रमेश कुमार सोनी का अनुभव-संसार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
प्रत्येक व्यक्ति का अपना अनुभव -संसार होता है, जो उसके अनुभव, परिवेश, परिवेश की समझ एवं संवेदना से प्रसूत होता है। उस अनुभव को उपयुक्त वाणी देना, अभिव्यक्ति- कौशल पर निर्भर है। उपयुक्त भाषा न होने पर सारे अनुभव मन में ही आन्दोलित होकर विलीन हो जाते हैं। सक्षम भाषा होने पर ही दूसरे व्यक्तियों से संवेदना साझी की जा सकती है। यहाँ पर वह व्यक्ति भी विशिष्ट है, जो दूसरों के अनुभव को उसी स्तर पर अनुभव करता है। अच्छा रचनाकार वह है, जो अपने अनुभव -संसार को सामान्यीकृत करके एक बड़े वर्ग तक सम्प्रेषित करता है। सामान्यवर्ग तक अपनी अनुभूति सम्प्रेषित करना भी एक कौशल है। साहित्य में जो अपने गहन अनुभव, कल्पना एवं चिन्तन को जितने बड़े वर्ग तक सम्प्रेषित कर पाता है, वह उतना ही सफल रचनाकार होता है। चाहे काव्य में कबीर, दिनकर या बच्चन रहे हों या कथा -जगत् में प्रेमचन्द, व्यंग्य में शरद जोशी और हरि शंकर परसाई।
जापानी काव्य-विधा हाइकु में डॉ. सुधा गुप्ता और डॉ.भगवत शरण अग्रवाल ऐसी विभूतियाँ हुई हैं, जिन्होंने हाइकु को गरिमामय स्थान दिलाया। इनके परवर्ती हाइकुकारों में एक बड़ी संख्या ऐसे कवियों की है, जिन्होंने हाइकु - गुणवत्ता की इस परम्परा को बनाए रखा है। उन्हीं में से रमेश कुमार सोनी भी एक हैं, जो लगभग विगत पच्चीस वर्षों से हाइकु तथा अन्य जापानी शैलियों में सृजनरत हैं। 'अक्षरलीला' रमेश कुमार सोनी का तीसरा हाइकु-संग्रह है। यह संग्रह विषयानुसार 14 उपशीर्षकों में विभाजित है। हाइकु में प्रकृति का विशेष महत्त्व है। ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के कारण कवि का मन प्रकृति के सौन्दर्य में खूब रमा है। दूसरी ओर प्रकृति के क्षरण पर कवि की चिन्ता अनेक बार परिलक्षित हुई है। इनके हाइकु-काव्य में प्रकृति के सारे उपादान अपने नयनाभिराम सौन्दर्य के साथ उपस्थित हैं। 'पाखी का सरगम' के कुछ हाइकु का सौन्दर्य बेजोड़ है।
दुनिया को जगाने वाला पाखी कलरव नहीं करता; बल्कि मन्त्र पढ़ता है। मन्त्र पढ़ना पावन वातावरण का सृजन करता है। किसी संगीतकार से संगीत नहीं सीखा, तो भी उसके मन्त्र पढ़ने में एक शाश्वत लय है, जो मन्त्र को अर्थपूर्ण बनाती है। पावनता की यह अनुभूति भोर में जागने वाला ही कर सकता है। देर तक सोने वाला अभागा ही है, जो इस चरम सुख को अनुभव नहीं कर सकता-
भोर का मौन/ पाखी ने मंत्र पढ़ा/दुनिया जागी। (1)
कमल यों ही नहीं खिले। भोर की किरनों ने गुदगुदी उठाई, तो कमल खिलखिला उठे। गुदगुदी उठाने पर खिलखिलाना मानव प्रकृति है। इसी प्रवृत्ति का प्रकृति में अनुभव करना, कवि की नवीन उद्भावना है-
भोर-रश्मियाँ/ गुदगुदी-उठातीं/कमल खिले।(2)
हल चलाते हुए किसान जब बैलों की घण्टी के पार्श्व संगीत से अभिभूत होता है, तो खेत भी गा उठते हैं। यह किसान- राग सारे रागों से ऊपर है, जो परती पड़े खेत को आगामी फसल के लिए प्राणवन्त करता है। ‘खेतों का गा उठना’ मानवीकरण का अद्भुत् उदाहरण है-
खेत गा उठे/ बैलों की घंटी संग/किसान- राग। (5)
सर्दी के मौसम में बाल सूरज का देर से निकलने का कारण, ठण्डी झील से डरना कितना सहज है!
