रजनीकांत हातिमताई या रॉबिनहुड / जयप्रकाश चौकसे

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रजनीकांत हातिमताई या रॉबिनहुड
प्रकाशन तिथि :27 जुलाई 2016



जिस तरह दर्जी हमारा नाप लेकर कपड़े की सिलाई करता है उसी तरह रजनीकांत अभिनीत फिल्मों के बनाने वाले पटकथा लिखते हैं। टेलर मेड भूमिकाएं और फिल्में रजनीकांत के लिए बनाई जाती हैं। सारे मसाले नाप-तौलकर डाले जाते हैं। उस चरित्र को गरीबों का मददगार अवश्य दिखाया जाता है। वह अमीरों को लूटता है गोयाकि रॉबिनहुडनुमा पात्र है। उसकी उम्र अधिक होने के कारण उसकी प्रेमिका के पात्र को हटाकर उसकी पत्नी और पुत्री के पात्र रचे जाते हैं। कबाली की पुत्री ही अपनी माता को खोजने में उसकी सहायता करती है। इन फिल्मों के घटनास्थल हमेशा बदले जाते हैं और कुछ भाग विदेश में शूट किए जाते हैं। इस फिल्म के घटनास्थल थाईलैंड, मलेशिया और चेन्नई है। उसी के हिसाब से उसके वस्त्र भी महंगे हैं, डिजाइनर सूट हैं।

फिल्म में वह महंगे सूट पहनता है, आधुनिकतम कारों में बैठता है। आम साधनहीन आदमी को अपने नायक की रईसी जरा भी खलती नहीं। जब दलित नेता मायावती अपने जन्मदिन पर महंगा केक काटती हैं तब उनके प्रशंसक प्रसन्न होते हैं कि उनमें से एक ऐश्वर्य का जीवन जी रहा है। अवाम की ऐसी सोच अाश्चर्यजनक है। महात्मा गांधी की साधारण पोशाक और सरल जीवनशैली उन्हें लोकप्रिय बनाती है। दूसरी ओर मायावती के ठाठ-बाट पसंद किए जाते हैं। अवाम की पसंद जानने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है। यह मामला कुछ ऐसा है जैसे 'दुल्हन वही जो पिया मन भाए' या मजनू की नज़र से ही लैला की सुंदरता का आकलन हो सकता है। 'मदरसा-ए-इश्क का इक ढंग निराला देखा, सबक जिसको याद हुआ, उसे छुट्‌टी न मिली।' रजनीकांत की फिल्म ने पहले तीन दिन में विदेश क्षेत्र में 20 करोड़ की आय प्राप्त की। वे लोकप्रियता में सलमान, शाहरुख और आमिर खान से भी बड़े सितारे हैं। गौरतलब है कि रजनीकांत का असली नाम शिवाजी गायकवाड़ है और वे जन्म से मराठा हैं। बेंगलुरू में वे बस कंडक्टर थे और प्रारंभिक फिल्मों में उन्होंने खलनायक की भूमिकाएं निभाई। सिगरेट को हवा में उछालकर मुंह से पकड़ने की उनकी अदा लोगों को भली लगी। उनकी हर फिल्म में इस तरह के करतब होते हैं। अवाम से उनका अात्मीय तादात्म्य रहस्यपूर्ण है। वे दिलीप कुमार की तरह विलक्षण अभिनेता नहीं हैं और देव आनंद की तरह सुंदर नहीं हैं परंतु उनकी सितारा हैसियत सबसे विलक्षण है। वे अपने निजी जीवन में भी नायक की तरह जीते हैं। उनकी पुत्री सौंदर्या ने फिल्म बनाई थी और पूंजी निवेश करने वाली कंपनी को घाटा हुआ, जिसके एवज में कंपनी रजनीकांत के साथ फिल्म बनाना चाहती थी परंतु उसका व्यवहार उचित नहीं था। अत: रजनीकांत ने अपने मित्रों से 40 करोड़ रुपए लेकर कंपनी को दे दिए। कानूनी तौर पर वे इस घाटे के लिए उत्तरदायी नहीं थे और न ही उनकी पुत्री सौंदर्या। यह एक व्यवसाय था, जिसमें घाटा हुआ। रजनीकांत के आत्म सम्मान को किसी के सख्त तेवर पसंद नहीं थे। कुछ वर्ष पूर्व श्रीदेवी ने अपने श्वसुर सुरेंद्र कपूर का 75वां जन्मदिन चेन्नई के अपने बंगले में मनाया था। उस दावत में रजनीकांत एक मेहमान नहीं बल्कि मेहमाननवाज की तरह लोगों के सामने प्रस्तुत हुए। उनमें कोई अहंकार नहीं है, वे अत्यंत सरल व्यक्ति हंै। उस रात दावत समाप्त होने पर जब रजनीकांत बंगले के बाहर आए तब उनके हजारों प्रशंसक सड़क पर खड़े होकर उनके लिए तालियां बजा रहे थे और समय था आधी रात बाद तीन बजे का।

क्या उनकी लोकप्रियता का राज यह है कि वे अपनी कमाई का बड़ा भाग गरीबों की सहायता में खर्च करते हैं? बीमारों का इलाज कराते हैं, गरीब छात्रों की फीस भरते, दान धर्म का काम अनेक लोग करते हैं? रजनीकांत साधनहीन लोगों की आंखों में बसे स्वप्न की तरह है और अवाम का दर्द रजनीकांत का रतजगा है। इस कार्य के लिए चुनाव जीतकर जो अपनी औकात से बड़ी कुर्सियों पर बैठे हैं वे तो भरपूर नींद लेते हैं और साइरन की तरह बआवाज खर्राटे लेते हैं। अगर रजनीकांत राजनीति में आ जाए तो विरोधियों की जमानत जब्त हो जाए। रजनीकांत वर्ष में एक बार विदेश जाते हैं और वहां साधारण यात्री की तरह हिचहाइकिंग करते हैं। एक रात वे लॉस वेगास के कैसिनो में भी खेलते हैं और पासों की क्या मजाल की वे उसके खिलाफ पड़े। वे मुकद्दर के सिकंदर हैं। गौरतलब है कि कबाली देश के शत्रु चीन के गिरोह से लड़ता है। चीनने हिमालय पर सड़कें बना ली हैं और रेलवे लाइन भी बिछाई है। हमारे नेता और फिल्मकार वोट बैंक की खातिर पाकिस्तान को ही खलनायक बताते हैं। असली खतरा चीन से है।