रवींद्रनाथ टैगोर : एकला चलो रे / जयप्रकाश चौकसे

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रवींद्रनाथ टैगोर : एकला चलो रे
प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2019


गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अभिव्यक्ति की सभी विधाओं में अपना हाथ आजमाया है और साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र भारतीय हैं। कोलकाता की फिल्म निर्माण कंपनी 'न्यू थियेटर्स' से भी वे सलाहकार के रूप में जुड़े थे। न्यू थियेटर्स की पहली छह फिल्में असफल रहीं और आर्थिक हालत नाजुक हो गई। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने 'नाटिर पूजा' नामक फिल्म का निर्देशन किया, परंतु आर्थिक संकट गहराता गया। 'नाटिर पूजा' का प्रदर्शन 22 मार्च 1932 को हुआ था। उनके परामर्श पर शिशिर भादुड़ी के नाटक 'सीता' से प्रेरित फिल्म अत्यंत सफल रही और उसने न्यू थियेटर्स फिल्म निर्माण कंपनी को जीवनदान दिया। ज्ञातव्य है कि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने एक नाटक में पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे का अभिनय देखा था। उनके कहने पर फिल्म 'सीता' में पृथ्वीराज कपूर ने श्री राम तथा दुर्गा खोटे ने सीता की भूमिका अभिनीत की थी। फिल्म विद्या कलाकार को एक जीवन में अनेक जीवन जीने की सुविधा प्रदान करती है। नाटिर पूजा के लगभग 30 वर्ष पश्चात पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे ने अकबर और जोधाबाई की भूमिकाओं को अभिनीत किया। अभिनय एक अनूठे किस्म का काया प्रवेश है। कभी-कभी ऐसे भी हुआ है कि अभिनेता भूमिका का केंचुल उतार ही नहीं पाता। जैसे मीना कुमारी 'छोटी बहू' का केंचुल उतार नहीं पाई। दिलीप कुमार को 'देवदास' से मुक्ति के लिए मनोचिकित्सक से परामर्श लेना पड़ा। मर्लिन ब्रैंडो हर फिल्म के बाद अपने निजी द्वीप पर महीनों केंचुल मुक्ति का काम करते थे।

गुरु रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य से प्रेरित अनेक फिल्में बनी हैं। उनकी कथा 'नौका डूबी' से प्रेरित फिल्म किशोर साहू ने 'घूंघट' नाम से बनाई। टैगोर की 'नष्ट नीड़' पर आधारित सत्यजीत राय की फिल्म 'चारुलता' को उनकी श्रेष्ठतम भी माना जाता है। यह भी विवाद का विषय रहा है कि सत्यजीत राय ने 'चारुलता' का क्लाइमेक्स मूल कथा से भिन्न ढंग से किया था। सत्यजीत राय पर मेरी स्टेन ने पुस्तक लिखी। उस पुस्तक के अनुसार सत्यजीत राय ने रवींद्रनाथ टैगोर की 'घरे बाइरे' पर कथा लिखने के वर्षों बाद उस फिल्म का निर्माण किया।

गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की कथा से प्रेरित तपन सिन्हा ने 'क्षुधित पाषाण' का निर्माण किया। इस फिल्म की कुछ शूटिंग भोपाल में भी की गई थी। टैगोर महोदय की कथा 'काबुलीवाला' पर छबि बिस्वास अभिनीत फिल्म बांग्ला भाषा में बनी और बलराज साहनी अभिनीत 'काबुलीवाला' हिंदुस्तानी भाषा में बनाई गई। इस फिल्म में अफगानिस्तान से आया पठान सूखे मेवे बेचता है और पांच वर्षीय कन्या के प्रति उसका स्नेह है। संभवत: वह भारतीय कन्या उसे अफगानिस्तान में रहने वाली अपनी बेटी का स्मरण कराती है। काबुलीवाला निरपराध होते हुए भी कोर्ट द्वारा दंडित किया जाता है। सजा काटने के बाद उस दिन उस कन्या के घर पहुंचता है जिस दिन उसका विवाह हो रहा होता है। काबुलीवाला को दु:ख होता है कि कन्या उसे पहचान नहीं पाती। बचपन की सभी यादें अक्षुण्ण नहीं रह पातीं। समय का पानी किनारे की रेत पर लिखी इबारत मिटा देता है। बहरहाल 'इप्टा' से जुड़े फिल्मकार रमेश तलवार ने काबुलीवाला के अगले भाग का आकल्पन करके उस पर एक नाटक लिखा और मंचित किया था। रमेश तलवार के संस्करण में कन्या एक डॉक्टर बनती है। उसे अब अपने बचपन के काबुलीवाला का स्मरण हो जाता है। उन दिनों अफगानिस्तान में युद्ध चल रहा है। महिला डॉक्टर अपनी सेवा रेडक्रॉस को देती है और अफगानिस्तान जाकर आहत लोगों का इलाज करना चाहती है। उसे कोलकाता के एक भव्य अस्पताल में काम मिल रहा है, परंतु इस प्रस्ताव को वह ठुकरा देती है। वह यह आशा लेकर अफगानिस्तान जाती है कि उसे काबुलीवाला के वंश के किसी व्यक्ति की सेवा का अवसर मिल जाए। बचपन में काबुलीवाला द्वारा दिए गए बादाम से ही संभवत: उसकी स्मृति उसे यह प्रेरणा देती है। यह बात गौरतलब है कि रवींद्रनाथ टैगोर कभी स्कूल नहीं गए। उनकी शिक्षा उनके परिवार में ही हुई। उन्होंने शांति निकेतन नामक अनोखे विश्वविद्यालय का निर्माण किया। फिल्मकार सत्यजीत राय और चेतन आनंद ने शांति निकेतन में शिक्षा ग्रहण की। टैगोर ने संगीत के क्षेत्र में इतना अभिनव काम किया है कि उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने दो देशों के राष्ट्रगान भी लिखे हैं।