रविशंकर : मैहर से मेडिसन स्क्वेयर तक / जयप्रकाश चौकसे

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रविशंकर : मैहर से मेडिसन स्क्वेयर तक
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2012


रंजनदास गुप्ता को दिए गए अपने अंतिम साक्षात्कार में रविशंकरजी ने १९४० के आसपास अपने इप्टा दिनों की बातें सुनाईं और बताया कि चेतन आनंद के पाली हिल, मुंबई स्थित बंगले में उस्ताद अकबर अली खान और वे स्वयं प्राय: चेतन आनंद, ख्वाजा अहमद अब्बास के साथ शामें बिताया करते थे। उन दिनों दिए गए वचन को निभाया चेतन आनंद ने और अपनी फिल्म 'नीचा नगर' में संगीत निर्देशन का अवसर दिया। एक दृश्य के पाश्र्व संगीत के लिए पन्नालाल घोष, उस्ताद अकबर अली खान और रविशंकर ने एक साथ बजाया और साम्राज्यवाद के खिलाफ बनी फिल्म के दृश्य का प्रभाव बहुत अच्छा हो गया। इसी तरह उन्होंने अब्बास की 'धरती के लाल' का संगीत भी दिया। सत्यजीत राय की 'पाथेर पांचाली', 'अपुर संसार', 'अपराजितो' और 'पारस पत्थर' में रविशंकरजी ने संगीत दिया। उनका कहना था कि पूरब और पश्चिम के संगीत की गहरी जानकारी थी राय महोदय को और वे स्वयं पियानो पर बेथोफेन की रचना बजाते थे। यह संभव है कि पूरब के माधुर्य और पश्चिम की सिम्फनी को मिलाया जा सकता है - इस बात का अहसास उन्हें सत्यजीत राय के साथ काम करते हुए हुआ और कालांतर में उन्होंने इन विधाओं की सिंथेसिस के प्रयोग भी किए। रविशंकरजी ने ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा' और मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर बनी 'गोदान' में भी संगीत दिया और अनुराधा के लिए लताजी का गाया 'कैसे दिन बीते कैसे बीती रतियां' लोकप्रिय हुआ और जो लताजी के मनपसंद गीतों में एक है।

गांधी-नेहरू के प्रभाव वाले उस कालखंड में अद्भुत प्रतिभाशाली लोग फिल्मों से जुड़े और कल्पना करके ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं कि रिकॉर्डिंग रूम में रविशंकर, उस्ताद अकबर अली खान, पन्नालाल घोष और लता मंगेशकर काम करते होंगे तो प्रतिभा की अदृश्य लहरों से वह जगह कितनी पावन हो जाती होगी। भारत के ऐसे कितने ही मंदिर जाने कैसे नष्ट हो गए। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने भी फिल्मी गीतों के लिए शहनाई वादन किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों में इन महान लोगों की रचनाएं हैं, परंतु आज वे किस हाल में हैं, कितना कुछ लापरवाह अफसरशाही से नष्ट हो गया है - कुछ भी बताना संभव नहीं है। जो देश अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति इस कदर लापरवाह हो, उसके बने रहने पर ही दुर्र्भाग्यवश शंका होती है। सरकार में जिन लोगों की आवाज में असर है, उनसे निवेदन है कि पंकज राग ('धुनों की यात्रा' नामक शास्त्र के रचयिता) को आकाशवाणी के सारे अधिकार दिए जाने चाहिए, वैसा सहृदय संगीत का जानकार आईएएस अफसर ही हमारी धरोहर को संजोकर रख सकता है।

यह मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात है कि मैहर घराने के बाबा अलाउद्दीन खान के शागिर्द रविशंकर, उनकी पत्नी अन्नपूर्णा देवी और उनके भाई उस्ताद अली अकबर खान ने पूरी दुनिया में इस संगीत घराने का परचम फहराया है। तीन गै्रमी पुरस्कार जीते। वुडस्टॉक और मेडिसन स्क्वेयर न्यूयॉर्क में भारतीय माधुर्य ने पश्चिम को मंत्रमुग्ध कर दिया। सर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' का पाश्र्व संगीत रविशंकरजी ने रचा, परंतु फिल्मकार ने उसी सृजन को कुछ हेरफेर के साथ लंदन फिलोहारमोनिक आर्केस्ट्रा के साथ पुन: ध्वनि मुद्रित किया। यह संभव है कि विराट दृश्यों के साथ मिलान करने के लिए ध्वनि को भी लार्जर देन लाइफ स्वरूप देने के लिए यह किया गया हो। कई बार बाजार की ताकतें सृजनशील व्यक्ति को झुका देती हैं। कुछ विरल लोग टूट जाते हैं, परंतु झुकते नहीं। आपने ताड़ या अशोक वृक्ष को झुकते देखा होगा, परंतु बरगद नहीं झुकता और वही हजारों वर्ष जीवित रहता है। राजनीति का प्रवेशद्वार इतना छोटा है कि वहां झुककर ही मनुष्य जाता है और ताउम्र अपनी परछाई को अपना सच समझकर मरते हुए जीता है।

बहरहाल, रविशंकरजी की अंतरराष्ट्रीय सफलता इस बात को रेखांकित करती है कि शास्त्रीय शैली के मूल आधार के साथ कोई छेडख़ानी नहीं करते हुए अपने इंप्रोवाइजेशन और इंटरप्रिटेशन से विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को राग का आनंद उन्हें समझ में आने वाले अंदाज से भी दिया जा सकता है। शुद्धता के प्रति अति आग्रह रखने वाले लोग शास्त्रीयता की लकीर के फकीर होते हैं और उस आनंद को अनुभव ही नहीं कर पाते, जो उसके जन्म में ही निहित है। विशुद्ध शास्त्रीयता को आसन बनाकर बैठने वाला संकुचित दृष्टिकोण का व्यक्ति मठाधीश तो बन सकता है, परंतु वह उसके आनंद से वंचित ही रहता है। रविशंकरजी ने पश्चिम के शास्त्रीय संगीतज्ञों के साथ ही विद्रोही 'बीटल्स' को भी प्रभावित किया। विदेशी राजमहलों में सने जाने के साथ ही वे मेडिसन स्क्वेयर गार्डन एवं वुडस्टॉक पर भी लाखों लोगों द्वारा सराहे गए। उनके लिए सितार महज एक वाद्ययंत्र नहीं था, महज लकड़ी और तारों का जाल नहीं था। वह उनके लिए जीवंत सहचर था। वे उससे बात कर सकते, उसके साथ हंस-गा और रो सकते थे। प्रेम की शक्ति संसार की सभी चीजों को प्राणवान बना देती है। संसार की सारी चल-अचल चीजों में प्राण हैं और आप केवल प्रेम और करुणा के तार द्वारा ही उनसे जुड़ सकते हैं।