बाल सूरज/ ठंडी झील से डरा/ देर से उठा। (12)
घाट पर पानी भरने के लिए जाना, केवल पानी भरने ही ‘काम’ नहीं है। एक -दूसरे से मिलने पर आपस के सुख दुःख भी बातों ही बातों में मुखरित हो जाते हैं। भावों का यह विरेचन नगर की संस्कृति में कहाँ सम्भव है-
भोर में घाट/घर-घर के किस्से /बड़े बातूनी।(15)
एक और नया अनुभव देखिए, साँझ का सूरज जब बबूल के पेड़ के पीछे दिखाई देता है, तो लगता है कि काँटों ने उसको रोक लिया है । जैसे काँटे उसे रोककर कह रहे हों कि भैया आगे बढ़ने से पहले बबूल के इस नाके पर टोल टैक्स का भुगतान करो-
साँझ का सूर्य / बबूल काँटे-फँसा /टोल टैक्स दो। (16)
बरदी(गोवंश) का चराई के बाद गाँव की ओर लौटना, उनके गले में बँधी खड़फड़ी ( काठ की बनी खड़फड़ का स्वर करने वाली घण्टी) लगता है अलग ही नाद-सौन्दर्य उत्पन्न करती है-
बरदी लौटी/ खड़फड़ी बजाती/ गोधूली बेला। (18)
चाँद भी यहाँ चोर है, जो प्रेमी का रूप धारण करके खिड़की से झाँकने के लिए पहुँच जाता है। यह चित्रण तब और अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है, जब चाँद झरोखे से किसी दूसरे चाँद अर्थात् चन्द्रमुखी को साभिलाष निहारता है-
चाँद चोर है/खिड़की से झाँकता/ नींद चुराता। (26)
झरोखा फाँद/चाँद देखता चाँद/कुटिया खुश। (27)
धान पकने पर उस नवान्न का सबसे पहले पाहुने के द्वारा आहार स्वरूप ग्रहण करने की ‘नवाखाई’ करने वाला तोता महत्त्वपूर्ण हो जाता है-
धान जो पके/ नवाखाई करते/ पहुना तोता।(35)
बया के घोंसले में नन्हे चूजो का स्वर ऐसे खनकता है , जैसे बच्चों की गुल्लक में पड़े सिक्के खनकते हैं। बया के घोंसले का गुल्लक जैसा आकार इस हाइकु को सार्वजनीन बना देता है। प्रकृति में उपस्थित विभिन्न उपादानों में गुल्लक का सहजबोध विशिष्ट दृष्टि के बिना सम्भव नहीं है।
बया-घोंसला/ बच्चों के गुल्लक- सी/ खुशी खनके। (37)
काँटों के बीच गुलाब के खिलने का कारण उसको मिली 'जेड प्लस' सुरक्षा है। यह सुरक्षा उपलब्ध न हो, तो गुलाब के लिए खिलना इतना सरल नहीं हो सकता था। तितली इतनी स्वछन्द है कि जहाँ चाहे उड़कर जा सकती है। कवि ने उसको ग्लोबल सिटीजन बताया है। उसे किसी के पारपत्र या वीज़ा की आवश्यकता नहीं है। इन दो हाइकु में 'जेड प्लस' की सुरक्षा गुलाब को मिलनाऔर तितली का 'ग्लोबल सिटीजन' होना नितान्त नए प्रयोग हैं। ऐसे प्रयोग तभी सम्भव हैं, जब रचनाकार अपने परिवेश तथा काल के प्रति जागरूक हो और नवीन चिन्तन -दृष्टि से सम्पन्न हो।
शेखी बघारे / काँटों बीच गुलाब/ ‘जेड प्लस’ में।(53)
तितली उड़ी/ ‘ग्लोबल सिटीजन’/प्रकृति जाने।(81)
