रचनाधर्मिता का एक नया आयामः ‘अक्षरलीला’ / सुरंगमा यादव

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संवेदना और संप्रेषण कविता की दो मुख्य विशेषताएँ हैं। संवेदनहीन और सम्प्रेषण- विहीन कविता साँचे में ढली मूर्ति मात्र है। कविता रचने के लिए कवि मन होना चाहिए और उसे ग्रहण करने के लिए सहृदय मन, अन्यथा कितनी भी अच्छी कविता हो, पाषाण पर हुई वृष्टि की भाँति हृदय को रससिक्त नहीं कर सकती। आज मानव की मानव के प्रति तथा प्रकृति के प्रति घटती संवेदना समाज में नाना विकारों के रूप में तथा प्राकृतिक आपदाओं के रूप में प्रकट हो रही है। प्रकृति मनुष्य की अतिवादिता की प्रतिक्रिया तत्काल भले न दे, परंतु धीरे- धीरे उसके मन की बढ़ती पीड़ा विस्फोटक रूप में प्रकट होकर मनुष्य के लिए गंभीर संकट खड़ा कर देती है और तब तमाम प्रगति के बावजूद मनुष्य अपने आपको असहाय महसूस करने लगता है। कोरोना काल में मनुष्य को अपनी विवशता और निरीहता का अनुभव भली-भाँति हो चुका है। जीवन हो या प्रकृति संतुलन अत्यंत आवश्यक है। संतुलन बनाना भी एक कला है,जो इस कला का माहिर है वही जीवन में सफल है ।

रमेश कुमार सोनी हिंदी व छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लेखन कार्य कर रहे हैं। प्रकृति के प्रति आपके मन में प्रगाढ़ प्रेम है,आप प्रकृति प्रेमी ही नहीं, उसके संरक्षण के लिए भी चिंतित तथा प्रयासरत हैं। जीवन का सबसे बड़ा पाठ प्रेम करना सीखना है, यदि मनुष्य ने इसको कंठस्थ नहीं किया, तो उसका जीवन अधूरा है। प्रेम का केवल शृंगारिक रूप ही नहीं है, अपितु प्रेम करुणा, मित्रता, मानवता, संवेदना आदि सब कुछ प्रेम ही है। प्रेम से ही जीवन में परिपूर्णता आती है, ये प्रेम व्यक्ति विशेष के प्रति, प्राणिमात्र के प्रति या प्रकृति के प्रति भी हो सकता है। रमेश कुमार सोनी जी का प्रकृति प्रेम उनकी रचनाओं में सर्वत्र देखने को मिलता है । लंबे समय से आप जापानी काव्य शैलियों में सृजन कर रहे हैं । रोली-अक्षत, पेड़ बुलाते मेघ, के पश्चात् 'अक्षरलीला’ आपका तीसरा हाइकु- संग्रह हैं। वास्तव में हाइकु अक्षरों की ही लीला है, केवल सत्रह वर्णो से बने शब्दों से हाइकु का कलेवर 5-7-5 की वर्ण व्यवस्था से बनता है। इतने कम वर्णो में गंभीर बात कोई समर्थ हाइकुकार ही कह सकता है।रमेश कुमार सोनी जी को उन समर्थ हाइकुकारों में स्थान प्राप्त है।

रमेश कुमार सोनी का सद्यःप्रकाशित हाइकु संग्रह ‘अक्षरलीला’ 14 उप शीर्षकों में विभाजित है। संग्रह के 14 में से 08 वर्गों में प्रकृति के नाना रूपों और उपादानों का ही चित्रण हुआ है, शेष 06 वर्गों में प्रेम की स्मृतियाँ, त्योहारों की खुशियां, झूठ-सच की माया, घर-संसार की बातें तथा वर्तमान समय और समाज का चित्रण हुआ है। भोर के समय मौन को गुंजायमान करता पाखी का कलरव मन्त्रोच्चार जैसा प्रतीत होता है, जो सम्पूर्ण वातावरण को पावन -पुनीत बनाकर जग को जाग्रत करता है, तो दूसरी ओर कभी ये पक्षी कवि को आर्केस्ट्रा सुनाते प्रतीत होते हैं। पक्षियों ने किसी संगीत विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण नहीं की, लेकिन फिर भी उनके कलरव में एक लय है, सौन्दर्य है। भोर में जागने वाला व्यक्ति ही प्रकृति के पल-पल बदलते सौन्दर्य का साक्षात्कार कर पाता है -

