रणबीर कपूर के लिए निर्णायक दौर / जयप्रकाश चौकसे

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रणबीर कपूर के लिए निर्णायक दौर
प्रकाशन तिथि :15 मार्च 2016


रणबीर कपूर ने अपना कॅरिअर अपने दादा की कंपनी आरके में शुरू नहीं करके भंसाली की 'सांवरिया' से शुरू किया। फिल्म घोर असफल रही परंतु उसमें एक सितारे की क्षमता की उम्मीद के साथ उनकी कुछ फिल्में प्रारंभ हुईं और उनके बचपन के दोस्त अयान मुखर्जी की फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' खूूूब सफल भी रही परंतु अन्य फिल्में पिट गईं। इन असफल फिल्मों के बाद भी निर्माताओं को उनकी प्रतिभा पर विश्वास था और युवा दर्शक वर्ग में उनकी लोकप्रियता उनका सबसे बड़ा संबल रही। कॅरिअर के प्रारंभ से ही उनके प्रेम प्रकरण भी होते रहे हैं और विशेषज्ञों की राय थी कि उन्होंने अपने दादा राज कपूर और पिता ऋषि कपूर से विरासत में प्रतिभा पाई है परंतु आशिकाना मिज़ाज़ बहुत कुछ शम्मी कपूर की तरह रहा है। दीपिका पादुकोण के बाद कटरीना कैफ से न केवल अंतरंग संबंध रहे वरन एक स्वतंत्र घरौंदे में वे साथ रहने भी लगे। विवाह पूर्व इस तरह के संबंध उनके परिवार में किसी के नहीं रहे परंतु 21वीं सदी के इस कपूर राजकुमार ने परंपराअों की अनदेखी की। दरअसल, फिल्म जगत को छोड़ भी दें तो यह मानना होगा कि पाश्चात्य 'लिव इन' तौर-तरीका आज के युवा वर्ग को पसंद है और जिन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त है, वे यह कर रहे हैं। हमारे सारे विरोध जाने कैसे आर्थिक स्थिति से जुड़ जाते हैं।

यह गौरतलब है कि झोपड़पट्टी में रहने वाले अत्यंत गरीब और गगनचुंबी इमारतों में रहने वाले अत्यंत अमीरों पर समाज के पारंपरिक नियम काम नहीं करते और परंपरा के नाम पर दकियानूसी रिवाजों का भार हमेशा मध्यम वर्ग पर ही रहता है। इस वर्ग का निरंतर युद्ध इस बात से है कि वे नीचे सरककर झोपड़पट्‌टी में न धकेले जाए और उनकी महत्वाकांक्षा आर्थिक रूप से श्रेष्ठी वर्ग में घुसपैठ करने की होती है और इसी द्वंद्व के कारण उनके पैरों के नीचे से पारंपारिकता की जमीन छूट जाती है और पंख कोमल होने के कारण वे अमीर वर्ग में शामिल भी नहीं हो पाते। सबसे अधिक दुविधाग्रस्त मध्यम वर्ग ही रहा है। इन्हीं दुविधाओं के कारण उन्होंने अपनी ऊर्जा दिखावे में नष्ट कर दी है। उनके रहन-सहन में श्रेष्ठी वर्ग की भोंडी नकल स्वरूप सोफा-कम बेड, डाइनिंग कक्ष और सफेद कॉलर की कमीज उनकी जीवनशैली में घुस आई है। इन भौतिक बातों को छोड़ भी दें तो भी उनकी विचार प्रक्रिया में दोहरे मानदंड का प्रवेश चिंताजनक है। झोपड़पट्‌टी से बचते-बचते और श्रेष्ठी वर्ग की भोंडी नकल ने उनसे सहज जीवन और विचार शैली छीन ली है। मध्यम वर्ग ने अपने वर्ग पर गौरव करना छोड़ दिया है।

आर्थिक वर्ग भेद और उसके सामाजिक परिणामों ने भारतीय सिनेमा को भी प्रभावित किया है। गरीब और मध्यम वर्ग की दर्शक संख्या के कारण पूंजीपति अमेरिका ने भी श्रेष्ठी वर्ग से आए नायकों पर फिल्में नहीं बनाई। हमारे फिल्मी नायक प्राय: गरीब या मध्यम वर्ग से आए हुए पात्र हैं। मल्टीनेशनल के आगमन के बाद मध्यम वर्ग के दर्शक को श्रेष्ठी वर्ग के साथ सिनेमा देखने के अवसर मिले और गरीब तथा किसान वर्ग का एकल सिनेमा का लाभ उठाकर वाजिब दामों में फिल्में देखना जारी रहा परंतु एकल सिनेमाघरों की संख्या निरंतर घट रही है, क्योंकि जमीनों के आकाश छूते दामों के कारण एकल सिनेमा 12 हजार से घटकर आठ हजार रह गए हैं।

इसी कारण फिल्मकार भी मल्टीप्लेक्स दर्शक के लिए फिल्में गढ़ने लगे और करण जौहर का सिनेमा इस वर्ग का प्रतिनिधि सिनेमा बन गया है। रणबीर कपूर के मनपसंद फिल्मकार इम्तियाज अली और अनुराग कश्यप है। करण जौहर की फिल्म करना उनके लिए समझौता हो सकता है। अब रणबीर कपूर अपने कॅरिअर में खतरा नहीं उठा सकते परंतु अनुराग बसु की 'जग्गा जासूस' का बॉक्स ऑफिस परिणाम रणबीर कपूर के कॅरिअर के लिए निर्णायक बन चुका है। इस फिल्म का बॉक्स परिणाम ही तय करेगा कि इस युवा कपूर को किस रास्ते पर चलना है। रणवीर कपूर ने संजय लीला भंसाली के सहायक निर्देशक के रूप में कॅरिअर प्रारंभ किया और अपनी सितारा सफलता के बाद वे स्वयं फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में प्रवेश करेंगे, जो उनका मूल उद्देश्य है।

यह भी तय है कि वे अपने परिवार की संस्था आरके फिल्म्स में काम नहीं करके स्वयं अपनी निर्माण संस्था के लिए काम करेंगे। उनके निकट के सूतर बताते हैं कि वे भी अपने दादा की तरह अपनी निर्माण संस्था बनाना चाहते हैं। अनेक फिल्मी स्कूलों से गुजरकर आए रणबीर कपूर अपने दादा की तरह आम अादमी की फिल्में बनाएंगे या श्रेष्ठि वर्ग से नायक लेंगे- यह बात शीघ्र उजागर होगी। उनके निर्णय से ज्ञात होगा कि युवा राजकुमार परंपरा का निर्वाह करेगा या नई परंपरा का प्रारंभ करेगा। राज कपूर ने अपनी आशा 'श्री 420' के गाने में अभिव्यक्त की थी, 'हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां, गीत हमारे प्यार के दोहराएंगी जवानियां।'