रजनीकांत, धनुष और 'फकीर' / जयप्रकाश चौकसे

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रजनीकांत, धनुष और 'फकीर'
प्रकाशन तिथि : 24 जून 2019


इक्कीस जून 2013 को धनुष की पहली हिंदी फिल्म 'रांझना' का प्रदर्शन हुआ था और इस साल उसी तारीख को उनकी अभिनीत अंग्रेजी भाषा में बनी पहली फिल्म 'द एक्स्ट्राऑर्डिनरी जर्नी ऑफ द फकीर' का प्रदर्शन शुरू हुआ। धनुष का गीत 'कोलावरी डी' अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। वे इस मायने में किशोर कुमार की तरह हैं कि वे हरफनमौला कलाकार हैं और गीत-संगीत व कथाएं रच सकने के साथ अभिनय भी कर सकते हैं। मणिरत्नम ने 'शमिताभ' नामक फिल्म बनाई थी। कथासार इस तरह था कि एक व्यक्ति बोल नहीं सकता और दूसरा बोल सकता है परंतु उम्रदराज है और सूरत भी प्यारी नहीं है। दोनों मिलकर सफल कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। मंच पर मूक व्यक्ति गाता हुआ प्रस्तुत होता है, जबकि गाने वाला परदेे के पीछे से पार्श्व गायन करता है। संभवत: पार्श्व गायन से ही फिल्म प्रेरित थी। मणिरत्नम ने फिल्म के क्लाइमैक्स में युवा मूक पात्र की मृत्यु दिखा दी और उम्रदराज व्यक्ति कब्रिस्तान में शांति खोजता है। मणिरत्नम, अमिताभ बच्चन की प्रतिभा का आदर करते हैं और इसी कारण मोह भी जन्मा। संभवत: इसलिए उन्होंने अमिताभ बच्चन अभिनीत उम्रदराज पात्र को जीवित रखा। फिल्म के नाम 'शमिताभ' से भी उनका बच्चन मोह अभिव्यक्त होता है। यह फिल्म असफल रही थी। ज्ञातव्य है कि धनुष सुपर सितारे रजनीकांत के दामाद हैं। धनुष का ताजा गीत 'राऊड़ी बेबी' अत्यंत लोकप्रिय हो रहा है। धनुष की विचार शैली कुछ ऐसी है कि वे सफलता के पीछे भागते नहीं वरन् सफलता से भयभीत भी रहते हैं परंतु सफलता उनके पीछे भागती है। हॉलीवुड में प्रियंका चोपड़ा ने अपना स्थान बनाया। दीपिका पादुकोण भी प्रयास कर चुकी हैं परंतु धनुष पहले पुरुष सितारे हैं, जिन्होंने हॉलीवुड की फिल्म में नायक की भूमिका अभिनीत की है। दरअसल, हिंदुस्तान में जन्मे अनगिनत लोग विदेशों में बस गए हैं और हॉलीवुड इसी संख्या के कारण भारतीय सितारों के साथ फिल्में बनाता है। अभी तक किसी भारतीय फिल्मकार को हॉलीवुड ने अवसर नहीं दिया। दरअसल, हॉलीवुड में पटकथा लिखने के बाद फिल्म निर्माण की योजना बनाई जाती है। पटकथा लिखने में 2 वर्ष लग सकते हैं परंतु फिल्मांकन 5 सप्ताह में पूरा हो जाता है। धनुष के सामने सबसे बड़ी कठिनाई यह आई कि वे हर शॉट में अपनी भाव-भंगिमा बदल देते हैं। हॉलीवुड शैली में स्वयं को मांजने का अवसर दिया जाता है परंतु शैली नहीं बदली जा सकती। जब दिलीप कुमार और मनोज कुमार 'क्रांति' फिल्म में साथ आए तो दिलीप कुमार की परेशानी यह थी कि मनोज कुमार उनकी शैली की नकल प्रस्तुत कर देते थे। इस संकट से दिलीप कुमार इस तरह बचे कि वे रिहर्सल के दौरान की अपनी भाव-भंगिमा को शॉट के समय बदल देते थे। दिलीप कुमार अपने यथार्थ जीवन में भी प्रयोग करते रहे हैं। वे अनेक तरीके से अपनी सिगरेट सुलगा सकते थे, जबकि उन्हें सिगरेट पीना सख्त नापसंद था। वे पतंग उड़ाने के लिए आवश्यक मांझा स्वयं ही तैयार करते थे। यह कितना त्रासद है कि विगत कुछ वर्षों से वे अपनी याददाश्त खो चुके हैं। कहीं इस बदहोशी में वे किसी दिन अपनी पत्नी सायरा को मधुबाला कहकर संबोधित न कर दें। मधुबाला उनका पहला प्यार थीं और पहला प्यार सावन की पहली बौछार, बचपन का पहला खिलौना भुलाए नहीं भूलता।

बहरहाल, रजनीकांत और उनके दामाद धनुष एक ही फिल्म में अभिनय करें तो दक्षिण भारत मंे बॉक्स ऑफिस के नए रिकॉर्ड बन जाएंगे। 'बाहुबली' से भी अधिक व्यवसाय रजनीकांत-धनुष अभिनीत फिल्म कर सकती है। रजनीकांत का जन्म महाराष्ट्र में मराठी भाषा बोलने वाले परिवार में हुआ था। वे बेंगलुरू में बस कंडक्टर थे और उनका अंदाज एक निर्माता को इतना पसंद आया कि उसने उन्हें फिल्म में अभिनय का अवसर दिया। यह भारत महान के उस दौर में संभव हुआ जब आपसे आपकी पहचान सिद्ध करने के लिए नहीं कहा जाता था। धनुष की इच्छा है कि वे अपने भाई के साथ एक फिल्म अभिनीत करें। पूरा परिवार ही प्रतिभाशाली है। उनकी हॉलीवुड फिल्म एक फकीर की यात्रा का विवरण देती है। हमारे यहां फकीर दार्शनिक भी हुए हैं। फकीर सराय में रात बिताते थे। आज मुल्क में सराय नहीं हैं, सभी जगह जलसाघर बने गए हैं। एक जलसा सतत जारी है।