‘खरगोश फुदके’ में मासूम पिल्लों का चित्र बहुत स्वाभाविक है। इनकी आँखें बन्द हैं; लेकिन वे आहट मात्र से अपनी माँ को पहचान लेते हैं। गौरैया दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखकर बच्चों की तरह ठुमकती है। लगता है- वह अपने सौन्दर्य पर अभिभूत है। इस तरह के दृश्य प्रायः देखने को मिलते हैं। कवि ने ‘ठुमकना’ क्रिया से उसे और अधिक सहज और सम्प्रेष्य बना दिया है-
मासूम पिल्ले/ बन्द आँखों से चीन्हे /माँ की आहट। (2)
दर्पण देख/ गौरैया ठुमकती /बच्ची के जैसी। (46)
प्रकृति के विनाश से वन्य जीवों का गाँवों की ओर पलायन हुआ है। मैदानी भागों में नीलगायों का प्रकोप बहुत बढ़ा है। वनों के कटान से मनुष्य ने जो तथाकथित विकास किया है, उससे वन्यजीव बेघर हुए हैं। गाँव में घुसकर वे ही जीव अब उत्पात मचा रहे हैं। यह उत्पात न होकर उनका प्रतिशोध है।
वन में लोग/ हाथी गाँव में घुसे/ बदला पूरा। (53)
ग्रामीण परिवेश को गहराई से समझने के कारण फसलों के विषय में सोनी जी का अनुभव, उनकी प्रकृति- मुग्धता को नई शब्दावली प्रदान करता है। विज्ञान का शिक्षक होने के कारण आपने उसे ‘धूप का स्वाद’ में नूतन रूप में चित्रित किया है। चने , मटर और मसूर के कोट का अन्तर बहुत सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है। मटर छीलना जितना सरल है, चना छीलना उतना ही अधिक श्रमसाध्य है-
चने का कोट/ मटर से अच्छा क्यों?/ मसूर जले। (14)
दाँत दिखाकर किसी पर हँसना कितना भारी पड़ता है, इसे भुट्टे की स्थिति से समझा जा सकता है। बात बहुत छोटी है; लेकिन किसी को चिढ़ाने के कारण भुट्टे को भून दिया जाता है। इस तरह की उद्भावना को तीन पंक्तियों के 17 वर्णों में समेटना केवल उसी रचनाकर के लिए सम्भव है, जिसका जीवन्त भाषा पर अधिकार हो, जिसके अनुभव और संवेदना में तादात्मय हो। यही अच्छे हाइकु की शक्ति है।
भुट्टे बेचारे/ दाँत दिखाके हँसे/भूने जाएँगे। (21)
भाषा-दारिद्रय वाली भीड़ केवल निष्प्राण लेखन कर सकती है, हृदय को रस-प्लावित करने वाला सृजन नहीं कर सकती। रमेश कुमार सोनी की भाषा की शक्ति है- बाह्य -जगत् से उनका आत्मीयतापूर्ण जुड़ाव।
यहाँ पर कतिपय हाइकु पर दृष्टिपात किया है। सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त करने के लिए ‘अक्षर लीला’ का रसास्वादन करेंगे, तो आनन्द प्राप्त होगा। मुझे मेरा विश्वास है कि सोनी जी का यह संग्रह, हाइकु -जगत् में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा।
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5 अप्रैल , 2025