रजनीकांत : लोकप्रियता की अबूझ पहेली / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :20 जुलाई 2016
रजनीकांत अभिनीत 'कबाली' का प्रिंट चोर रास्ते से वेब दुनिया में पहुंच गया है और उसका संगीत भी अधिकृत रूप से जारी होने के पहले उसे भी चोर रास्ते से बाजार में लाया गया है। इन चोरियों के बाद भी फिल्म के लिए रजनीकांत प्रेमियों का जोश देखते हुए, कुछ कॉर्पोरेट्स ने प्रदर्शन के दिन दफ्तर में छुट्टी कर दी है, क्योंकि सारे कर्मचारी छुट्टी के लिए आवेदन कर चुके थे। प्रदर्शन के दिन बैंकों से भी अनेक कर्मचारी नदारद होंगे। सितारों के लिए दर्शक का उन्माद ही फिल्मोद्योग का अार्थिक मेरुदंड है। इस उन्माद को वैज्ञानिक तौर पर समझना कठिन है। किसी प्रयोगशाला में इसका विश्लेषण संभव नहीं है। इसकी जड़ें मनुष्य के अवचेतन में गहरी पैठी हुई हैं। रिचर्ड बर्टन नामक लेखक ने 'एनाटॉमी अॉफ ए हीरो' में गंभीर प्रयास किया है। भारत में नायक पूजा की जड़ें अवतारवाद से जुड़ी हैं। इसे पलायनवाद भी कहते हैं परंतु सरहद पर युद्धरत सैनिक अपनी खंदक में अपनों को याद करता है। क्या इसे इस सचेत सैनिक का पलायन कहेंगे? मनुष्य अवचेतन मानसरोवर झील की तरह है, जिसका जल विविध पहाड़ों से झांकती किरणों के कारण विविध रंग होने का भ्रम रचता है, जबकि जल का रंग सदैव एक-सा रहता है। जल राजनीतिक नेताओं की तरह गिरगिट नहीं है, जो अपना रंग बदलते हैं।
बहरहाल, रजनीकांत नामक रहस्य की अकल्पनीय लोेकप्रियता अबूझ पहेली है। वे दक्षिण भारत में देवता की तरह पूजे जाते हैं परंतु वे महाराष्ट्र के शिवाजी नामक व्यक्ति हैं, जो कभी बेंगलुरू में बस कंडक्टर थे। वे कुछ सर्कसनुमा काम कर लेते थे जैसे सिगरेट को हवा में उछालकर उसे अपने ओठों से पकड़ लेना इत्यादि। क्या हम यह मान लें कि वे अभिनय से प्राप्त राशि का बड़ा भाग गरीबों के कल्याण के लिए खर्च करते हैं, इसलिए लोकप्रिय हैं? अनेक धनवान दान करते हैं परंतु वे इतने लोकप्रिय नहीं हैं। अभिनय कला के मानदंड पर उनका कोई वजन नहीं है। वे अत्यंत साधारण अभिनेता हैं। रूप, रंग और व्यक्तित्व में भी कोई आकर्षण नहीं है। वे जिम जाकर मांसपेशियों को सदृढ़ भी नहीं बनाते हैं। क्या उनका अत्यंत साधारण आदमी की तरह होना ही उनकी लोकप्रियता का राज है? अधिक अचरज की बात यह है कि वे अपने सामान्य जीवन में सार्वजनिक स्थानों पर बिना मेकअप के जाते हैं और अपने संपूर्ण गंजेपन को भी नहीं छिपाते। इसके बावजूद उनकी लोकप्रियता बढ़ती जाती है।
हर वर्ष वे एक माह के लिए छुटिट्यां बिताने विदेश जाते हैं। अन्य सितारों की तरह उनके साथ सेवक नहीं जाते, वे एक छोटे से झोले में दो जीन्स व टी-शर्ट डालकर निकल पड़ते हैं और हिच हाइकिंग करते हैं अर्थात मार्ग पर जाते वाहनों से गुजारिश करके यात्रा करते हैं। इन छुटिट्यों में एक सप्ताहांत वे लॉस वेगास जाकर कैसिनो में जमकर दांव लगाते हैं। यह किस्मत का धनी वहां भी जीतता ही होगा परंतु वे केवल जुएं के रोमांच और अनिश्चितता की खातिर वहां जाते हैं। जीवन की तरह ही गैम्बलिंग अनिश्चतता का खेल है।
सदियों तक चीन के आम आदमी संसार के सबसे बड़े जुआरी माने जाते थे परंतु अब तानाशाही में शायद यह संभव नहीं होगा। चीन के अवाम के अवचेतन को भारत के मंत्री समझने का प्रयास करें परंतु हमारे राजनीतिक दल ने पाकिस्तान को सबसे बड़ा शत्रु बनाकर पेश किया है, क्योंकि पाकिस्तान विरोध दुर्भाग्यवश वोट दिलाता है, जबकि दोनों देश एक ही मांस के दो लोथड़े हैं। दोनों के रोग समान है। एक ओर के मांस में दोष आएगा तो दूसरा उससे बच नहीं सकता। आंख की एक बीमारी को सिम्पेथेटिक ऑफ्थेल्मिया कहते हैं। जब एक आंख के लाइलाज दोष के बावजूद उसे समय रहते नहीं निकाला जाता तब दूसरी स्वस्थ आंख भी काम करना बंद कर देती है। कुदरत का अजब-गजब करिश्मा है। रजनीकांत भी कुछ बॉक्स ऑफिस करिश्मा ही है।