रजनीकांत का राजनीति प्रवेश? / जयप्रकाश चौकसे

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रजनीकांत का राजनीति प्रवेश?
प्रकाशन तिथि :20 जून 2017


रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश पर एक सकारात्मक संदेश इस तरह मिलता है कि उन्होंने भारत की सारी नदियों को जोड़ने की बात पर जोर दिया है। ज्ञातव्य है कि आज़ादी के बाद ही नेहरूजी ने इसकी पहल की थी और एक पारसी इंजीनियर ने योजना पर काम भी किया था परंतु इसमें लागत इतनी विराट थी कि योजना को स्थगित कर दिया गया। वर्तमान में इस पर व्यय बहुत अधिक होगा परंतु इसके दीर्घकालीन लाभ की खातिर इसे किया जाना चाहिए। अगर इस महान कार्य के लिए पूरे देश की जनता से चंदा एकत्र किया जाए तो यह संपन्न हो सकता है। मुकेश अंबानी, टाटा, बिड़ला एवं लंदन में रहने वाले स्टील निर्माता मित्तल एवं हिंदुजा परिवार धन दे सकता है परंतु यह व्यापारी समूह नदियों पर यातायात एवं मछली पकड़ने पर टोल टैक्स के अधिकार प्राप्त करना चाहेगा। सड़कों के निर्माण के समय भी इसी तरह के अधिकार दिए गए और तय अवधि समाप्त होने के बाद भी टोल टैक्स वसूला जाता रहा है। भारत में एक बार लगा टैक्स कभी हटाया नहीं जाता। बहरहाल, सारी नदियों के जुड़ने से ही खंड खंड़ होता भारत पुन: जुड़ सकता है।

आयकर द्वारा प्राप्त धन का बड़ा हिस्सा आयकर विभाग और वसूली प्रक्रिया में ही खर्च हो जाता है। यदि आयकर पूरी तरह से हटा दें तो उससे प्राप्त होने वाला धन पूरे भारत में आयकर विभाग के भव्य भवनों से प्राप्त किराये से भी पूरा हो सकता है, क्योंकि वह एक कोड़ा है, जो विरोधी की पीठ पर बरसाया जाता है। आजकल साफगोई से खबरें देने वाले टेलीविजन पर अनेक प्रकार की जांच बैठा दी गई है। एनडीटीवी को सांस लेने में कठिनाइयां पैदा कर दी गई है। आपातकाल लगाए बिना भी वैसी ही हालात बनाए जा सकते हैं। नए नामों वाले नेता सत्ता प्राप्त करते हैं परंतु सबके मिज़ाज में यक सी क्रूरता व मनमानी करने के भाव रहते हैं। भूख और अभाव कोड़े हैं, जिन पर तरह-तरह 'नाच के यहां दिखाना पड़ता है।'

रजनीकांत की कमाई का बड़ा भाग अवाम की सहायता की मद में खर्च होता है और उनके प्रशंसकों के क्लब निगरानी रखते हैं कि इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हो सके। रजनीकांत के प्रशंसक कानून हाथ में लेने में विलम्ब नहीं करते। सितारे को उसके प्रशंसक अपने उद्वेग से 'गॉडफादर' बना देते हैं और वह सत्ता के परे सत्ता हो जाता है। दर्शक और मतदाता का उन्माद तानाशाही व्यवस्थाओं को रचता है। फिल्म हो या नेता की सभा 'भीड़' जुटाई जाती है और यह भीड़ तर्क नहीं वरन भावना के आवेग से संचालित होती हैं। यह कोई आश्चर्य नहीं कि भीड़ के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी भाषा का शब्द 'मॉब' है। गॉडफादर की दुनिया में उसके दल को भी 'मॉब' ही कहा जाता है।

यह भी गौरतलब है कि फ्रांस में अवाम द्वारा की गई क्रांति की सफलता के बाद एक चौराहे पर जनता की 'अदालत' बैठती थी और श्रेष्ठि वर्ग के लोगों को दंडित करती थी। सरेआम 'दोषी' का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। तमाशबीन ताली बजाते थे। कुछ वर्ष पश्चात जब फ्रांस के समाज में समतुलन स्थापित हुआ तो शोध करने पर ज्ञात हुआ कि चौराहों के न्यायालय द्वारा दंडित लोगों में अधिकतम लोग निर्दोष थे। मोम के पुतले बनाने की कला की शिखर कलाकार मादाम तुस्साद की आत्म कथा में 'चौराहे' पर दंडित निर्दोष लोगों का विवरण है। हर क्रांति एवं बड़े परिवर्तन की आंधी में कुरीतियों के वृक्ष धराशायी होते हैं परंतु प्रेम व कला की मासूम कोंपलें और पौधे भी नष्ट हो जाते हैं। सारे विकास की कोख में ही विनाश भी कहीं दुबका बैठा होता है। भारत महान में दुबका बैठा विनाश हमेशा तांडव करता रहता है।

बहरहाल रजनीकांत का सक्रिय राजनीति में प्रवेश आशा जगाता है परंतु भय यह है कि फिल्म में वे एक घूंसा मारते हैं तो दस व्यक्ति नीचे गिर जाते हैं। अगर वे राजनीति में भी इसी खामोखयाली से आए तो वे स्वयं चोटग्रस्त हो सकते हैं। वर्तमान शासक उन्हें अपने दल में शामिल होने का न केवल सुझाव दे रहा है वरन विशेषज्ञों की एक टीम इस कार्य में लगी है। विरोधाभास यह है कि हुक्मरान आर्य श्रेष्ठता के घोड़े पर सवार है तो द्रविड़ों का प्रतिनिधित्व करने वाला रजनीकांत उनके साथ कैसे जा सकता है। आर्य-द्रविड़ विवाद भारत भूमि की निचली सतह पर सैकड़ों वर्षों से प्रवाहित है। अगर रजनीकांत विरोध में जाते दिखे तो उन्हें राष्ट्रपति पद का लोभ दिया जा सकता है परंत इसी पद पर अमिताभ बच्चन भी सुशोभित हो सकते हैं। यह संभव है कि बच्चन साहब अपनी करोड़ों की कमाई का प्रलोभन छोड़ पाएंगे या नहीं? राजनीति की शतरंज पर जाने कब कोई प्यादा राजा-रानी को चित कर दे?