रवि कुमार की बेटी रवि कुमार की मां / जयप्रकाश चौकसे

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रवि कुमार की बेटी रवि कुमार की मां
प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2019


एकता कपूर किराए की कोख द्वारा एक बेटे की मां बनी हैं और उन्होंने अपने पुत्र का नाम रवि कुमार रखा है। ज्ञातव्य है कि जितेंद्र का असली नाम रवि कुमार है। वी. शांताराम ने रवि कुमार को अभिनय का पहला अवसर दिया 'गीत गाया पत्थरों ने' नामक फिल्म में। उस दौर में फिल्म उद्योग में कई कुमार सक्रिय थे, इसलिए उन्होंने नाम दिया जितेंद्र। दक्षिण भारत के एक फिल्मकार ने जितेंद्र और बबीता (करीना कपूर की मां) के साथ 'फर्ज' नामक फिल्म बनाई। इस चूंचूं के मुरब्बेनुमा फिल्म ने बहुत धन कमाया और जितेंद्र ने 'जंपिंग जैक' की छवि धारण की। उस दौर की फिल्मों में नृत्य पीटी एक्सरसाइज की तर्ज पर प्रस्तुत किए गए। नृत्य नहीं कर पाने वाले कलाकार की सुविधा के लिए ही बच्चों द्वारा स्कूल में की जाने वाली पीटी एक्सरसाइज को फिल्म का हिस्सा बनाया गया। कभी-कभी गरीब के वस्त्र फट जाने वाले हिस्से पर थेगला लगा दिया जाता है और थेगला मूल वस्त्र से अधिक सुंदर लगता है। यही पीटी कवायद को फिल्म नृत्य में शामिल करने की सफलता का राज है। फिल्म के अर्थशास्त्र में भी जितेंद्र के परिवार के एक सदस्य ने नया तरीका खोज निकाला। जब निर्माता जितेंद्र को अनुबंध की अग्रिम राशि देता तो परिवार का अर्थशास्त्री उसी रकम में कुछ और रकम अपने पास से लाकर निर्माता को देता कि मुंबई क्षेत्र के फिल्म वितरण अधिकार उन्होंने खरीद लिए हैं। इस तरह जो निर्माता एक रुपए देने गया था, वह सवा लाख रुपए लेकर लौटता और कलाकार भी अनुबंधित हो चुका होता। उसकी शूटिंग की डेट्स भी मिल जाती। कई निर्माता तो खुशी से झूमते हुए संतुलन खोने लगे तो बंगले के सुरक्षाकर्मी ने उन्हें सहारा दिया। जितेंद्र के परिवार द्वारा जो अभिनव अर्थनीति का ईजाद हुआ था, वह नीति देश की ताजा बजट में भी नजर आती है कि एक रुपए देने वाला सवा लाख रुपए लेकर लौटेगा।

एकता कपूर ने अपने पिता के बंगले के एक छोटे से कमरे में अपना दफ्तर खोला और टेलीविजन के लिए कार्यक्रम रचना प्रारंभ किया। उनका पहला प्रयास 'हम पांच' सफल रहा। अपनी मेहनत और प्रतिभा से एकता कपूर ने 'सास भी कभी बहू थी' नामक सीरियल रचा जो भारतीय टेलीविजन सीरियल के इतिहास में सफलतम सीरियल माना जाता है। इसी की नायिका स्मृति ईरानी अत्यंत लोकप्रिय हो गईं। कालांतर में इस स्मृति ईरानी ने हिंदुत्व की लहर प्रवाहित करने वाले दल की सदस्यता प्राप्त की। एक दौर में उन्हें शिक्षा मंत्री का पद मिला। उनकी अपनी शिक्षा पर विवाद उठा कि उन्होंने काल्पनिक विश्वविद्यालय से आभासी डिग्री प्राप्त की है। उन्हें शिक्षा से हटाकर अन्य महकमे का मंत्री बना दिया गया। वे कैबिनेट का वे थेगला सिद्ध हुईं जो वस्त्र से अधिक सुंदर लगता है। सौंदर्य भी एक मुद्रा ही है। छोटे परदे की महारानी एकता कपूर के सीरियल भारत की अन्य भाषाओं में डब किए गए और उन्हें लोकप्रियता मिली। एकता ने अवाम के जीवन में परिवार के महत्व को भांप लिया और परिवार को केंद्र में रखकर लिजलिजी भावुकता का मायावी संसार रचा। अपना पूंजी निवेश भी बहुत गहन विचार करके किया। मुंबई के लोखंडवाला नामक क्षेत्र में टेलीविजन के कलाकार और तकनीशियन रहते हैं। सच तो यह है कि मुंबई नगर निगम को एकता कपूर को इनाम देना चाहिए कि उनके कारण ही एक बस्ती बस गई। इस बस्ती में सबसे अधिक रेस्तरां हैं, क्योंकि टेलीविजन से जुड़े हुए लोग इतने व्यस्त हैं कि उनके किचन में केवल कॉफी बनाई जाती है। भोजन रेस्तरां से पैक होकर उनके पास पहुंचता है। टेलीविजन की भूख अजगर की भूख की तरह है और उसमें रोजगार पाए हुए लोग पिज्जा इत्यादि खाते हैं। महाभारत में युधिष्ठिर-यक्ष संवाद का एक हिस्सा यह है कि नश्वर जीवन में मनुष्य अमर होने की कामना करता है और इस कामना से प्रेरित होकर परिवार में जन्मे शिशु को उसके दादा या परदादा का नाम दिया जाता है ताकि कम से कम नाम तो हमेशा जीवित रहे। इसी शाश्वत विचार को शैलेंद्र ने कितनी गहराई से प्रस्तुत किया है फिल्म 'अनाड़ी' के गीत में....'मर कर भी याद आएंगे, किसी के आंसू में मुस्कुराएंगे, जीना इसी का नाम है.....'

अमरता अवधारणा एक दार्शनिक छलावा है। एक तरह से असंभव को संभव मानने का मनमोहक भ्रम है। टीएस एलियट के नाटक 'मर्डर इन कैथेड्रल' में इसे बखूबी प्रस्तुत किया गया है। शहादत भी इसका एक सुगम रास्ता है। व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसका जन्मदिन या निर्वाण दिवस मनाया जाए। उसकी स्मृति को बनाए रखने के लिए जश्न हो। एकता कपूर ने अपने पुत्र के नाम के माध्यम से अपने पिता को आदरांजलि दी है। जंपिंग जैक समय की नदी को छलांग लगाकर पार कर रहा है। बेटी हो तो एकता जैसी।