भोर का मौन/पाखी ने मंत्र पढ़े/दुनिया जागी।

पेड़ों के पंछी/आर्केस्ट्रा सुनते/भोर-््साँझ में।

धरा पर सूर्य रश्मियों का अवतरण सम्पूर्ण प्रकृति को चैतन्य बना देता है,सरोवर में कमल खिल जाते हैं,कवि का मानना है कि ये कमल यूँ ही नहीं खिले, वरन किरणों ने आकर इन्हें गुदगुदी मचाई और ये खिलखिलाकर हँस पड़े। गुदगुदी होने पर हँसना एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है,इसे प्रकृति से जोड़कर आपने मानवीकरण का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है –

भोर रश्मियाँ /गुदगुदी उठातीं/कमल खिले।

बैलों के गले में बजती घंटी के स्वर से मंत्रमुग्ध किसान के साथ–साथ खेत भी गाते प्रतीत होते हैं। धूप-ताप सहकर किसान बड़ी प्रसन्नता के साथ आशा के बीजारोपण के लिए खेत जोतकर तैयार करता है। खेत भी उसकी ख़ुशी के मौन साथी बनकर स्वर में स्वर मिलाते हैं,धरती और किसान के आत्मीय संबध को दर्शाता ये हाइकु दृष्टव्य है –

खेत गा उठे/बैलों की घंटी संग/किसान राग।

सूर्य और चाँद को लेकर प्राचीन काल से ही कवियों ने अनेक कल्पनाएँ की हैं, विशेषकर चाँद से तो कवियों का विशेष ही अनुराग रहा है। सर्दी के मौसम में ठंड के कारण सूर्य का देर से उठने तथा ठंडे पानी से डरने का चित्रण बालपन की याद दिलाता है । चाँद का चोरी से खिड़की से झांककर नींद चुराना तथा एक प्रेमी के रूप में झरोखे से फांदकर प्रेयसी को निहारने के आनन्द की अनुभूति भी बड़ी रसमय प्रतीत होती है –

बाल सूरज/ठंडी झील से डरा/देर से उठा।

चाँद चोर है /खिड़की से झाँकता/नींद चुराता ।

झरोखा फाँद/चाँद देखता चाँद / कुटिया खुश ।

रमेश कुमार सोनी का ग्राम्य परिवेश और प्रकृति से काफी जुड़ाव है, आपने लोकभाषा के बहुत से शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है, जैसे- बरदी(गोवंश), खड़फड़ी(लकड़ी की बनी खड़फड़ का स्वर करने वाली घंटी), नवाखाई (नवान्न का प्रथम बार खाना)आदि। खड़फड़ी का स्वर संकेत कर रहा है कि गोधूली बेला हो चुकी है, गोधन जंगल से लौट रहा है। नाद बिम्ब के साथ ही गाँव का दृश्य आँखों के सामने साकार हो उठता है-

बरदी लौटी/ खड़फड़ी बजाती /गोधूलि बेला।

'पाखी का सरगम’ के अधिकतर हाइकु नवीन उद्भावनाओं, बिम्बों, प्रतीकों तथा सुन्दर कल्पना शक्ति से संपन्न हैं। बबूल के पेड़ का सूर्य से टोल टैक्स माँगना, हवा का धूल–गंध को बिना टैक्स लिए लिफ्ट देना, गुलाब का काँटों की जेड प्लस सुरक्षा पाकर इतराना, तितली का ग्लोबल सिटीजन बनकर घूमना जैसे अनेक नये अनुभवों के चित्रण हुआ है-

