रणबीर कपूर और शरत सक्सेना की ‘कर्मा’ / जयप्रकाश चौकसे

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रणबीर कपूर और शरत सक्सेना की ‘कर्मा’
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2021


रणबीर कपूर और शरत सक्सेना अभिनीत कथा फिल्म का नाम है ‘कर्मा। ‘कर्मा’ में शरत सक्सेना अभिनीत पात्र, फांसी देने के लिए नियुक्त किया जाता है। उसे अन्य स्थानों पर नौकरी करने या अपना व्यवसाय चलाने की इजाजत दी जाती है। फांसी दिए जाने के दिन वह अपने अन्य काम या व्यवसाय से एक दिन की छुट्टी लेता है।

‘कर्मा’ फिल्म में फांसी की सजा पाने वाला व्यक्ति फांसी देने वाले का खोया हुआ पुत्र है, जो आज वर्षों बाद उसे दिखा है। क्या कोई पिता अपने पुत्र को फांसी के तख्ते पर लटका सकता है? ‘कर्मा’ के फिल्मकार ने भी अंत दर्शकों की सहूलियत पर छोड़ दिया है।

गोया की दशकों पूर्व लेखक अनिल बर्वे के लिखे, मंचित एक नाटक का नाम था ‘थैंक यू मि. ग्लाड।’ इसमें फांसी की सजा पाने वाला व्यक्ति भारत की स्वतंत्रता संग्राम में शामिल है। मि. ग्लाड जेलर हैं और उन्हें मुजरिम से सहानुभूति है। मुजरिम उनसे निवेदन करता है कि फांसी के पूर्व ही मि. ग्लाड उसे गोली मार दें। यह मृत्यु बेहतर होगी। क्रांतिकारी को गोली से मारा जाना ही बेहतर लगता है। चंद्रशेखर आजाद ने भी गोली से मरना पसंद किया था। बहरहाल जेलर मि. ग्लाड, उस क्रांतिकारी को फांसी के लिए ले जाते समय उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसे गोली मार देते हैं। इस तरह एक अंग्रेज जेलर एक भारतीय की इच्छा के अनुरूप कार्य करके दंड का भागी बन जाता है। गोली खाने वाला मृत्यु के समय कहता है ‘थैंक्य यू मि.ग्लाड।’ स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए गिरफ्तार होने वाला कैदी एक प्रशिक्षित डॉक्टर रहा है। उसने जेल में कैदियों के रोग का निदान भी किया है। पंजाब में शिक्षक रहे सीताराम शर्मा ने शोध करके भगतसिंह के जीवन पर लिखी पटकथा मनोज कुमार को सुनाई। इसी फिल्म ने अभिनेता मनोज कुमार को नई दिशा दिखाई। कालांतर में वे ऐसी फिल्में बनाने लगे।

खाकसार की लिखी एक कथा का सार इस तरह है। एक सफल संगीतकार को ज्ञात होता है कि उसकी पत्नी उसके एक वादक से प्रेम करने लगी है। संगीतकार अपने फार्म हाउस जाता है। बरसात की रात एक राहगीर को अपनी कार में बैठा लेता है। अनजान राहगीर और संगीतकार में मित्रता हो जाती है। दोनों का वहां पहुंचकर खाना-पीना भी होता है। दरअसल वह राहगीर एक फांसी देने वाला का पुत्र है। इसका फांसी देने वाला पिता अपराध बोध से ग्रसित था और किसी कारण उसके हाथों बीमार पत्नी के साथ मार-पीट हो जाती है। उसी समय उसका पुत्र घर आता है और अपने पिता पर आक्रमण करता है। पिता को मरा हुआ जानकर वह भाग जाता है। यही व्यक्ति संगीतकार को राह में मिला था और अब उसका मित्र हो गया है। \ संगीतकार की पत्नी को भी यह सब पता चल जाता है। वह भी फार्म हाउस पहुंच जाती है। असल में उसके वादक प्रेमी ने उसे यह समझाकर भेजा है कि वह अपने पति को गोली मार दे। उस समय एक पुत्र ने फांसी देने वाले अपने पिता को गंभीर रूप से घायल कर दिया है और उसी क्षेत्र में छुपा है। अत: उसके सारे अपराधों के लिए उसे ही उत्तरदायी माना जाएगा। बहरहाल तभी पत्नी फार्म हाउस में एक कैसेट सुनती है जिसके सारे गीत उसे समर्पित किए गए हैं। उसे पश्चाताप होता है। वह पुलिस को खबर करती है कि संगीतकार के बंगले में एक डकैत छुपा बैठा है। पुलिस दबिश देती है और वहां छुपा वादक मारा जाता है। फांसी देने वाला घायल पिता बाद में होश में आते ही बयान देता है कि उसके पुत्र ने उस पर हमला नहीं किया था। पुत्र तो उसे शराब पीने से रोक रहा था। हाथापाई हो गई। सभी पात्रों के रिश्ते सुधर जाते हैं। कथा सुखांत थी। सोहराब मोदी ने भी ‘जेलर’ नामक फिल्म बनाई थी। शांताराम की ‘दो आंखें बारह हाथ’ सबसे अधिक सराही गई थी।