रणवीर सिंह के दावे और दुविधा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
रणवीर सिंह के दावे और दुविधा
प्रकाशन तिथि :13 मई 2016


रणवीर सिंह ने बयान दिया है कि वे अपनी बुद्धिमानी छिपाकर मूर्ख नज़र आने का प्रयास करते हैं, क्योंकि मूर्ख को सब पसंद करते हैं, उसे प्यार भी करते हैं। रणवीर के बयान में और उनकी प्रस्तुत की गई छवि में गहरा अंतर है। उनकी तमाम हरकतें स्वयं को शयन कक्ष में असीमित शक्ति वाले घोड़े की तरह दिखाने की है और संजय लीला भंसाली की फिल्म 'रामलीला' के नायक जैसा उनका व्यवहार है। उनकी छवि में कहीं भी बुद्धिमानी छिपाकर मूर्ख नज़र आने वाली बात प्रकट नहीं होती। वे केवल पौरुष के प्रतीक ही नज़र अा रहे हैं और अगर हम उनके बयान और दिखने वाले व्यक्तित्व को एक ही मान लें तो शयन कक्ष का अपराजेय योद्धा होना मूर्खता है और कमजोर होना बुद्धिमानी है। शयन कक्ष न तो अखाड़ा है और न ही जलक्रीड़ा। किसी भी सितारे के बयान को सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि उनका अधिकांश समय शूटिंग में जाता है, जहां उनके संवाद किसी और के लिखे गए हैं, उनके वस्त्र किसी और ने बनाए हैं और उन्हें निर्देशक के आदेश पर काम करना होता है। कई बार कैमरामैन उन्हें कहता है कि शॉट में वे फर्श पर बनाए निशान से आगे नहीं जाएं अन्यथा फ्रेम से बाहर होंगे। उसे तो एक काल्पनिक पात्र को जीना है।

दरअसल, रणवीर सिंह को कोई याद दिलाए कि जीवन 'राम लीला' की शूटिंग नहीं है। उन्हें पौरुष के दंभ की छवि से बाहर आना चाहिए। इस तरह की घोड़ों वाली शक्ति का कोई अश्वमेध भी नहीं है। ऐसी गलतफहमियां ब्ल्यू फिल्म को यथार्थ मानने वालों को होती हैं, जिसमें फोटोग्राफी व संपादन कला संयोजन से दृश्य में प्रस्तुत अवधि लंबी होती है। राज कपूर की 'बूट पॉलिश' में मासूम बच्चों की हृदयहीन चाची का पात्र अभिनीत करने वाली के पोते हैं रणवीर सिंह और उनके पिता काफी अमीर भी हैं। अत: वे कभी धनाभाव से जूझते संघर्षरत अभिनेता नहीं रहे हैं। आदित्य चोपड़ा ने उन्हें और अनुष्का शर्मा को 'बैंड बाजा और बारात' में प्रस्तुत किया था। उन्होंने अर्जुन कपूर के साथ 'गुंडे' फिल्म अभिनीत की। वहीं संजय लीला भंसाली की 'सांवरिया' के बाद रणबीर कपूर ने उनके साथ काम नहीं किया। सांवरिया के पहले वे उनके सहायक निर्देशक भी रहे। संभवत: उनके व्यवहार से उन्हेें ठेस पहुंची। भंसाली गुणी व्यक्ति हैं परंतु कदाचित वे सहयोगियों के साथ समानता का व्यवहार नहीं करते। कोई कड़वाहट है, जो व्यवहार में उभर आती है। ऐसे दो जरूरतमंद व्यक्ति आपस में मिले और 'राम लीला' जिसका नाम 'रास लीला' भी हो सकता था व 'बाजीराव मस्तानी' बनी। संकेत हैं उनकी अगली फिल्म के नायक भी रणवीर ही होंगे।

रणवीर सिंह और रणबीर कपूर को मीडिया ऐसे प्रतिद्वंद्वियों की तरह प्रस्तुत करेगा जैसे राज कपूर-दिलीप कुमार, धर्मेंद्र-मनोज कुमार, विनोद खन्ना-शत्रुघ्न सिन्हा, सलमान और शाहरुख खान रहे हैं, क्योंकि मीडिया को ऐसी प्रतिद्वंद्विता खड़ी करने में ही मसाला मिलता है, जिसे वे चटखारे लेकर प्रस्तुत करते हैं ताकि उनकी रोजी-रोटी बनी रहे। आप इरफान खान और नवाजुद्‌दीन को साथ ले सकते हैं, क्योंकि ये अभिनेता हैं और सितारा सनक से बचे हुए हैं। रिचर्ड बर्टन और पीटर ओ टूल ने 'बैकेट' साथ-साथ अभिनीत की और फिल्म प्रारंभ होने के पूर्व ही रिचर्ड बर्टन जानते थे कि पीटर ओ टूल अभिनीत भूमिका बेहतर है। हॉलीवुड में भी प्रतिद्वंद्विता होती है परंतु बेहतर फिल्मों की खातिर लोग एक-दूसरे के साथ काम करते हैं। हमारे उद्योग में नायिकाओं में प्रतिद्वंद्विता के भाव गहरे हैं। आप तीन नायक वाली कहानी तो बना सकते हैं, लेकिन तीन नायिकाओं को साथ नहीं लिया जा सकता। 1936 में शांताराम ने एक फिल्म बनाई थी, जिसमें सामाजिक कुरीतियों से पीड़ित महिलाएं अपना दल गठित करती हैं और कुरीतियों का संचालन करने वालों पर सशस्त्र आक्रमण करती हैं। आज कोई निर्माता ऐसी फिल्म के लिए दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनोट, अनुष्का शर्मा, कटरीना कैफ इत्यादि को एक साथ नहीं ले सकता।

हमारे उद्योग में इन सभी भावनाओं के कारण आज कई कहानियां हैं, जिन्हें परदे पर साकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि पूंजी निवेशक इन्हें बनाने के लिए धन नहीं देते। हमारे फिल्म उद्योग और राजनीति में भी प्रतिभा सम्पदा को डसने के लिए तैयार सांप कुंडली मारे बैठे रहते हैं। अब वह बीन कहां सेलाए, जिसे सुनकर ये नाचने लगे।