रत्ना पाठक अपनी मां की भूमिका में... / जयप्रकाश चौकसे

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रत्ना पाठक अपनी मां की भूमिका में...
प्रकाशन तिथि : 28 अक्तूबर 2013


अनिल कपूर का थ्रिलर '24' अत्यंत सराहनीय प्रयास है और भारतीय टेलीविजन पर इसके पहले कभी ऐसा प्रयास नहीं हुआ है। उनका पुत्र हर्षवर्धन राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म में प्रस्तुत किया जा रहा है। लंबे इंतजार के बाद सोनम कपूर की 'रांझणा' और 'भाग मिल्खा भाग' सफल हुई हैं और अब अनिल कपूर की छोटी बेटी रिया कपूर ऋषिकेश मुखर्जी की रेखा और दीना पाठक अभिनीत 'खूबसूरत' से प्रेरित फिल्म बनाने जा रही हैं। जिसकी शूटिंग 10 नवंबर से राजस्थान में शुरू होगी। रेखा अभिनीत भूमिका सोनम करने जा रही हैं और दीना पाठक की भूमिका के लिए उनकी बेटी रत्ना पाठक से बात चल रही है। ज्ञातव्य है कि रत्ना महान कलाकार नसीरुद्दीन शाह की पत्नी हैं और पाठक परिवार रंगमंच और सिनेमा से जुड़ा रहा है तथा आज भी रत्ना नाटक में अभिनय करती हैं। रत्ना को कभी उसकी प्रतिभा के अनुरूप अवसर नहीं मिला। उन्होंने अनेक सीरियल और फिल्में अभिनीत की हैं। पाठकों को याद होगा कि आमिर खान की फिल्म में उन्होंने इमरान की मां की भूमिका की थी और उसमें उनके स्वर्गीय पति की भूमिका नसीरुद्दीन शाह ने की थी। फिल्म में पत्नी चंदन का हार पहने दीवार पर फ्रेम में जड़ी अपने पति की तस्वीर से बात करती है। रत्ना और सतीश शाह ने 'सारा भाई बनाम सारा भाई' नामक अत्यंत सफल हास्य सीरियल में काम किया था। वे अजय देवगन की एक फिल्म में मिथुन के साथ काम कर चुकी हैं और सराही गई थीं।

रिया कपूर 'आयशा' नामक फिल्म बना चुकी हैं जो एक प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यास पर आधारित थी। ज्ञातव्य है कि 'खूबसूरत' दो चरित्रों की नाटकीय भिड़ंत की कहानी थी। दीना पाठक कठोर अनुशासन के साथ परिवार चलाती हैं और सब उनसे भयभीत हैं। रेखा एक मेहमान की तरह आती हैं और अनुशासन के किले में सेंध लगाती हैं। उनको लगता है कि कठोर नियमों की जंजीर में जकड़े हुए पात्र स्वाभाविक जीवन नहीं जी पा रहे हैं। अंतिम रील में दीना के कठोर अनुशासन प्रिय होने का राज खोला गया है कि उन्होंने बिखरते परिवार को स्नेह नहीं वरन नियमों में बांधा था। बहरहाल, रत्ना पाठक अपनी मां द्वारा अभिनीत भूमिका करते समय उनकी यादों की जुगाली भी करेंगी और उन्हें वे दिन भी याद आएंगे जब उनकी मां ने उन्हें अभिनय सिखाया था। रत्ना के लिए यह फिल्म एक विलक्षण अनुभव होगा। भूमिकाओं का उलटफेर केवल सिनेमा ही नहीं, जीवन में भी होता है। बीमार पिता को तसल्ली देता पुत्र कुछ समय के लिए पिता की भूमिका में चला जाता है और असहाय पिता पुत्र की तरह हो जाता है। उम्र का हिरण छलांग लगाता है तो रिश्तों के वृक्ष पर नए पत्ते आ जाते हैं। जीवन के रंगमंच पर अजब-गजब खेल प्रस्तुत होते हैं। राजनीति में भी उस बयान का विरोध किया जाता है जो सारी उम्र विरोध करने वाले देते रहे हैं। विरोध के लिए विरोध अब सिद्धांत बन गया है। धर्मनिरपेक्षता अब ऐसी ढीली टोपी है जिसे हर कोई पहने घूम रहा है।

दरअसल सिनेमा और रंगमंच पर प्रस्तुत अभिनय में हम जीवन का स्पंदन खोजते हैं परंतु जीवन में हम जितना अभिनय सहज रूप से ही करते हैं, इसको अनदेखा करते हैं। कोई भी कभी अपना सच्चा स्वरूप उजागर नहीं करता और इसमें छल से अधिक अज्ञान छुपा है। ताजा जेम्स बॉन्ड फिल्म में संस्था के जिस मुखिया को 'एम' अक्षर से पिछली फिल्मों में संबोधित किया जाता रहा है, उसे इस कड़ी में जेम्स बॉन्ड की मां बताया गया है। मनोरंजन जगत में रहस्य परत दर परत ही खोला जाता है।

एक कथा में प्रसिद्ध सितारा अपनी अधेड़ अवस्था में किसी से मिलती नहीं है ताकि उसके सौंदर्य की छवि का तिलिस्म बना रहे। राष्ट्र का शिखर सम्मान लेने के लिए वह अपनी युवा बेटी को थोड़ा सा मेकअप करके अपने स्थान पर भेज देती है ताकि उसके सौंदर्य की छवि अक्षुण्ण रहे और इसी रूप में बेटी को कई फिल्में मिल जाती है और मां को अपनी परदेदारी बढ़ानी पड़ती है। परंतु मां की छवि वहन करने वाली बेटी को प्यार हो जाता है और उसके लिए अब दोहरी भूमिकाएं करना कठिन हो गया है। जीवन की पटकथा में कई मोड़ होते हैं।