रजनीकांत-कमल हासन की जुगलबंदी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2019
मीडिया अपने स्वार्थ के लिए समकालीन अभिनेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता का हव्वा रचता रहा है। मोतीलाल-चंद्रमोहन, राज कपूर-दिलीप कुमार, धर्मेंद्र-मनोज कुमार, शाहरुख-सलमान की आपसी दोस्ती-दुश्मनी को भी मिर्च-मसाला लगाकर रोचक बनाया जाता है। इसी तरह औद्योगिक घरानों की प्रतिद्वंद्विता को भी धार दी जाती है। दक्षिण भारत में रजनीकांत और कमल हासन के बीच प्रतिद्वंद्विता के किस्से चर्चा में रहे हैं। इन सितारों के प्रशंसकों के बीच तो बात हाथापाई तक जा पहुंचती है। दक्षिण भारत में प्रशंसकों के अपने संगठन होते हैं। सितारे भी प्रशंसक संगठनों को आर्थिक सहायता देते रहे हैं। मनोरंजन उद्योग का इस तंदूर को दहकाए रखता है। टिकट खिड़की के सामने लंबी कतारें बनाए रखना जरूरी है।
हर क्षेत्र में महानायक छवि बड़े जतन से रची जाती है। समकालीन महानायकों के बीच छाया युद्ध का वातावरण बनाया जाता है। कुछ समय पूर्व रजनीकांत और कमल हासन दोनों ने ही अपने-अपने राजनीतिक दलों की स्थापना की घोषणा की थी। खबर आते ही राजनीतिक दलों के सेल्समैन चेन्नई पहुंच गए। दिल्ली के राजनीतिक खेमों में इन सुपर सितारों को अपने दल में शामिल करने की होड़ प्रारंभ हो गई। फिजाओं में उड़ती चिंगारियां दावानल न बना दें, इसलिए बीच-बचाव करने वाला फायर ब्रिगेड भी वहां जा पहुंचा।
रजनीकांत और कमल हासन ने गुप्त मुलाकात की और वे इस निर्णय पर पहुंचे कि उत्तर बनाम दक्षिण छाया युद्ध का होना दक्षिण के फिल्म उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है। अतः उन दोनों ने ही अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ठंडे बस्ते में डाल दिया। ज्ञातव्य है कि भारत में 8000 एकल सिनेमाघर ही बचे हैं जिनमें से 50% दक्षिण भारत में स्थित हैं। अधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश में एकल सिनेमा घरों की संख्या निरंतर घट रही है। मध्यप्रदेश में अब केवल 150 एकल सिनेमाघर बचे हैं। कुछ ही वर्ष पूर्व तक यह संख्या 450 थी। मध्य प्रदेश में नदी पर बांध बनाने से कठिन है सिनेमा घर बनाना, क्योंकि नियमावली और लाइसेंस प्राप्त करना महावीर चक्र पाने से भी कठिन काम है।
बहरहाल, रजनीकांत और कमल हासन ने निर्णय लिया है कि वे दोनों मिलकर आम आदमी के जीवन को सुविधाजनक बनाने का प्रयास करेंगे। रजनीकांत और कमल हासन जानते हैं कि अगले वर्षों में महंगाई बढ़ेगी। वैश्विक आर्थिक मंदी के कदमों की आहट प्रतिदिन तीव्र हो रही है और कभी भी बिन बुलाए मेहमान की तरह घरों में प्रवेश करेगी। सारे जलसा घर बियाबां में बदल जाएंगे। जलसा घर में लगे जालों में कोई पायल बांधने वाले पैरों के लिए तरसने लगेगा। दर्शक के विरह में मनोरंजन उद्योग का कलेजा यूं छलनी हो जाएगा जैसे जंगल में कोई बांसुरी पड़ी हो।
क्या यह संभव है कि रजनीकांत और कमल हासन का साथ देने के लिए सलमान खान और शाहरुख खान भी जा पहुंचंे तथा अपने साथ रणवीर सिंह और रणबीर कपूर को भी ले लंे? तमाम क्षेत्रों के फिल्म सितारे संगठित होकर आम आदमी, जो सिनेमा का दर्शक भी है, के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन की स्थापना करें। ज्ञातव्य है कि रजनीकांत की तरह ही सलमान खान ने भी साधनहीन लोगों की सहायता के लिए बीइंग ह्यूमन संगठन की स्थापना की है और कुछ काम किया भी जा रहा है। चुनाव केंद्रित राजनीति से दूर रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। जैसे इंदौर में आनंद मोहन माथुर सभागृह का संचालन भगत सिंह ब्रिगेड कर रहा है। भारत के कई कस्बों और शहरों में सामाजिक संगठन सक्रिय हैं।
भारत में विकसित गणतंत्र का मॉडल इस कदर बेडौल हो गया है कि हुड़दंगियों की मनमानी चल रही है। वर्तमान में आम आदमी को सुविधाएं प्रदान करने वाले संगठनों की आवश्यकता है। सत्ताएं तो सड़क पर बने स्पीड ब्रेकर की तरह हैं। आम आदमी का जीवन उस सड़क की तरह बन गया है जिस पर मरम्मत के काम के चलते हुए भी आवागमन जारी है। अब आम आदमी को महानायक की भूमिका में आकर अपने हालात स्वयं ही सुधारने होंगे। अब आदमी और अधिक गाफिल नहीं रह सकता। शैलेंद्र का इप्टा के लिए लिखा गीत है, 'तू आदमी है आदमी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।'