साँझ का सूर्य/ बबूल- काँटे फँसा/ टोल टैक्स दो।

शेखी बघारे/ काँटों बीच गुलाब/जेड प्लस में।

तितली उड़ी/ग्लोबल सिटीजन/प्रकृति जाने।

‘खरगोश फुदके’ में शीर्षक के अनुरूप ही अनेक पशु-पक्षियों का चित्रण है। मासूम बच्चे की तरह पेड़ पर झूलता हुआ पांडा,गाजर खाते खरगोश, सियार की टोली,शहद पीने को घूमते भालू, ट्रैफिक का सत्यानाश करते साँड से लेकर छोटी-सी चींटी को भी आपने हाइकु का विषय बनाया है। एक ट्रेनर की भांति मृगी अपने छौने को कुलाँचे भरना सिखा रही है, नभ में उड़ते कलाबाज बाज पैराग्लाइडिंग करते प्रतीत हो रहे हैं। इसी प्रभाग में कुत्ते के छोटे पिल्ले का चित्रण बेहद स्वाभाविक है,वह बंद आँखों से भी अपनी माँ की आहट को पहचान लेता है-

छौने उछले/मृगी चौकस खड़ी/ट्रेनर अच्छी ।

नभ में बाज/पैराग्लाइड करें /योग में मग्न ।

मासूम पिल्ले /बंद आँखों से चीन्हें /माँ की आहट।

‘धूप का स्वाद’ में रचनाकार ने विभिन्न फलों व सब्जियों के विषय में अपने सूक्ष्म पर्यवेक्षण को काव्यरूप में प्रस्तुत किया है। ‘दाँत दिखाना’ मुहावरे का बहुत सुन्दर प्रयोग आपने भुट्टे के सन्दर्भ में किया है। दाँत दिखाकर हँसने का दुष्परिणाम भुट्टे की भांति निर्लज्ज व्यक्ति को भी भुगतना पड़ता है। प्रतीकात्मक शैली का ये हाइकु सुन्दर बन पड़ा है। चना और मटर के माध्यम से मानवीय ईर्ष्यावृत्ति का सुन्दर चित्रण भी कवि की अभिनव कल्पना शक्ति को दर्शाता है-

भुट्टे बेचारे/ दाँत दिखाके हँसे/भूने जाएँगे ।

चने का कोट/मटर से अच्छा क्यों?/ मसूर जले ।

मेघों की जेब फाड़कर गिरती बूँदें,बिना रिमोट के पूस का ए०सी० चलाना, ग्रीष्म ऋतु में मानों वी. आई. पी. लू के लिए सड़कों का सूना हो जाना जैसे सुन्दर चित्र खींचते अनेक हाइकु इस संग्रह की शोभा बढ़ा रहे हैं।

‘आजकल की चर्चा’ के हाइकु वर्तमान समय-समाज में छद्म वेशधारी वर्ग, लोकतंत्र में ‘हार्स ट्रेडिंग’, ‘पेड न्यूज’ का दौर, मोमबत्ती की रैली निकल कर न्याय की आस जैसे चलन का चित्रण कर समाज को आईना दिखाने की कोशिश की गयी है-

साँप डरते/इच्छाधारी लोगों से/दूध के धुले।

लोकतंत्र जी/रिसॉर्ट में रहते/ ‘ह़ार्स ट्रेडिंग’।

न्याय माँगती/मोमबत्ती की रैली/दरिंदे हँसे।

रमेश कुमार सोनी जी के हाइकु एक अलग ही प्रभावात्मकता लिए हुए हैं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि इनका रसास्वादन कर पाठकों को अनूठे आनन्द की प्राप्ति होगी।

हाइकु संग्रह-अक्षरलीला, रचनाकार-रमेश कुमार सोनी, भूमिका-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, प्रथम संस्करण- 2025, मूल्य-340/-₹, पृष्ठ-112, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, नई दिल्ली -110059, ISBN:978-93-6423-264-7