय के संगे रघुआ जबे बिछौना पर ऐलै, त ओकरो नजर सेठ जी के उपहार पर पड़लै। डब्बा के पन्नी खुललो छेलै। कनियांने नें खोलले होतै।

आखिर की छै ई डिब्बा में। रहलौ जाय भला? रघुआ नें उठाय के जब डब्बा खोललकै त देखै छै कि अंदर में हवाई जहाज के दू टिकट, होटलो में ठहरै खातिर जमा करलो पैसा के रशीद, सौ टका बाला नोटों के एक गड्डी आरो एक महिना के स्वीकृत छुट्टी के चिट्ठी। बापो जिनगी में कहियो हवाई जहाज पर नै चढ़लो छै रघुआ, त ओकरो जनानी की चढ़लो होतै भला।

कनियांय नें हवाई जहाज के टिकट उठाय के जबे देखै लागलै, त रघुआं चेहरा घुमाय के देखलकै ओकरो हँसी. दाँत छै कि मोती? आबे की करै रघुआ? आँखो के सामने कनियैनी के जे चेहरा छै, ओकरो खुशी ऐन्हों छलकी रहलो छै कि...की करै रघुआ। आँख बन्द करलकै कि माय खड़ी होय गैले साक्षात।

लोर गिरी गेलै, रघुआ के आँखी सें। तड़पी गेलै कनियांय,

"की भेलै...कैन्हें कानै छौ?"

कनियैनी के आवाज वीणा के तार नाँखी रघुआ के कानों सें टकरैलै त रघुआ के उदासी सें भरलो आँख खुली गेलै। आपना के रोकतं कहलकै,

"कानै कहाँ छियै।"

"तोरा भगमाने किरिया, हमरा सें नै छिपाबो, बात की छै? खोली के कही धौ।"

"समझे में नै आवै छै... की कहियौं।"

"कैन्हें, कोय कसूर होय गेलै हमरा सें की? ... कि हम्में पसंद नै ऐलौं?"

"राम! राम! की कहै छौ...तोरा पाय के त हमरो भागे जगी गेलो छै...सपन्हौं में नै सोचले रहलियै कि हमरो भाग में ऐन्हो परी छै।"

लजाय गेलै, रघुआ कनियांय। रघुआ देखलकै कि लजैला सें ओकरो चेहरा आरो लाल-सुन्दर होय गैले। लाजो के मारें जबे दुलहनियां के बोल नै फुटलै, त रघुआं कहलकै, "हम्में सोचले रहियै-तों अंगिका नै बोलभौ... हिन्दी में गप होतै, लेकिन देखै छिये, कालेजों में पढ़ला के बादो।"

कनियैनें बीचे में बात काटी देलकै,

"कैन्हैं। कालेज में त लोग अंग्रेजी, रूसी, जर्मन आरो फ्रेंचो पढ़ै छै...एकरो की मतलब होलै...आपनो भाषा, आपनो बोली बोलना बंद करी देतै?"

"हमरो ई मतलब नै छै?"

"तबे की मतलब छै...अंगिका बोलै बाला अनपढ़? मैं-तू कहै बाला, पढ़लो-लिखलो हाकिम? हमरो कालेज में अंगिका के अलग डिपार्टमेंट छै। जेना हिन्दी-अंग्रेजी-जर्मन, होने अंगिका।"

रघुआ के मुँह आश्चर्य से खुली गेलै।

"अच्छा! हमरा सिनी त समझै रहियै-ई देहातो के बोली छेकै। शहरो में बोलै में लजाबै छेलियै।"

"नै ऐन्हो बात नै छै, आपनो बोली-आपनो भाषा बोलना लाज के नै, गौरव के बात छेकै, अच्छा ई सिनी जाय-ल-धौ, असली बात बताबो, कानल्हौ कैन्हें?"

रघुआ के समझै में आबी गेलै-कनियांय पढ़लो-लिखलो छै, समझदार छै। एकरा सें की छिपाना-आरो खोली के निकाली देलकै आपनो दिलो के भड़ास।

आपनो बीमारी, माय के मनौती आरो बाकी सब्भे कुच्छू। कनियांय नें गंभीर होय के सब सुनलकै।

"आबे तोहीं बताबो ...हम्में की करियै। मालिक नें एन्हो देवता रकम काम करतै...हमरा गुमानो नै छलै। माय हमरी तैयार बैठली छै, जातरा खातिर, आरो हम्में दोनों गोटा निकली जइयै, आपनो मधुमास मनाय ल त माय पर की गुजरतै?"

"कहिया के मनौती छेकै?"

"दस सालो के."

"दस सालो सें नै जाय ल सकलै?"

कनियांय पड़ी गेलै सोच में। होस्टले में रही के बी0 ए0 करले छेलै। ई उमरी में सखी-सहेली संग, की भागवत कथा के गप होय छै? आपनो-आपनो सपना में सब्भे एक सपना देखै छै। आपनो दुलहा के सपना...उमंगो के सपना। आरो कनियांय के त नामे छेकै 'सपना' । की कहै आबे?

बड़ी सोची के आखिर सपनां पुछलकै, "अच्छा एक बात त बताबो। दोनों गोटा के 'हनीमून ट्रीप' छेकै एक महिना के. अगर माय हमरो बादे जैतै त कौन आफत पड़ी जैतै... आखिर दस बरसों सें सफरतं-सफरतं जबे नहिंये जावे पारलै, त अबे एक महिना के देरी सें की फरक पड़ै वाला छै?"

"जिनगी भरी भी नै जैतै त की फरक पड़तै? बात ऊ नै छै?"

"तबे आरो की बात छै?"

"संकल्प लेलकी छै कि हमरो भोज-भात के बाद जातरा पर निकली जैतै। दोनों टोला में सबके पता छै आरो टोला भरी के जोर-जनानी प्रार्थना करी रहलो छै कि अबकी रघुआ माय के जातरा नै टले। समानो बंधलो छै आरो रेल के टिकटो कटलो छै। भिनसरिया सतनारायण भगवान के पूजा, आरू सांझ के पकड़तै गाड़ी। आबे बताबो की करियै?"

"आबे ऐन्हो बात छै त हम्में की कहे-पारै छी...माय के करेजा पर जे दुख-विपत के पहाड़े गिरी गेलै...ऊ सोची के त हमरो करेजा में टीस उठी गेलो छै। माय के तीरथ-हंसा पूरा होना ज़रूरी छै...लेकिन ज़रा आपनो भी सोछौ...जों देवता नाँखी मालिक नें तोरो एत्त खयाल करलखौं...हुनियो की सोचतै? फिरू जिनगी में की ऐन्हों मौका बार-बार आबै छै? आरो मानी ल...बादो में मौका मिलिये जाय, त की 'हनीमून' दोबारा मनैभौ?"

रघुआ के हालत त साँप-छुछुंदर वाला। जबाब की दै बेचारा? कनियैनो ठीक्के कहै छै। जनम-बीहा आरो मरन दू बार होय छै भला। ऊपर से ऐन्हो कनियांय। की छै भागो में... भगवाने जानै छै।

आँख बंद करी लेलकै रघुआं। माय के चेहरा फिरू साक्षात देखाय पड़लै। रघुआ के लागलै, आँखी में पानी भरी के माय कही रहलो छै, -

" जो बेटा जो... कनियांय ठीक्के कहै छौ...घुमी ले कनियांय संग... हम्में त बूढ़ी होय गेलियै...गोसांय-पितर दोख लिखै छै त लिखै-ल-दे...आखिर हमरै त लिखतै...

आरो रघुआ के आँखी सें फेनू लोर गिरी गैलै।