रणबीर कपूर बनाम रनवीर सिंह / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 जुलाई 2016
सिनेमा बाजार का वह हिस्सा है, जो साहित्य व समाज से जुड़ने की महत्वाकांक्षा रखते हुए कभी-कभी जुड़ भी जाता है परंतु मांग और पूर्ति के नियम से अछूता नहीं रहता। इस उद्योग में मीडिया सितारों के प्रेम और युद्ध की सच्ची झूठी कहानियां गढ़ता रहता है। सिनेमा विधा पर गंभीर किताबों के अभाव के कारण लोग गॉसिप पढ़ते हैं। अगर विधा के प्राथमिक ज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता तो प्रशिक्षित दर्शकों की जमात गढ़ी जा सकती थी परंतु नेताओं की कभी इसमें रुचि नहीं रही। राजनीति के क्षेत्र के लोग भी फिल्म प्रशंसकों की तरह ही होते हैं। इसी के साथ अपराध जगत के लोग भी फिल्मों में रुचि रखते हैं। अपने अभाव के दिनों में वे जिन सितारों के सजदे पढ़ते थे, उन सितारों को उन्होंने अपराध सरगना बनने के बाद दावतें दीं और उनके साथ तस्वीरें खिंचाई। कोई आश्चर्य नहीं कि 'राम तेरी गंगा मैली' की नायिका यास्मीन उर्फ मंदाकिनी से एक अपराध सरगना ने विवाह किया। आज मंदाकिनी भारत के किस शहर में गुमनामी का जीवन जी रही है, यह मालूम करने की कभी चेष्टा नहीं हुई। सुना जाता है कि वे बेंगलुरू के किसी भाग में सामान्य जीवन जी रही हैं। मीडिया भी डूबे हुए सितारों में कोई रुचि नहीं लेता।
जैसे कभी दिलीप कुमार-राज कपूर, राजेश खन्ना-अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र-धर्मेंद्र की आपसी प्रतिद्वंद्विता के किस्से गढ़े जाते थे वैसे ही आज रणबीर कपूर और रनवीर सिंह की प्रतिद्वंद्विता की अफवाहें गढ़ी जा रही हैं। कभी रणबीर कपूर-दीपिका की अंतरंगता थी, आज दीपिका-रनवीर सिंह की अंतरंगता सुर्खियों में है। एक तरह से पुरानी फिल्म 'अंदाज' (1949) और संगम (1964) के प्रेम तिकोन की तरह ही रणबीर, दीपिका और रनवीर सिंह का भी प्रेम तिकोन रहा है। रणबीर कपूर ने अपने दादा राज कपूर से प्रतिभा पाई है और दूसरे दादा शम्मी कपूर से रंगीन मिजाज पाया है। रनवीर सिंह का भी कपूरों से दूरदराज का रिश्ता है, जिसे आप सैटेलाइट रिश्ता कह सकते हैं। राज कपूर की फिल्म 'बूट पॉलिश' में केंद्रीय भूमिका करने वाली बेबी नाज के परिवार में रनवीर सिंह का जन्म हुअा है । जीवन में फिल्मी पटकथाओं की तरह के संयोग होते हैं परंतु आलोचक उन पर अविश्वसनीयता का अपना प्रिय ठप्पा लगा देते हैं। इससे स्मरण आता है कि 1898 में रिचर्डसन नामक लेखक के काल्पनिक उपन्यास में एक जहाज आइसबर्ग से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और 1912 में टाइटैनिक दुर्घटना घटी तथा उपन्यास और यथार्थ की दुर्घटनाओं में बहुत समानताएं थीं। इस संयोग का एक स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि समय की नदी की हमें दिखाई देने वाली ऊपरी सतह वर्तमान है, जिसके नीचे एक लहर भूतकाल की है और समुद्र गर्भ में भविष्य की लहर है। कभी हवा के प्रवाह और धरती के भीतर होते सतत परिवर्तन के कारण, तीनों सतहें एक ही जगह उभर आती हैं तथा इस क्षण को सृजनकर्ता देख पाते हैं। इसीलिए समय ही सब रचनाओं का केंद्र है। टाइटैनिक की दुर्घटना में एक मर्मस्पर्शी प्रेमकथा भी है। सारी रचनाओं के केंद्र में समय और प्रेम गुंथा रहता है। जब पहली बार विशाल बनमानुष को पकड़कर शहर ले जाने की पटकथा निर्माता ने पढ़ी तो उसने कहा कि इसमें प्रेमकथा गूंथना जरूरी है। इस विचार-विमर्श में शामिल एक सहायक निर्देशिका ने सुझाव दिया कि बनमानुष का प्रेम उस लड़की से हो जाता है, जो उसे पकड़ने वाले दल की सदस्य है। यह कथा कई बार बनी है। एक संस्करण में तलमंजिल पर कैद बनमानुष के चेहरे पर ऊपरी मंजिल पर चहलकदमी करती नायिका का स्कार्फ आ गिरता है और बनमानुष की वेदना किसी मजनूं, फरहाद या रोमियो से कम नहीं होती। ऐसा प्रस्तुतीकरण किया गया है। फिल्मों के ऐसे ही दृश्य दर्शक की याददाश्त में हमेशा के लिए दर्ज हो जाते हैं। मृत्यु भी जीवन की फिल्म के क्लाइमैक्स की तरह होती है।
रणबीर कपूर ने कॅरिअर संजय भंसाली के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू किया था और भंसाली ने ही उसे 'सांवरिया' में प्रस्तुत किया परंतु 'सांवरिया' के बाद दोनों ने साथ काम नहीं किया, जबकि रनवीर सिंह को भंसाली दोहरा रहे हैं। भीतरी जानकार कहते हैं कि भंसाली सेट पर तानाशाह की तरह होते हैं और संभवत: 'सांवरिया' के बनते समय उन्होंने अपने नाय को आहत किया हो। बाजार के हिस्से सिनेमा में बहुत धांधली भी होती है। रिश्तों में जाने कैसे दरार पड़ जाती है, कभी एक निगाह, मुस्कान या विद्रूप गहरी चोट करते हैं।